मध्‍यप्रदेश विधानसभा के 68 वर्ष पूर्ण, तोमर ने किया संबोधित

भोपाल, 17 दिसंबर (वार्ता) मध्‍यप्रदेश विधानसभा की यात्रा के आज 68 वर्ष पूर्ण होने पर अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि ये गर्व के साथ कह सकते हैं कि अपनी स्‍थापना के 68 वर्ष पूर्ण कर रही मध्‍यप्रदेश विधानसभा का संसदीय परंपराओं के निर्वहन में एक गौरवशाली इतिहास रहा है।

श्री तोमर ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि लोकतंत्र की जननी कहे जाने वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत ने अपने महान संवैधानिक प्रावधानों के माध्‍यम से प्रजातांत्रिक व्‍यवस्‍था का एक अनुपम उदाहरण स्‍थापित किया है। लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था को सुदृढ़ बनाने में राज्‍यों के विधानमंडलों की महती भूमिका रही है। हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि अपनी स्‍थापना के 68 वर्ष पूर्ण कर रही मध्‍यप्रदेश विधान सभा का संसदीय परंपराओं के निर्वहन में एक गौरवशाली इतिहास रहा है।

इस अवसर पर उन्होंने विधानसभा का संपूर्ण इतिहास बताया। उन्होंने बताया कि 15 अगस्‍त, 1947 को स्‍वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत जब 1956 में राज्‍यों का पुनर्गठन हुआ तो मध्‍यप्रदेश एक राज्‍य के रूप में अस्तित्‍व में आया। इसके घटक राज्‍यों में मध्‍यप्रदेश, मध्‍य भारत, विन्‍ध्‍य प्रदेश एवं भोपाल थे, जिनकी अपनी-अपनी विधानसभाएं थीं। पुनर्गठन के पश्‍चात् चारों विधानसभाएं एक विधानसभा में समाहित हो गई एवं 1 नवंबर, 1956 को नई विधानसभा अस्तित्‍व में आई एवं इसका पहला अधिवेशन 17 दिसम्‍बर 1956 को प्रारंभ हुआ था।

उन्होंने विधानसभा के भूतपूर्व अध्यक्षों, उपाध्यक्षों, मुख्यमंत्रियों, प्रतिपक्ष के नेताओं, मंत्रियों, समिति सभापतियों, सदस्यों एवं विधानसभा सचिवालयीन अधिकारियों−कर्मचारियों के योगदान का भी संदर्भ दिया।

उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश के निर्माण से अब तक 15 विधानसभा कार्यकाल पूर्ण हो चुके हैं, 16 वां जारी है। मध्यप्रदेश विधानसभा के अब तक 2600 से अधि‍क सदस्य रहे हैं। एक नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य के गठन से पूर्व अविभाजित मध्यप्रदेश विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या 320 थी और विभाजन के पश्चात यह संख्या 230 हो गई है।

इन सात दशकों में यह सदन कई ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी रहा है। विधेयकों के माध्‍यम से प्रदेश के विकास और जनकल्‍याण के कई निर्णय इसी सदन में हुए। विधानसभा में महिला शक्ति की भी सदैव महत्‍ता स्‍थापित रही है। मुख्‍यमंत्री के रूप में सुश्री उमा भारती एवं नेता प्रतिपक्ष के रूप में स्‍व. श्रीमती जमुना देवी ने महिला नेतृत्‍व को सदन में प्रबल किया है। वर्तमान में कुल 27 महिलाएं सदन की सदस्‍य हैं। मध्‍यप्रदेश विधान सभा में प्रत्‍येक सत्र में प्रति मंगलवार को प्रश्‍नकाल में महिलाओं एवं प्रथम बार निर्वाचित सदस्‍यों का प्रश्‍न लिये जाने का निर्णय लिया गया है।

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि यह व्‍यवस्‍था बनाने का प्रयत्‍न किया है कि शून्‍यकाल की सूचनाओं में पहली बार चुनकर आये विधायकों की सूचनाओं को प्राथमिकता क्रम में सबसे ऊपर रखा जाय। पहली बार निर्वाचित तीन सदस्‍यों की सूचनाओं को उसी दिन स्‍वीकार किये जाने की व्‍यवस्‍था भी दी गई जिस दिन वे प्राप्‍त हुईं थी। इस कदम को 16वीं विधान सभा में एक नई परिपाटी निरूपित किया गया। नवाचार को आगे बढ़ाते हुए एक और व्‍यवस्‍था दी गई कि प्रश्‍न पूछने वाले सदस्‍यों को विधान सभा का कार्यकाल समाप्‍त हो जाने के बाद भी अपने प्रश्‍न का उत्‍तर मिल सकेगा। प्रौद्योगिकी के हस्‍तक्षेप से विधान सभा के कार्य को प्रभावी, पारदर्शी, त्‍वरित और जवाबदेह बनाने की दिशा में ई-विधान पोर्टल और मोबाइल एप एक उल्‍लेखनीय पहल है।

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने अपने संबोधन में कहा कि राज्य विधानसभा सत्र की अवधि सीमित हो रही है। इसे बढ़ाने की व्यवस्था दी जाए ताकि सदन की गौरवशाली परंपरा स्थापित रहे।

उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ला ने भी इस अवसर पर सदन को संबोधित किया। श्री शुक्ला ने कहा कि राज्य की ओर से कर्ज लिए जाने पर कई बार सवाल उठते हैं, लेकिन इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि अगर कोई राज्य अपने सकल घरेलू उत्पाद का तीन फीसदी कर्ज नहीं लेता तो उसे विकासशील नहीं माना जाता।

विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष डॉ सीतासरन शर्मा ने कहा कि लोकतंत्र के चारों स्तंभों मे से एकमात्र विधायिका ही ऐसी है, जिसका जनता से सीधा संपर्क होता है और जनता की समस्याओं का हल भी विधायिका ही निकाल सकती है, लेकिन अब सदन में हंगामोंं के चलते जनता का विधायिका पर से विश्वास कम हो रहा है और सदन को इस पर विचार करना चाहिए।

विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ राजेंद्र सिंह ने कहा कि विधानसभा में भी संसद की तरह स्थायी समिति बनाए जाने का प्रावधान किया जाए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि दलों के आधार पर विधायकों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए।

 

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