नवभारत न्यूज
खंडवा। मौजवाड़ी जैसे आदिवासी अंचल में गर्मी शुरू होते ही जानवर तो क्या, इंसानों को भी पौष्टिक भोजन व शुद्ध पानी के लाले होने लगे हैं। रोजगार की तलाश में आदिवासी अपने बच्चों की जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं। इनके सामने संकट यह है कि वे अपने बच्चों का जीवन बचाएं या खुद के पेट की भूख का इंतजाम करें। सरकारी योजनाओं के बावजूद उनके सामने यह स्थिति क्यों बनी? इसकी जांच जरूरी है।
खालवा के अंदरूनी गांव मौजवाड़ी में बच्चों का झाडफ़ूंक से इलाज व चाचवों से दागने का चलन लोगों को क्यों अपनाना पड़ा? इसकी वजह सबको पता है। लोग विकासखंड तक सरकारी अस्पतालों में नहीं जाते। ज्यादा बीमार होने पर घर ही उपचार करवा लेते हैं। महिला बाल विकास व स्वास्थ्य विभाग की निचली टीमें कुछ नहीं करतीं। इसके पीछे भ्रष्टाचार का खेल है। चेक छोटे कार्यकर्ताओं के नाम जारी हो जाता है। बाद में नगद मांगने का खेल चलता है।
यह है मामला
2 साल के ब्चे शैलेश पिता विश्राम का वजन 5 किलो 800 था। इसे गर्म दरांती से दागकर उपचार इस युग में किया गया। यह तो एक उदाहरण है। ऐसे केस हर गांव में मिल जाएंगे। जेडी संध्या व्यास के ेदौरे से पहले खालवा एनआरसी में बच्चे को भर्ती कराया। बाद में खंडवा और इंदौर से अफसर पहुंचे।
इस कैंसर का इलाज जरूरी
कुल मिलाकर इस क्षेत्र में ईमानदार प्रयासों की जरूरत है। लोगों तक शिक्षा के साथ योजनाएं भी तरीके से पहुंचाने की जरूरत है। खालवा के कोरकूपट्टी में कुपोषित बच्चों के उपचार से पहले भ्रष्टाचार के कैंसर का आपरेशन जरूरी है। कर्मचारियों को लगातार सक्रिय रखा जाना चाहिए। जिला स्तर के अफसरों तक हिस्सा पहुंचना बंद होना चाहिए।
जड़ तक नहीं पहुंचीं जेडी
एक बच्चे को गर्म दरांती से दागकर इलाज करने का मामला उजागर हुआ। बाल विकास विभाग की संयुक्त संचालक संध्या व्यास पहुंचीं। वे भी लीपापोती करके चली आईं। घटनाक्रम की असली जड़ तक नहीं पहुंच सकीं। इससे पहले ही विभाग के खंडवा वाले अधिकारी, स्वास्थ्य विभाग के सीएमएण्डएचओ भी पहले पहुंच गए। ये अफसर ईमानदारी से लगातार सक्रिय रहें, तो इन गरीब बच्चों को दागने जैसे उपचार की जरूरत ही नहीं पड़े। एक हद तक गलती बच्चों के परिजनों की भी सामने आ रही है। योजनाओं की भरमार से भ्रष्टाचार
सरकारी योजनाओं की भरमार के चलते भ्रष्टाचार के अंकुर अब पेड़ बन गए हैं। जंगलों से बड़े पेड़ गायब हैं। यहां अनियमितताओं ने इनकी जगह ले ली है। कुछ लोगों की यह भी सोच है कि उनके बच्चों को सरकार पाले। वे मेहनत मजदूर करने जाएं, बच्चों का ध्यान बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग की मैदानी कार्यकर्ता रखें।