नेशनल हाईवे के निर्माण में एनएचएआई ने काटे हजारों पेड़, लेकिन लगाए नहीं

उज्जैन-झालावाड़ हाईवे पर वृक्षों की कमी से कम हो रही ऑक्सीजन की मात्रा, पर्यावरण सरंक्षण को लेकर न प्रशासन गंभीर और न जनप्रतिनिधियों ने दिखाई रुचि

 

सुसनेर, 7 दिसंबर. क्या आपको पता है आज जिस हाईवे से आप गुजर रहे हैं वह कितने पेड़ों के बलिदान के बाद बनाया गया है.? हजारों वृक्षों की कटाई करने के बाद भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण दिल्ली द्वारा उज्जैन से लेकर चंवली तक कुल 134 किलोमीटर की नवीन टू लेन सडक़ का निर्माण संभव हो पाया है. जिसे उज्जैन-झालावाड राष्ट्रीय राजमार्ग 552 जी के नाम से जाना जाता है. इस सडक़ निर्माण में बाधा बने हजारों पेड़ों को नेशनल हाईवे के निर्माण के दौरान काटा तो गया लेकिन एनएचएआई के द्वारा गाइडलाइन के अनुसार इनके स्थान पर दोगुने मात्रा में पेड़ नहीं लगाए गए. जबकि अनुबंध के अनुसार इस मार्ग के निर्माण के बाद पेड लगाए जाना थे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

आज स्थिति यही है कि हम बड़ी शान से इस मार्ग से यात्रा तो कर रहे हैं लेकिन इस मार्ग पर पर्याप्त मात्रा में हमें ऑक्सीजन देने वाले पेड़ ही कम हो गए हैं. यदि एनएचएआई काटे गए पेड़ों की जगह सडक़ निर्माण के बाद नए पेड़ों को लगा देती तो ऑक्सीजन भरपूर मात्रा में मिल सकती थी. लेकिन न तो जिम्मेदारों ने पर्यावरण संरक्षण की और ध्यान दिया और न ही अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने वाले पक्ष-विपक्ष के नेताओं व जनप्रतिनिधियों ने इसको लेकर कोई रुचि दिखाई. इसलिए इस मार्ग पर जो पेड़ काटे गए थे उनका स्थान आज भी रिक्त ही पडा हुआ है.

 

सुसनेर अनुविभाग में काटे गए 710 पेड़

 

अनुविभागीय अधिकारी राजस्व कार्यालय सुसनेर से प्राप्त जानकारी के अनुसार 710 पेड़ तो सुसनेर अनुभाग की सीमा क्षेत्र में ही एनएचएआई के द्वारा काटे गए हैं. इसके अलावा आगर, घटिया और घोसला के मिलाकर हजारों पेड़ों की बली देकर के उज्जैन झालावाड़ राष्ट्रीय राजमार्ग 552 जी की टू लेन सडक़ का निर्माण किया गया है. लेकिन इनके स्थान पर दोगुनी मात्रा में पेड़ों को लगाया नहीं गया.

 

पेड़ों को काटकर सडक़ बनाने से पर्यावरण को कई तरह के होते है नुकसान

 

पेड़ों को काटने से जल चक्र प्रभावित होता है, पेड़ों की कटाई से वनस्पति और जीव नष्ट होते हैं, पेड़ों की कटाई से कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि होती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है. पेड़ों की कटाई से पशु.पक्षियों का आवास नष्ट हो जाता है. पेड़ों की कटाई से बाढ़ और आग लगती है. पेड़ों की कटाई से लकड़ी या इमारती लकड़ी की आपूर्ति सीमित हो जाती है. पेड़ों की कटाई से मिट्टी सूख जाती है, जिससे फसल उगाना असंभव हो जाता है. पेड़ों की कटाई से मरुस्थलीकरण, मृदा अपरदन, कम फसलें, बाढ़, वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है.

 

इनका कहना है

उज्जैन झालावाड़ राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में सुसनेर अनुविभाग के अंतर्गत 710 पेड़ों को काटा गया था, जिसके स्थान पर दोगुनी मात्रा में पेड लगाए जाने थे. किन्तु सडक़ बनने के बाद पेड कहीं दिखाई नहीं देेते. हमारे द्वारा एनएचएआई को पत्र भेजकर के पेड़ लगाए जाने की मांग की जाएगी.

-विजय सेनानी, तहसीलदार, सुसनेर जिला आगर

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