हारने के बावजूद रावत भाजपा में लंबी पारी खेलने के मूड में

ग्वालियर चम्बल डायरी
हरीश दुबे

विजयपुर से चुनाव हारने के बाद रामनिवास रावत खुद ही मिनिस्टरी के ओहदे से रुखसत हो गए थे लेकिन अभी तक उनका इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ है, लिहाजा मिनिस्टर के रूप में उनका जलबा-जलाल बरकरार है। खबर यह है कि मोहन यादव सरकार के बाकी बचे चार साल के कार्यकाल में उनका मिनिस्टरी रुतबा कायम रखा जाएगा। उन्हें मप्र वन विकास निगम या हाउसिंग बोर्ड जैसे किसी महत्वपूर्ण निगम-बोर्ड का चेयरमेन बनाए जाने की सुगबुगाहट है।

बीते रोज रावत की पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा से उनके बंगले पर हुई लंबी गुफ़्तगू के बाद इन अटकलों को बल मिला है। खबर यह है कि उपचुनाव में पराजित होने और विधायक या मंत्री न रहने के बाद बदले परिदृश्य में भाजपा में उनकी नई भूमिका क्या होगी, इसको लेकर उक्त मीटिंग में मंथन हुआ। सीएम से लेकर भाजपा नेतृत्व तक यह मानकर चल रहा है कि छह बार विधायक और कई मर्तबा स्टेट की काबीना में रह चुके रावत रावत भाजपा के चेहरे के रूप में अपना पहला चुनाव भले ही हार गए हैं लेकिन वे चम्बल की सियासत में अभी अप्रासंगिक नहीं हुए हैं।

विजयपुर से लेकर डबरा-भितरवार तक मजबूत असर रखने वाले रावत वोटबैंक पर उनकी पकड़ है। उनकी चुनावी हार की वजह पार्टी में उनके टिकट को लेकर अंदरूनी तौर पर छिड़े महाभारत को ही माना जा रहा है। विजयपुर से विधायक रह चुके दो वरिष्ठ नेताओं ने तो उनके खिलाफ मोर्चा खोला ही, स्थानीय पार्टी संगठन का एक वर्ग भी उनके लिए काम करने को तैयार नहीं हुआ। रावत भाजपा में लंबी पारी खेलने के मूड में हैं। यही वजह है कि हार कर घर बैठने के बजाए उन्होंने विजयपुर की सड़कों पर जनसंपर्क कर नब्बै हजार वोट देने के लिए शुक्रिया जताया।

नाथ समर्थकों से छुटकारा पाने की कवायद

कांग्रेस के सूबाई सदर जीतू पटवारी ने अपनी नई कार्यकारिणी में उन पदाधिकारियों की छंटनी कर दी जिनकी राजनीति सिर्फ कमलनाथ के नाम से चलती थी। जीतू ने अपनी नई टीम में ग्वालियर जिले से ही लाखन सिंह, प्रवीण पाठक और सुनील शर्मा जैसे उन नेताओं को वजनदार हैसियत दी है जो साल भर पहले विधानसभा चुनाव हारने के बाद से हाशिए पर मान लिए गए थे। कांग्रेस सदर की नजर अब पार्टी के प्रकोष्ठों और विभागों पर है। बीते विधानसभा चुनाव के वक्त कमलनाथ ने चुनावी लाभ के मकसद से अधिकाधिक नेताओं को उपकृत व संतुष्ट करने के लिए पार्टी में कई नए प्रकोष्ठ और विभाग खड़े कर दिए थे जिनमें थोकबन्द नियुक्तियां की गईं थीं। प्रकोष्ठों की तादाद आधा सेंकड़ा को भी पार कर गई थी, विभाग अलग से। अब तमाम प्रकोष्ठों को मर्ज कर या खत्म कर इनकी संख्या घटाने के प्लान पर काम किया जा रहा है। जाहिर है कि इन प्रकोष्ठों में नाथ ने अपने करीबियों को ही बिठाया था, इनमें से ज्यादातर पदाधिकारी विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा भी हारने के बाद निष्क्रिय हो गए थे और सत्तादल में प्रवेश के मार्ग तलाशने में जुटे थे। कांग्रेस हलकों में अब प्रकोष्ठों की नई फेहरिष्त का इंतजार चल रहा है।

मेला इस बार भी भोपाल भरोसे

मेला शुरू होने में अब बमुश्किल बीस दिन बचे हैं लेकिन मेला प्राधिकारण में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सियों पर बैठकर इस सवासौ साल पुराने राष्ट्रीय स्तर के आयोजन की कमान संभालने का मंसूबा बनाए बैठे नेताओं का इंतजार पूरा होने का नाम नहीं ले रहा है। अब यह लगभग मान लिया गया है कि बीते छह साल की तरह इस बार भी अधिकारी ही मेला लगाएंगे और मेला के संचालन में राजनीतिक नुमाइंदगी सिफर ही रहेगी। फ़िलवक्त ग्वालियर मेला की कमान भोपाल में बैठे मंत्री चेतन कश्यप ही संभाल रहे हैं। स्थानीय अधिकारियों को मेला की तैयारियों से जुड़े हर दिशा निर्देश के लिए भोपाल को खटखटाना पड़ रहा है। अफसरों का कहना है कि यदि मेला प्राधिकरण में नियुक्तियां हो जातीं तो यह नौबत नहीं आती।
एक वार्ड जीतने झोंकी पूरी ताकत

उपचुनाव ग्वालियर के सिर्फ एक वार्ड में हो रहा है लेकिन भाजपा और कांग्रेस, दोनों दलों ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बनाते हुए इस वार्ड में जीत का परचम फहराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। दोनों दलों के सभी स्थानीय प्रमुख नेता यहाँ घर घर दस्तक देने में जुटे हैं। पूर्व महापौर स्व. पूरन सिंह पलैया की पुत्रवधु अंजलि पलैया इस उपचुनाव के माध्यम से सियासत में पदार्पण कर रही हैं, वहीं कांग्रेस ने भी उनके खिलाफ शिवानी खटीक के रूप में नए चेहरे को मैदान में उतारा है। वैसे यह भाजपा का पारंपरिक वार्ड रहा है जहाँ से तत्कालीन निगम सभापति राकेश माहोर लगातार जीतते रहे थे।

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