नयी दिल्ली, 05 दिसंबर (वार्ता) दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मनमोहन ने गुरुवार को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पद की शपथ ली।
शीर्ष अदालत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने यहां आयोजित एक समारोह में न्यायमूर्ति मनमोहन को शपथ दिलाई।
न्यायमूर्ति मनमोहन के शपथ ग्रहण करने के साथ ही शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की कुल निर्धारित संख्या 34 के मुकाबले 33 हो गई। इस अवसर पर शीर्ष अदालत के अन्य न्यायाधीशों के अलावा अनेक वरिष्ठ अधिवक्ता और अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे।
न्यायमूर्ति खन्ना की अध्यक्षता वाले शीर्ष न्यायालय के कॉलेजियम ने नवंबर में न्यायमूर्ति मनमोहन को पदोन्नत कर उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनाने की शिफारिश की थी। इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की सहमति के बाद तीन दिसंबर को केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर न्यायमूर्ति मनमोहन को शीर्ष अदालत में न्यायाधीश नियुक्त करने की घोषणा की थी।
न्यायमूर्ति मनमोहन को 13 मार्च, 2008 को दिल्ली उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और वह 29 सितंबर, 2024 से उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहे हैं।
शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम की सिफारिश के बाद उनकी ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि न्यायमूर्ति मनमोहन उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संयुक्त अखिल भारतीय वरिष्ठता में क्रम संख्या दो पर हैं। इसके साथ वह दिल्ली उच्च न्यायालय में सबसे वरिष्ठ हैं।
न्यायमूर्ति मनमोहन का चुनाव करते हुए कॉलेजियम ने यह भी उल्लेख किया था कि उच्चतम न्यायालय में दिल्ली उच्च न्यायालय का प्रतिनिधित्व केवल एक न्यायाधीश कर रहे हैं। शीर्ष अदालत के मुख्य न्यायाधीश खन्ना दिल्ली उच्च न्यायालय से हैं।
न्यायमूर्ति मनमोहन पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल जगमोहन के पुत्र हैं। उनका जन्म 17 दिसंबर, 1962 को दिल्ली में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली के बाराखंभा रोड स्थित मॉडर्न स्कूल से की। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से इतिहास में बीए (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की और 1987 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से वकालत (एलएलबी) की पढ़ाई पूरी की। वह उसी वर्ष दिल्ली बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में नामांकित हुए।
उन्होंने मुख्य रूप से भारत के सर्वोच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय में सिविल, आपराधिक, संवैधानिक, कराधान, मध्यस्थता, ट्रेडमार्क और सेवा मुकदमेबाजी में वकालत की। उन्हें 18 जनवरी, 2003 को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था।