किसान समस्या का समाधान सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए : धनखड़

नयी दिल्ली 03 दिसंबर (वार्ता) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किसानों की समस्याओं के समाधान को सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता करार देते हुए कहा है कि यदि कोई राष्ट्र उनकी सहनशीलता को परखने की कोशिश करेगा, तो उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।

श्री धनखड़ ने मंगलवार को मुंबई में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र के शताब्दी समारोह का संबोधित करते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र के मुद्दों का समाधान शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन का आकलन सीमित रूप से करना एक बड़ी गलतफहमी है। देश की कोई ताकत किसान की आवाज को दबा नहीं सकती। आंदोलनरत और तनावग्रस्त किसान देश की समग्र भलाई के लिए अच्छे संकेत नहीं है। जब कोई भी सरकार वादा करती है तो उसे निभाने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि आखिरकार किसान से वार्ता क्यों नहीं हो रही है।

श्री धनखड़ ने मंच पर मौजूद श्री चौहान से कहा, “कृषि मंत्री जी, हर पल आपके लिए महत्वपूर्ण है। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ, और भारत के संविधान के तहत दूसरे सबसे बड़े पद पर विराजमान व्यक्ति के रूप में मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि कृपया मुझे बताइए, क्या किसान से कोई वादा किया गया था, और वह वादा क्यों नहीं निभाया गया? हम क्या कर रहे हैं वादा पूरा करने के लिए? पिछले साल भी आंदोलन था, इस साल भी आंदोलन है, और समय जा रहा है, लेकिन हम कुछ नहीं कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा, “माननीय कृषि मंत्री जी, मुझे तकलीफ हो रही है। मेरी चिंता यह है कि अब तक यह पहल क्यों नहीं हुई। आप कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री हैं। मुझे सरदार पटेल की याद आती है, उनका जो उत्तरदायित्व था कि देश को एकजुट करने का, उन्होंने इसे बखूबी निभाया। यह चुनौती आज आपके सामने है, और इसे भारत की एकता से कम मत समझिए।”

उप राष्ट्रपति ने कहा, “किसान से वार्ता तुरंत होनी चाहिए, और हमें सबको यह जानना चाहिए, क्या किसान से कोई वादा किया गया था? माननीय कृषि मंत्री जी, क्या पिछले कृषि मंत्रियों ने कोई लिखित वादा किया था? अगर किया था, तो उसका क्या हुआ?”

श्री धनखड़ ने कहा, “हम अपने लोगों से नहीं लड़ सकते, हम उन्हें इस स्थिति में नहीं डाल सकते कि वे अकेले संघर्ष करें। हम यह विचार नहीं रख सकते कि उनका संघर्ष सीमित रहेगा, और वे अंततः थक जाएंगे। हमें भारत की आत्मा को परेशान नहीं करना चाहिए, हमें उसके दिल को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए। क्या हम किसान और सरकार के बीच एक सीमा रेखा बना सकते हैं? जिनको गले लगाना चाहिए, उन्हें दूर नहीं किया जा सकता।”

उन्होंने कहा, “जब मैंने आह्वान किया, तो मुझे एक प्रतिक्रिया मिली। प्रतिक्रिया माननीय जगजीत सिंह डल्लेवाल से आई। यह संतुलित प्रतिक्रिया थी। उन्होंने पहले जो मैंने कहा उस पर ध्यान केंद्रित किया। वह संयुक्त किसान मोर्चा और‌ किसान मुक्ति मोर्चा जैसी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं, जो आंदोलित हैं। उन्होंने मेरी भावना को समझा, और फिर माननीय कृषि मंत्री ने पूछा, ‘उनका संदेश मेरे लिए क्या है?’ उनका संदेश था कि किसान से जो वादा किया गया था, वह पूरा क्यों नहीं हुआ? यह आपकी चुनौती है। जब कोई सरकार वादा करती है, और वह वादा किसान से जुड़ा होता है, तो हमें कभी भी कुछ अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए।”

न्यूनतम समर्थन मूल्य‌ का उल्लेख करते हुए कहा कि आज किसान को केवल एक काम सौंप दिया गया है। खेतों में अनाज उगाना और फिर उसकी सही कीमत पर बिक्री के बारे में सोचना। हम क्यों ऐसे फार्मूला नहीं बना सकते, जिसमें अर्थशास्त्रियों और थिंक टैंक के साथ विचार-विमर्श करके हमारे किसानों को पुरस्कृत किया जा सके। हम उन्हें उनका हक भी नहीं दे रहे, पुरस्कृत तो दूर की बात है।

उन्होंने कहा, “हमने जो वादा किया था, उसे देने में भी कंजूसी कर रहे हैं, और मुझे समझ में नहीं आता कि किसान से वार्ता क्यों नहीं हो रही है? हमारी मानसिकता सकारात्मक होना चाहिए; हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि अगर हम किसान को यह कीमत देंगे तो इसके नकारात्मक परिणाम होंगे। जो भी कीमत हम किसान को देंगे, देश को पांच गुना फायदा होगा, इसमें कोई दो राय नहीं है।”

श्री धनखड़ ने कहा, “पहली बार मैंने भारत को बदलते हुए देखा है। पहली बार मुझे महसूस हो रहा है कि एक विकसित भारत सिर्फ हमारा सपना नहीं, यह हमारा लक्ष्य है। भारत कभी इतनी ऊंचाई पर नहीं था। हमारी प्रतिष्ठा कभी इतनी ऊंची नहीं थी। जब ऐसा हो रहा है तो मेरा किसान क्यों परेशान है? वह क्यों पीड़ित है? यह एक गंभीर मुद्दा है, और इसे हल्के में लेना मतलब यह है कि हम व्यावहारिक नहीं हैं, और हमारी नीति निर्माण सही दिशा में नहीं है।”

उन्होंने कहा, “मेरी पीड़ा यह है कि किसान और उनके हितैषी आज चुप हैं, बोलने से कतराते हैं। देश की कोई ताकत किसान की आवाज को दबा नहीं सकती। यदि कोई राष्ट्र किसान की सहनशीलता परखने की कोशिश करेगा, तो उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।” उन्होंने कहा कि वर्ष 2047 तक विकसित भारत का सपना, कम से कम किसान के लिए तो आना चाहिए। कृषि क्षेत्र के मुद्दों का समाधान शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए। किसानों की पीड़ा और आंदोलन देश की समग्र भलाई के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।”

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