अलग ही जुनून है सांवेर के ‘भोले भाई’ का

उनके रहते कोई भी मरकट देह अंतिम संस्कार से वंचित नहीं रह सकती

अभी तक सवा सौ से ज्यादा बंदरों का कर चुके सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार

 

कुमारकुंदन ओस्तवाल

 

सांवेर 8 नवंबर. सांवेर नगर संजय बिलवाड़िया उर्फ़ हनुमंत भक्त भोले भाई नामक एक अधेड़ व्यक्ति को एक अलग तरह का ही जुनून है कि वे नगर या आसपास कहीं भी किसी बंदर अर्थात लंगूर की मौत होने की सूचना पर तत्काल पहुँच जाते है और मरकट की मृत देह को किसी अपने परिजन की देह की भांति लेकर सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार करने ले जाते हैं . भोले भाई को ये अनोखा जुनून पिछले 12 सालों से है .

 

वर्तमान समय में जब इंसान की मृत देह के सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार का संकट पड़ जाने या मृत्यु के पश्चात् कई मनुष्यों से उनके अपने लोगों द्वारा मुंह मोड़ लिए जाने के कई वाकिये देखने सुनने को मिल रहे हैं ऐसे समय में सांवेर के भोले भाई की मूक बंदर प्रजाति के प्रति लगाव अपने आप में अनूठा और प्रशंसनीय है . 12 साल पहले शुरुआत में सांवेरवासियों के लिए भोले भाई का ये पुनीत कार्य एक मसखरी या संजय का कौतुक ही लगता था किन्तु जब ये सत्कर्म दस साल से निरंतर दिख रहा है तो लोगों के लिए भोले भाई प्रशंसा और सम्मान का पात्र बन गया है .

 

सांवेर नगर और आसपास बहुतायत में लंगूर हैं लिहाजा उनकी मौत भी होती ही है . भोले भाई पिछले दिनों जब आमजन दीवाली के त्यौहार की तैयारियां कर रहे थे तब नगर के मुख्य मार्ग पर दोपहर में हाथ ठेले पर रखी कुर्सी पर सम्मानपूर्वक रखी एक मरकट की मृत देह को ले जाते एकबार नजर आया . सबको पता था कि किसी बंदर की मौत हुई है जिसे अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा है . वर्तमान में ये काम संजय बिलवाड़िया के अलावा कोई अन्य तो करता भी नहीं है . चूँकि मजदूरपेशा भोले भाई हाथ ठेला चलाकर ही अपनी आजीविका चलाते है इसलिए ठेला भी खुद का है जिस पर बाकायदा एक प्लेट पर भोले बाबा के छोटे से चित्र के साथ अपने मोबाईल नंबर लिख रखे हैं .

 

भगवान का वरदान मानते हैं !

 

बातचीत में संजय उर्फ़ भोले भाई ने बताया कि वे भोले के साथ उनके रूद्र हनुमानजी के भी भक्त हैं . बंदरों में वे हनुमानजी को देखते हैं इसलिए बंदरों की मृत देह का अनादर होते नहीं देख सकते . 12 साल पहले जब पहली बार किसी मरकट की देह को लेजाकर अंतिम संस्कार किया था तब कुछ अटपटा लगा था लेकिन अब तो आदत हो गई है . अब तो ऐसा लगता है कि भगवान ने उसे आजीविका के अपने अन्य कार्यों के साथ मरकट के अंतिम संस्कार का पुनीत कार्य करने के लिए भी विशेष रूप से वरदान दिया है . यही वजह है कि जब भी कहीं से किसी मरकट की मौत की सूचना मिलती है अपने हाथों का काम छोड़कर अपना हाथ ठेला उस ओर मोड़ लेते हैं . विगत 12 सालों में अकेले डेढ़ सौ से ज्यादा बंदरों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार कर चुके हैं .

 

यूँ होता हैं अंतिम संस्कार

 

नगर में अब जब भी संजय को किसी बंदर की शवयात्रा ठेले पर निकालकर ले जाते देखा जाता है लोग उसे रोककर श्रद्धापूर्वक नमन ही नहीं करते बल्कि अगरबत्ती लगाकर आरती उतारते हैं और अपनी ओर से भेंट स्वरूप कुछ राशी भी चढ़ाते हैं . कुछ लोग खुद न आकर भोले भाई को आवाज देकर बुला लेते हैं और माला अगरबत्ती व भेंट सुपुर्द कर देते हैं . भोले शव को जंगल में लेजाकर जमीन में गड्ढा खोदकर उसमें नमक आदि डालकर पूजा पाठ के बाद बड़े सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर स्वयं को धन्य मानते हैं .

 

चित्र अपने हाथ ठेले में मरकट की शवयात्रा निकालकर ले जाते भोले भाई

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