संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और यूरोपीय देश हमेशा श्रेष्ठता के अहंकार में रहते हैं. उन्हें लगता है कि मानवतावाद, लोकतंत्र और स्वतंत्रता केवल उन्हीं के पास है.अमेरिका तो खुद को दुनिया का कोतवाल समझता है.पता नहीं उसे क्यों लगता है कि उसे प्रत्येक देश के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप करने का हक है.हालांकि अमेरिका का मानव अधिकार के मामले में रिकॉर्ड बेहद खराब है. वहां लंबे समय तक महिलाओं और अश्वेत लोगों को मतदान का अधिकार तक नहीं था. मार्टिन लूथर किंग द्वितीय के प्रयासों से 1966 में इन लोगों को मताधिकार उपलब्ध हो सका. जबकि भारत में लंबे समय से न केवल लोकतंत्र की परंपरा है बल्कि यहां राजा महाराजाओं ने सर्वधर्म समभाव के आधार पर राज किया है. सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य, विजय नगर साम्राज्य, रजिया सुल्तान, देवी अहिल्याबाई होलकर, छत्रपति शिवाजी के शासन जनकल्याणकारी राज्य और सर्वधर्म समभाव के आदर्श उदाहरण हैं. इसलिए अमेरिका और यूरोपीय देश को समझना चाहिए कि भारत में लोकतंत्र और समानता की लंबी परंपरा है. वैसे भी सामान्य सिद्धांत है कि किसी भी दूसरे देश के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं दिया जाता. इसलिए अमेरिका भारत को नसीहत ना दे वही अच्छा है. वैसे भारत ने भी अमेरिका और जर्मनी को करारा जवाब दिया है. दरअसल,शराब घोटाले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और कांग्रेस के बैंक अकाउंट आयकर विभाग द्वारा फ्रीज किए जाने के मसले पर पिछले दिनों अमेरिका ने सवाल उठाए. भारत की आपत्ति के बाद भी अमेरिका अपनी चिंता दोहराने से बाज नहीं आया.यह साफ है कि अमेरिकी प्रतिनिधि से उक्त मामलों को लेकर सवाल इसी नीयत से पूछे गए थे कि वह भारत के आंतरिक मामलों में कुछ कहे.इन प्रश्नों को टालने के बजाय अमेरिकी प्रतिनिधि ने यह दिखाना बेहतर समझा कि उसे दुनिया भर को उपदेश देने का अधिकार है. लगता है अमेरिका रिश्तों में क?वाहट घोलने के मूड में है. हालांकि भारत ने काफी संयत शब्दों में अमेरिका को चेताया कि कूटनीति में आशा की जाती है कि देश एक-दूसरे के घरेलू मसलों और संप्रभुता का सम्मान करेंगे, लेकिन अमेरिका अपने श्रेष्ठता बोध को छोडऩे के लिए तैयार नहीं दिख रहा है. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार और कारोबारी सहयोगी है.इसके बावजूद वह भारत के आंतरिक मामलों में दखल का कोई मौका नहीं चूकता.पूर्व में सीएए और कुछ गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई पर भी अमेरिका की तरफ से भारत को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की जा चुकी है. खालिस्तानी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश को लेकर भी अमेरिका भारत पर गंभीर आरोप लगा चुका है.मणिपुर में हिंसक झड़पों पर भी अमेरिकी राजदूत ने कहा था कि अमेरिका इस राज्य में हो रही हिंसा को लेकर चिंतित है. उन्होंने यह भी कहा था कि अमेरिका किसी भी तरह की सहायता के लिए ‘तैयार, इच्छुक और सक्षम’ है. हालांकि बाद में अमेरिका ने मणिपुर की स्थिति को भारत का आंतरिक मामला बताया. इससे पहले 2022 में अमेरिका ने भारत को चेताया था कि अगर वह यूक्रेन युद्ध में किसी एक पक्ष के साथ नहीं आता तो उसे इसकी कीमत चुकानी प? सकती है.सवाल यह है कि अमेरिका ऐसा क्यों कर रहा है? जाहिर है अमेरिका यह जताने का प्रयास करता है कि वह हर मामले में भारत से श्रेष्ठ है इसलिए उसे भारत की किसी भी समस्या पर बोलने का अधिकार है. जर्मनी और कनाडा ने भी कई बार भारत के मामलों में बोलने की हिमाकत की है. हालांकि हर बार भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इन देशों को करारा जवाब दिया है. कुल मिलाकर अमेरिका और यूरोपीय देशों को समझना चाहिए कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और अपनी अंदरुनी समस्याएं सुलझाने में सक्षम है.