राजनीति की शिकार पंचायतों में औपचारिकता बन कर रह जाती हैं ग्राम सभाएं

सरपंच-सचिवों की मनमानी और उदासीन ग्रामवासियों के चलते जिले की ज्यादातर पंचायतों में बिना कोरम पूर्ति के अभाव में होने वाली ग्राम सभाओं पर खड़े हो रहे सवाल

सीधी : सरपंच-सचिव की मनमानी और उदासीन ग्रामवासियों के चलते जिले की ज्यादातर पंचायतों में बिना कोरमपूर्ति के अभाव में होने वाली ग्रामसभाओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं। राजनीति की शिकार पंचायतों में औपचारिकता बनकर ग्राम सभाओं की बैठक रह जाती हैं।मध्यप्रदेश पंचायतराज अधिनियम 1993 की धारा 6 के प्रावधान अनुसार प्रत्येक ग्राम पंचायत को ग्राम सभा की त्रैमासिक बैठक आयोजित करना अनिवार्य है। जिसके लिये शासन ने 26 जनवरी, 14 अप्रैल, 20 अगस्त एवं 2 अक्टूबर की तिथि नियत की है। विशेष ग्राम सभाओं के आयोजन के पूर्व प्रदेश सरकार की ओर से भी लगातार सूचनाएं सार्वजनिक तौर पर दी जाती हैं।

किन्तु हकीकत धरातल पर कुछ और ही हैं। सीधी जिले की ग्राम पंचायतों में ग्रामसभाओं की बैठक सार्वजनिक तौर पर करने में अधिकांश सरपंच-सचिव पूरी तरह से गुरेज करते हैं। प्रशासनिक दबाव में विशेष ग्रामसभाओं का आयोजन जब किया जाता है तो उस दौरान भी ग्राम सभा की बैठक में क्या निर्णय हुये, क्या प्रस्ताव लिखे जा रहे हैं इसकी जानकारी वहां जाने वाले ग्रामीणों को देने की जरूरत नहीं समझी जाती। यहां तक कि निर्वाचित पंचों को भी ग्राम सभा की बैठक से दूर रखा जाता है।चर्चा के दौरान कुछ जानकारों का कहना था कि सीधी जिले की अधिकांश ग्राम पंचायतों में जाकर यदि ग्रामीणों से चर्चा की जाए तो यही जानकारी सामने आयेगी कि सरपंच-सचिव द्वारा पूर्व सूचना देकर ग्राम सभा की बैठक नहीं बुलाई जाती।

ग्राम सभा की बैठक सार्वजनिक तौर पर आयोजित न होने से ग्रामीणों के साथ ही पंचों को भी यह जानकारी नहीं मिल पाती कि उनके यहां कौन सी योजनाओं का क्रियान्यवन किया जा रहा है। किस मद में पंचायत को कितना बजट मिला है, हितग्राहियों का चयन कैसे होना है, नये निर्माण कार्य कौन से होने हैं। यह सब कुछ सरपंच-सचिव की जोड़ी ही अकेले ही तय कर लेती है। ग्राम पंचायतों की स्थिति यह है कि यहां राजनीति इतना ज्यादा हावी होती है कि लोग एकजुटता के साथ ग्राम सभा की बैठक बुलाने की मांग तक नियमानुसार पूर्व सूचना देकर सचिव से नहीं कर पाते। यह अवश्य है कि सरपंच-सचिव की शिकायत अधिकारियों के पास कराने के लिये कुछ प्रतिद्धंदी लगातार सक्रिय रहते हैं। उनकी यह सक्रियता लोगों का भला करने की बजाय अपना निजी स्वार्थ साधने एवं सरपंच-सचिव को परेशान करने की ज्यादा होती है।

ज्यादातर ग्रामसभाओं में ग्रामवासी नहीं रखते रूचि

ग्राम सभा की बैठक को लेकर ज्यादातर ग्रामवासी रूचि नहीं रखते हैं। इसी वजह से सरपंच-सचिव ग्राम सभा की बैठक के आयोजन को लेकर सार्वजनिक तौर पर कोई सूचना नहीं देते। अधिकांश ग्राम पंचायतों में ग्राम सभा की बैठक केवल कागजों में ही पूर्ण कर ली जाती है। इसमें मनमानी प्रस्ताव दर्ज करके उनकी स्वीकृति भी दे दी जाती है। ग्रामीणों से जब इस संबंध में चर्चा की गई तो अधिकांश का यही कहना था कि सरपंच-सचिव ग्राम सभा की बैठक के संबंध में कोई जानकारी सार्वजनिक तौर पर नहीं देते। यहां तक कि 26 जनवरी गणतंत्र दिवस, 14 अप्रैल डॉ.अम्बेडकर जयंती, 20 अगस्त एवं 2 अक्टूबर गांधी जयंती पर सार्वजनिक तौर पर ग्राम सभा की बैठक होनी चाहिये। कई महत्वपूर्ण अवसरों पर तो शासन की ओर से भी ग्राम सभा आयोजित करने के निर्देश दिये जाते हैं।

ग्रामवासियों को भी होता है ग्राम सभा करने का अधिकार

मध्यप्रदेश पंचायतीराज अधिनियम के तहत ग्राम सभा आयोजन के लिये कई प्रावधान हैं। ग्राम सभा की बैठक बुलाने का अधिकार ग्राम पंचायत के सरपंच के पास होता है। ग्राम सभा के 1/10 सदस्यों के लिखित अनुरोध पर भी ग्राम सभा की बैठक बुलानी होती है। आमतौर पर साल में 4 बार ग्राम सभा की बैठकें आयोजित की जाती हैं। इन बैठकों में ग्राम सभा पंचायत के बजट, मनरेगा, लाभार्थियों का चयन और अन्य कामों को पारित किया जाता है। ग्रामवासियों को भी ग्राम सभा करने का अधिकार है। इसके लिये ग्राम पंचायत की 10 फीसदी से ज्यादा मतदाता एक सप्ताह पूर्व सचिव को सूचना देकर निर्धारित दिवस को ग्राम सभा की बैठक आहुत कर सकते हैं। यह प्रावधान इसलिये है जिससे सरपंच-सचिव की निरंकुशता पर अंकुश लग सके।
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इनका कहना है

म.प्र. पंचायतीराज अधिनियम में यह प्रावधान है कि संंबंधित ग्राम पंचायत के 10 फीसदी मतदाता सचिव एवं सरपंच को 7 दिवस पूर्व सूचना देकर निर्धारित दिवस को सार्वजनिक रूप से ग्राम सभा की बैठक आहुत कर सकते हैं। पंचायतीराज अधिनियम की धारा 6ए में यह स्पष्ट प्रावधान है। यह जरूर है कि इसके लिये ग्राम पंचायत क्षेत्र के 10 फीसदी मतदाताओं की राय इस मामले में समान होनी चाहिये।
अंशुमान राज, सीईओ, जिला पंचायत सीधी

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