भोपाल में एक नशे का कारखाना पकड़ा गया है, जहां से लगभग 1900 करोड़ की नशे की सामग्री पकड़ी गई है. प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से नशे का कारोबार तो बढ़ ही रहा था लेकिन राजधानी में पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे जिस तरह नशे की फैक्ट्री चल रही थी वह अत्यंत खतरनाक और चिंता जनक है. पुलिस, भोपाल में की गई कार्रवाई पर अपनी पीठ थपथपा सकती है लेकिन प्रदेश सरकार, प्रशासन और पुलिस को इस बात का जवाब देना ही होगा कि आखिर राजधानी में इस तरह के नशे की फैक्ट्री कैसे चल रही थी ? सरकार के पास अनेक ऐसे विभाग होते हैं जो ड्रग और केमिकल फैक्टरीज और अन्य फैक्ट्रियों का लगातार निरीक्षण की रिपोर्ट देते हैं. आखिर इस कारखाने को किस तरह से क्लीनचिट मिलती रही ? इसके लिए कौन से अधिकारी जवाबदार हैं ? पूरे प्रकरण से स्पष्ट है कि प्रशासन और पुलिस ने गंभीर लापरवाही की है या सीधे शब्दों में कहा जाए तो भ्रष्टाचार किया है. अन्यथा राजधानी में इस तरह के नशे की फैक्ट्री चल ही नहीं सकती थी ! वो तो भला हो गुजरात पुलिस का जिसकी वजह से इस बहुत बड़े कांड का खुलासा हुआ है. जैसा कि विदित है राजधानी भोपाल के नए औद्योगिक क्षेत्र बगरोदा की एक फैक्ट्री में भोपाल और पुणे के दो व्यक्ति करीब छह माह से अवैध रूप से मादक पदार्थ मेफोड्रोन (एमडी) ड्रग्स बना रहे थे. रविवार को गुजरात पुलिस और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा संयुक्त रूप से कार्रवाई करते हुए फैक्ट्री से 900 किलोग्राम यानी लगभग 1900 करोड़ की एमडी ड्रग्स जब्त की गई. ड्रग्स के कारोबार के मामले में भोपाल के कोटरा सुल्तानाबाद निवासी अमित चतुर्वेदी पिता प्रकाशचंद चतुर्वेदी और नासिक के सान्याल बाने को गिरफ्तार किया है.
गुजरात में कुछ दिन पहले पकड़ाए ड्रग्स से भोपाल में फैक्ट्री संचालित होने का इनपुट मिला था..भोपाल में छह माह से ड्रग्स बनाने की यह अवैध फैक्ट्री संचालित हो रही थी, लेकिन भोपाल पुलिस को इसकी कोई भनक नहीं लगी. हाल ही में दिल्ली में तुषार गोयल नामक एक व्यापारी के पास 5600 करोड़ से अधिक के ड्रग्स बरामद हुए थे.बहरहाल, एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अवैध नशे का बाजार करीब तीन लाख करोड़ का है. एक पूरा ड्रग रैकेट चल रहा है जिसका संबंध अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफियाओं से है. भारत में ड्रग समुद्र के रास्ते अवैध रूप से लाई जाती है. भारत के जिन राज्यों में अफीम की खेती होती है वहां से अफीम ले जाकर ड्रग बनाई जाती है. पिछले साल तमिलनाडु, बिहार और आंध्र प्रदेश में भी इस तरह की ड्रग फैक्ट्रियां पकड़ाईं थी. मुंबई, हैदराबाद, भावनगर, बेंगलुरु और चेन्नई ड्रग पेडलिंग के प्रमुख गढ़ हैं. बॉलीवुड और दक्षिण भारत के फिल्म जगत में बड़ी मात्रा में नशे की सप्लाई, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु से होती है. देश के 20 बड़े महानगरों में किए गए एक सर्वे के अनुसार उच्च शिक्षित और उच्च वर्ग के पांच $फीसदी युवा नशे के आदी हो गए हैं. करियर की दौड़, वर्किंग प्लेस का दबाव, पैसे कमाने की अंधी दौड़, हताशा तनाव के कारण हमारे देश का युवा नशे का आदि होता जा रहा है. पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य सबसे अधिक नशे की चपेट में है. नशे के कारण न केवल अपराध बढ़ते हैं बल्कि आतंकवादियों को भी फायदा पहुंचता है. दुनिया में अधिकांश टेरर फंडिंग ड्रग तस्करी के द्वारा की जाती है. जाहिर है नशे के कारोबार को समाप्त करना ही होगा अन्यथा हमारी युवा पीढ़ी इसी तरह बर्बाद होती रहेगी. इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर समन्वित प्रयास करने होंगे. नशा देश और समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है बन गया है. जहां तक मध्य प्रदेश का सवाल है तो सरकार को एक बड़ा अभियान चला कर प्रत्येक जिले से ड्रग माफियाओं को नष्ट करना होगा. प्रदेश में बढ़ता नशे का कारोबार वास्तव में चिंताजनक है.