जमानत के मामले में हमेशा बहस होती आई है. खासतौर पर पीएमएलए कानून के लागू होने के बाद जमानत को लेकर ज्यादातर कानूनी विशेषज्ञों ने इसके विरोध में अपने विचार व्यक्त किए हैं. पीएमएलए कानून के तहत ईडी गिरफ्तार करती है. इसमें गिरफ्तार व्यक्तियों की जमानत बेहद मुश्किल मानी जाती है. मनीष सिसोदिया जैसे हाई प्रोफाइल आरोपियों को भी लगभग डेढ़ वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल पाई. केंद्र सरकार पर इस कानून के दुरुपयोग का भी आरोप लगता है.ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह कहना बेहद महत्वपूर्ण है कि जेल ‘अपवाद’ है और जमानत ‘नियम’ है. निचली अदालतों को भी यह ध्यान में रखना चाहिए और जमानत देने में संकोच नहीं करना चाहिए.दरअसल,दिल्ली शराब नीति घोटाले में पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और ‘भारत राष्ट्र समिति’ की नेता के. कविता को भी सर्वोच्च अदालत ने जमानत पर रिहा किया है.हालांकि सिसोदिया को करीब डेढ़ साल और कविता को पांच महीने जेल में काटने पड़े हैं, जबकि दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसी केस में जेल में अब भी बंद हैं.जेल-जमानत वाले न्यायिक सिद्धांत के पीछे सर्वोच्च अदालत के न्यायाधीश औसतन व्यक्ति की मुक्ति के मौलिक और संवैधानिक अधिकार की दलील देते रहे हैं कि महज जांच और पूछताछ के लिए व्यक्ति को लंबे समय तक जेल में बंद रखना गैर-न्यायिक है.जमानत का प्रावधान भी संवैधानिक नियम है.बीते कुछ समय से ‘जमानत’ को लेकर सर्वोच्च अदालत की मानसिकता और सोच में बदलाव आया है. यकीनन यह स्वागत-योग्य निर्णय है, क्योंकि मानवीय है.यह बदलाव अपेक्षित और कालातीत भी था और कई मंचों पर विमर्श के जरिए मांग की जा रही थी कि जमानत की प्राथमिकता होनी चाहिए.एक अहम कारण यह भी रहा है कि देश में जितनी जेलें हैं और उनमें कैदियों की क्षमता है, उनसे अधिक कैदियों को जेल में बंद किया जा रहा है.
हिरासत वाले आरोपितों को भी जेल में कैद किया जा रहा है, लिहाजा लगातार अनियमितताएं और विसंगतियां उभर कर सामने आ रही हैं. करीब दो साल पहले ‘विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत सरकार’ के केस में सर्वोच्च अदालत ने पीएमएलए कानून के अत्यंत कड़े प्रावधानों को ‘सही’ करार दिया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले की समीक्षा की और यह पाया कि केंद्रीय एजेंसियां पीएमएलए एक्ट का दुरुपयोग कर रही हैं.जुलाई में शराब घोटाले के संदर्भ में ही केजरीवाल को जमानत देते हुए सर्वोच्च अदालत के न्यायाधीशों ने ईडी की व्यापक शक्तियों पर सवाल उठाए थे, जिनके तहत एजेंसी गिरफ्तारियां करती रही है. जमानत के बावजूद केजरीवाल सीबीआई केस में जेल में बंद हैं.हालांकि वह केस भी बड़ी न्यायिक पीठ को सौंप दिया गया है, लेकिन अदालत की पीठ ने टिप्पणियां की थी कि ईडी अपने आप में ही विश्वास कर लेती है और उसी आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर लेती है.व्यक्ति को आरोपी मान लेती है.किसी को भी गिरफ्तार करने से पूर्व लिखित में देना चाहिए कि एजेंसी फलां आधार पर आपको गिरफ्तार करना चाहती है.उस लिखित रिकॉर्ड के आधार पर आरोपित अदालत में उस कथित अवैध गिरफ्तारी को चुनौती दे सकता है. कानून में ये बचाव जरूरी हैं, क्योंकि धनशोधन मामले में जमानत लेना लगभग असंभव बना दिया गया है. जमानत के हालिया मामलों में न्यायाधीशों ने कानून की संकीर्णता से उठकर फैसले सुनाए हैं. ये भी बहुत चुनौतीपूर्ण काम हैं. कुछ संदर्भों में सर्वोच्च अदालत ने यह नियम स्थापित कर दिया है कि यदि आरोपित ने अपराध की अधिकतम अवधि का आधा समय भी जेल में काट लिया है, तो उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाए. दरअसल, इस मामले में सरकार को कानून बनाने की जरूरत है, जिससे जमानत सुनिश्चित रूप से सभी को मिल सके.