हाल ही में आई यूनेस्को की ‘ टेक्नोलॉजी इन एजुकेशन’ रिपोर्ट के मुताबिक टेक्नोलॉजी से हद से ज्यादा जुड़े रहना, विशेष रूप से स्मार्टफोन के इस्तेमाल की अति से बच्चों के प्रदर्शन पर नकारात्मक असर पड़ता है. रिपोर्ट में शामिल मूल्यांकन के आंकड़े बताते हैं कि हरदम मोबाइल पास होने से विद्यार्थियों का ध्यान भटकता है.सीखने की क्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ता है.आने वाले नोटिफिकेशन ही नहीं, मोबाइल के पास होने मात्र से भी ध्यान भटकने की स्थिति बन जाती है.यूनेस्को की रिपोर्ट में सभी देशों से सावधानीपूर्वक विचार करने और स्कूलों में टेक्नोलॉजी का सार्थक ढंग से इस्तेमाल करने का आग्रह किया है. बेहतर हो कि डिजिटल गैजेट्स से दूरी की इस कोशिश में घर का माहौल भी साथी बने.चिंतनीय है कि मोबाइल पर गेम खेलने की लत हो या रील-वीडियो देखते रहने का जुनून. बच्चों का बहुत सा समय स्क्रीन स्क्रॉलिंग में ही बीत रहा है.डांटने-डपटने से बच्चे अतिवादी कदम तक उठा ले रहे हैं.इसीलिए वर्चुअल दुनिया में उलझे बालमन को हिदायत भी सोच-समझकर ही देनी होगी.बच्चों के साथ न तो सख्ती बरती जा सकती है और न ही स्मार्ट फोन में खोये रहने की खुली छूट दी जा सकती.आज के समय में पढ़ाई और दूसरी कई जरूरी सूचनाएं भी फोन के जरिये ही मिलती हैं. स्मार्ट फोन जैसी सौगातों-सुविधाओं के अनगिनत फायदे हैं.बस इनका सधा और सीमित इस्तेमाल करने की सीख जरूरी है.
पैरेंट्स का समय रहते चेतना आवश्यक है.बच्चा स्मार्ट फोन के साथ कितना समय बिता रहा है? क्या कंटेंट देख रहा है? फोन छोडऩे की हिदायत पर उसका बर्ताव कैसे बदलता जा रहा है? बच्चे के व्यक्तित्व में किस तरह के डिसऑर्डर होने लगे हैं? नजर कमजोर होने, मोटापा बढऩे और शारीरिक पोश्चर बिगडऩे जैसी शारीरिक परेशानियां क्यों होने लगी हैं? जैसी बातों पर ध्यान देना जरूरी है.आमतौर पर आस-पास होते हुए भी पैरेंट्स ऐसी बातों और बदलावों पर जरा देर से ध्यान देते हैं. जबकि तकनीकी गैजेट्स के घेरे में आते बच्चों में आदत से लत बनने की स्थितियों में माता-पिता का अलर्ट रहना जरूरी है.बच्चों को समय-समय पर डिजिटल फास्टिंग करवाने से यह जानना-समझना आसान हो जाता है कि घर के छोटे सदस्य स्मार्ट गैजेट्स पर कितना निर्भर हुए हैं? डिजिटल फास्टिंग में बच्चे इन तकनीकी साधनों से जरा भी दूर न रह पाएं तो स्पेशलिस्ट से परामर्श लेकर बालमन को इस जाल से निकालने में देरी नहीं करनी चाहिए.अभिभावक का नियमित संवाद बच्चों को डिजिटल फास्टिंग में मदद करता है. आपसी बातचीत में बच्चों को डिजिटल मीडिया के खतरों को समझाने वाला परिवेश बनाया जा सकता है. इस सधेपन को लाइफस्टाइल का हिस्सा बनाए बिना बच्चों को स्क्रीन के मोहपाश से नहीं निकाला जा सकता. स्मार्ट गैजेट्स के सही इस्तेमाल के लिए बच्चों को शारीरिक सक्रियता की ओर मोडऩा भी आवश्यक है. डांटने या गुस्सा करने के बजाय अभिभावक खुद उनके साथ आउटडोर गेम खेलने जाएं. मोबाइल की लत बच्चों का पढ़ाई से ध्यान भटकाने के साथ ही रिशतेदारों और दोस्तों से ही नहीं, अभिभावकों से भी दूर कर रही है. बहुत ज्यादा समय गेम खेलने और वीडियो देखने में बिताने वाले बच्चे एक अलग ही संसार में रहने लगते हैं. डिजिटल फास्टिंग का रूल और घर के बड़ों का स्नेह-साथ ही बालमन को वर्चुअल भूलभुलैया से बाहर ला सकता है. दिन के कुछ घंटे, सप्ताह का कोई दिन या वीकेंड आदि फोन स्क्रीन से दूर अपनों संग बिताने का नियम बनाएं.
बच्चों को कुछ भी सिखाने के लिए माता-पिता द्वारा खुद भी वह एक्टिविटी करनी आवश्यक है. घर के छोटे सदस्यों को डिजिटल फास्टिंग के फायदे केवल बातों से नहीं समझाये जा सकते.अभिभावकों को भी स्क्रीन से दूरी बनानी होगी.पैरेंट्स ही स्क्रीन स्क्रॉल करने में व्यस्त रहें तो बच्चे अकेलापन महसूस करते हैं.इसीलिए इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का कम इस्तेमाल करने का नियम पहले खुद के लिए बनाएं. रोकने-टोकने भर से बच्चों को इस ललचाती-भरमाती दुनिया से नहीं निकाला जा सकता.घर का पूरा माहौल बदले बिना बच्चे डिजिटल फास्टिंग के नियम नहीं मानेंगे.गैजेट्स से दूर रहने का यह फैसला एक साझी प्रैक्टिस है. बच्चों का स्मार्ट गैजेट्स के इस्तेमाल का वक्त घटाने के लिए बड़ों को भी अपनी जीवनशैली बदलनी ही होगी.