नयी दिल्ली 09 अगस्त (वार्ता) जमाकर्ताओं और निवेशकों के लिए बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करने, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में लेखापरीक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने और सहकारी बैंकों में निदेशकों (अध्यक्ष और पूर्णकालिक निदेशक के अलावा) के कार्यकाल में वृद्धि करने के उद्देश्य से बैंकिंग कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया जा रहा है।
सूत्रों ने आज यहां बताया कि प्रस्तावित बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक 2024 का उद्देश्य शासन मानकों में सुधार करना और बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को रिपोर्टिंग में निरंतरता प्रदान करना भी है।
सूत्रों ने कहा कि विधेयक की मुख्य विशेषताओं में बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 45जेडए, 45 जेडसी और 45जेडई में संशोधन कर अधिकतम चार नामांकित व्यक्तियों की अनुमति प्रदान करने का प्रस्ताव है। इसमें एक साथ और क्रमिक नामांकन के प्रावधान शामिल हैं, जो जमाकर्ताओं और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए अधिक लचीलापन और सुविधा प्रदान करते हैं, विशेष रूप से जमाराशियों, सुरक्षित अभिरक्षा में रखी वस्तुओं और सुरक्षा लॉकरों के संबंध में।
विधेयक भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 की धारा 38ए, बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970/1980 की धारा 10बी में संशोधन करने का प्रयास भी करता है। अदावी लाभांश, शेयर और ब्याज या बांड की राशि को निवेशक शिक्षा और संरक्षण कोष (आईईपीएफ) में स्थानांतरित करने में सक्षम बनाने के लिए, व्यक्तियों को निधि से हस्तांतरण या रिफंड का दावा करने की अनुमति देने का प्रावधान किया जा रहा है। इस प्रकार निवेशकों के हितों की रक्षा करने की कोशिश की जायेगी।
बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 18, 24, 25 और 56 और आरबीआई अधिनियम की धारा 42 में संशोधन कर बैंकों द्वारा आरबीआई को वैधानिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने की रिपोर्टिंग तिथियों को शुक्रवार से बदलकर पखवाड़े, महीने या तिमाही के अंतिम दिन करने का प्रस्ताव किया गया है। यह परिवर्तन रिपोर्टिंग में एकरूपता सुनिश्चित करेगा। संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2011 के अनुरूप बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 10ए की उपधारा (2ए) के खंड (आई) में संशोधन करने का प्रस्ताव भी किया गया है, जिससे सहकारी बैंकों में निदेशकों (अध्यक्ष और पूर्णकालिक निदेशकों को छोड़कर) का कार्यकाल 8 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष किया जा सकेगा।
बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5 के खंड (एनई) में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि ‘सब्सटेनियल इंट्रेस्ट’ को पुनः परिभाषित किया जा सके। सब्सटेनियल इंट्रेस्ट की शेयरधारिता की सीमा 5 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है क्योंकि इसे अंतिम बार 1968 में तय किया गया था।
इसके अतिरिक्त बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 16 की उपधारा (3) में संशोधन का प्रस्ताव भी किया जायेगा ताकि केंद्रीय सहकारी बैंक के निदेशक को राज्य सहकारी बैंक के बोर्ड में सेवा करने की अनुमति मिल सके।