करोड़ों रूपये की सामग्री खरीदी की जांच तिजोरी में बंद

डीपीओ पर है घपला करने का आरोप, मुख्यमंत्री से लेकर ईओडब्ल्यू तक पहुंची थी शिकायत, एनसीएल परियोजना से मिली थी सीएसआर की राशि

सिंगरौली :महिला एवं बाल विकास विभाग ने दो सैकड़ा से अधिक आदर्श आंगनवाड़ी केन्द्र बनाने के नाम पर करोड़ों रूपये का खेला पिछले वर्षो के दौरान डीपीओ ने किया है। इस तरह के आरोप लगाते हुये मुख्यमंत्री से लेकर ईओडब्ल्यू तक शिकायत की गई। ईओडब्ल्यू से जांच के संबंध में दो रिमांडर पत्र भी आएं। लेकिन जिले के अधिकारी जांच फाईल को तिजोरी में बंद कर बैठ गएं हैं। जांच में क्या प्रगति हुई अधिकारी बताने से भाग रहे हैं।गौरतलब है कि एनसीएल परियोजना दुधीचुआ एवं महिला बाल विकास के बीच जिले के करीब 2 सैकड़ा से अधिक आंगनगाड़ी केन्द्रों को आदर्श आंगनबाड़ी केन्द्र बनाने के लिये अनुबंध हुआ था।

इसके लिये करोड़ों रूपये एनसीएल परियोजना दुधीचुआ के सीएसआर के मद से प्राप्त हुये थे। यह राशि महिला एवं बाल विकास विभाग को पिछले वर्ष 2022-23 में मिला था। इस राशि से आंगनबाड़ी केन्द्रों को उत्कृष्ट बनाने का उद्देश्य था। किन्तु आरोप है कि जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास राजेश राम गुप्ता ने व्यापक पैमाने पर राशि की बंदरबाट कर लिया है। इस तरह के आरोप शिकायतकर्ता पवन पटेल अधिवक्ता ने लगाते हुये मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शासन, लोकायुक्त भोपाल, प्रमुख सचिव महिला एवं बाल विकास भोपाल, संभागायुक्त रीवा एवं कलेक्टर सिंगरौली के यहॉ शिकायत पत्र भेजा था।

सूत्र बताते हैं कि शिकायतकर्ता ने डीपीओ राजेश राम गुप्ता पर सामग्री क्रय करने में व्यापक पैमाने पर हेरफेर, गड़बड़ी एवं सरकार को लाखों रूपये का चूना लगाने का गंभीर आरोप लगा चुके हैं। इस आरोप के आधार पर ईओडब्ल्यू ने भी जहॉ जांच शुरू किया है वहीं कलेक्टर सिंगरौली के पत्र क्रमांक 760 दिनॉक 18 जुलाई 2023 के आधार पर जिला पंचायत सीईओ सिंगरौली ने जिला कार्यक्रम अधिकारी आईसीडीएस सिंगरौली को कारण बताओं नोटिस भेजकर जवाब मांगा था। किंतु यह भी चर्चा है कि डीपीओ ने अपने जवाब में क्रय समिति को जिम्मेदार ठहराते हुये गोलमाल जवाब दिया था। सामग्री क्रय के कीमतों के हेर-फेर के मामले मेंं कोई ठोस जवाब नहीं दिया। बल्कि डीपीओ अपने आप को ईमानदारी में हरिश्चन्द्र बनने का तमंगा लगाने का भरपूर कोशिश किया था।
साल भर बाद भी पूर्ण नही हुई जांच
उधर सूत्र यह भी बताते है कि एक साल के ऊपर जांच प्रतिवेदन ईओडब्ल्यू के यहां न पहुंचने पर जिला प्रशासन को दोबारा रिमांडर पत्र जारी हुआ। लेकिन आरोप यह लग रहा है कि डीपीओ अपने दफ्तर के स्टाफ पर इस तरह धौस जमाया है कि किसी की जुबान एक शब्द नही निकल सकती। डर के मारे स्टाफ चौथी ऑख से जब कभी मिलना होता है तो छुपछुप कर मिलने की कोशिश करते हैं और अपने बेवसी बताने लगते हैं और यहां तक कहते हैं कि साहब साफ अल्टीमेटम है कि यदि विभाग की कोई गोपनियता बाहर गई तो शाखा बदलकर कार्रवाई करना तय है। फिलहाल करोड़ों रूपये की सामग्री खरीदी में गोलमाल किये जाने के मामले की जांच साल भर बाद भी पूर्ण न होने पर जांच अधिकारी भी सवालों के कटघर्रे में घिरते नजर आ रहे हैं। वही डीपीओ पर जिला प्रशासन की में मेहरवानी समझ से परे है।

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