गौपालक ने गर्भावस्था के अंतिम महीने में गाय को जानकी नगर धार में आवारा की तरह छोड़ दिया था ।
मसीह स्कूल के पास गाय ने दिन में एक बछड़ी को जन्म दिया, स्थानीय निवासियों के सूचित करने पर नगर पालिका के कर्मचारी वहां आए व 1962 सरकारी पशु एम्ब्युलेंस के द्वारा इलाज करवाया गया । शाम तक गाय पीड़ा में रही व जन्मी बछड़ी का भी गौपालक कोई सुध लेने नहीं आया, स्थानीय रहवासियों ने ही गाय व बछड़ी के आहार आदि का ध्यान रखा ।
देर शाम को रहवासियों की सूचना पर प्रकृति वात्सलय गौशाला की टीम स्थल पर पहुँची व गौमाता को असहनीय दर्द में देखकर (उनका गर्भाशय व आँतें बाहर निकली हुयीं थीं) पशु चिकित्सालय के डॉक्टर्स को बुलवाकर इलाज करवाने की भरसक कोशिश की गई किन्तु गौमाता की मृत्यु हो गयी । नन्ही सी बछड़ी को गौशाला के संरक्षण में लाया गया । इस कोशिश में नगर पालिका के कर्मचारियों, स्थानीय रहवासियों व पशु चिकित्सालय डॉक्टर्स का सहयोग रहा ।
निजी गौपालकों की ऐसी क्रूर लापरवाही जिसमे गौमाता को गर्भावस्था के अंतिम महीने में सडक़ पर आवारा की तरह छो? देना कब तक होती रहेगी ? ना ही ये गौवंश को चराने ले जाते हैं और बल्कि सडक़ों पर गंदगी व थैलियां खाने को विवश कर देते हैं ।उल्लेखनीय है कि प्रकृति वात्सल्य गौशाला एक ऐसा आश्रय है जिसमें बीमार, अनाथ, वृद्ध अथवा दुर्घटनाग्रसित गौवंश का इलाज किया जाता है ।