आगाज़ अच्छा है अंजाम भी अच्छा हो !

वैसे तो 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून को प्रारंभ हुआ था लेकिन पहले दो दिन नए सदस्यों को शपथ दिलाने में निकल गए. इसलिए यह माना जाना चाहिए कि 18वीं लोकसभा का पहला दिन दरअसल बुधवार को था.बुधवार को ध्वनि मत से लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन संपन्न हुआ. कोटा के तीसरी बार चुने गए सांसद ओम बिड़ला को फिर से लोकसभा अध्यक्ष के पद पर चुन लिया गया है. परंपरा अनुसार सत्ता पक्ष के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी उन्हें आसंदी तक ले गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी दोनों ने ही नए स्पीकर से अपेक्षा की है कि वो सक्षमता से और निष्पक्षता पूर्वक सदन का संचालन करेंगे. राहुल गांधी ने अपेक्षा की कि लोकसभा अध्यक्ष छोटी-छोटी पार्टियों को भी अपनी बात कहने का अवसर देंगे. सदन की शुरुआत में सबसे अच्छा दृश्य यह दिखा कि राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अभिवादन किया और उनसे हाथ मिलाया. इस सामान्य से दिखने वाले शिष्टाचार का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि पिछले दो-तीन वर्षों के दौरान राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अनेक अवसरों पर तीखी नोक झोंक हुई है. राहुल गांधी और प्रधानमंत्री दोनों ही एक दूसरे के खिलाफ बेहद आक्रामक नजर आए हैं.

सबसे अच्छी बात यह हुई कि राहुल गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार संवैधानिक पद यानी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद स्वीकार किया. यूपीए 2 के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने 2012 के आसपास यह पेशकश की थी कि राहुल गांधी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होकर जिम्मेदारी निभाना चाहिए जिससे उन्हें सरकार का अनुभव मिल सके, लेकिन राहुल गांधी ने यह जिम्मेदारी उठाने से इनकार कर दिया. बहुत दबाव के बाद 2017 में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का पद स्वीकार किया था जिसे 2019 की पराजय के बाद उन्होंने छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने किसी भी पद पर आने से इनकार किया. इससे यह परसेप्शन बना कि राहुल गांधी पार्ट टाइम पॉलिटिशियन हैं,वो राजनीति को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. हालांकि उन्होंने भारत जोड़ो और भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकालकर यह जताने की कोशिश की कि वो जनता से जुड़ी समस्याओं के प्रति गंभीर है और देश को जानना चाहते हैं.बहरहाल, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद स्वीकार कर राहुल गांधी ने बहुत ही सही फैसला लिया है. इससे न केवल उनके संगठन को फायदा होगा बल्कि विपक्ष नए आत्मविश्वास और तेवर के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की गलतियों को जनता के समक्ष ला सकेगा. जाहिर है केंद्र सरकार के लिए अगले 5 वर्ष चुनौती पूर्ण होने वाले हैं.दरअसल,

2024 के लोकसभा चुनावों के परिणामों से स्पष्ट है कि जनता मजबूत और नए भारत के साथ ही बुनियादी समस्याओं का हल भी चाहती है. बुनियादी या जनता से जुड़ी समस्याओं का मतलब यह है कि संसद में महंगाई, बेरोजगारी, महिला उत्पीडऩ, किसानों, दलित और आदिवासियों की समस्याओं पर चर्चा हो. सभी जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र की समस्याओं को उठाएं और उनका हल करने के लिए संसद के जरिए प्रयत्न करें. देश की जनता यही चाहती है कि पक्ष और विपक्ष मिलजुल कर देश की उन्नति में एक दूसरे को सहयोग दें. जाहिर है इस मामले में सत्ता पक्ष की जवाबदारी सबसे अधिक बनती है. सदन को चलाना और स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं को कायम रखने की सबसे ज्यादा जवाबदारी केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की है. जनता ने देखा है कि पिछली बार संसद की कार्रवाई लगभग हर सत्र में बाधित हुई है. संसद में हंगामे के कारण जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा व्यर्थ चला जाता है. हंगामे के कारण सदन की कार्रवाई बाधित होती है और सार्थक बहस नहीं हो पाती. पिछली बार देखा गया है कि कई महत्वपूर्ण विधेयक भाजपा ने बहुमत के दम पर ध्वनि मत से पारित करवा लिए. यानी शोर शराबे के बीच बिना किसी बहस के विधेयकों को पारित घोषित कर दिया गया. ऐसा नहीं है कि संसद बाधित होने के पीछे केवल सत्ताधारी दल की गलती होती है.कई बार विपक्षी दल भी अपनी जिद के कारण सदन चलने नहीं देते. कुल मिलाकर कारण कुछ भी हो संसद का नहीं चलना देश का नुकसान है. इसलिए जरूरी है कि पक्ष और विपक्ष मिलजुलकर संसद की कार्रवाई चलाएं. यह तभी हो सकता है जब सत्ताधारी दल उदारता पूर्वक विपक्ष की उचित मांगों को मंजूर करें. दरअसल,सत्ता पक्ष को विपक्ष की आलोचनाओं को धैर्य पूर्वक सुनना चाहिए तथा जहां भी लगे उचित सुधार भी करना चाहिए. आशा की जानी चाहिए कि जो दृश्य बुधवार को सदन में दिखा वही दृश्य आने वाले पूरे 5 साल देखने को मिलेगा !

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