अरुण की अब कोई पहल नहीं, पार्टी कहेगी तो लड़ लेंगे

मालवा- निमाड़ की डायरी
संजय व्यास

हाल के राज्य सभा चुनाव में प्रदेश में 5 में से 1 सीट पर जीत के समीकरण के मद्देनजर पूर्व कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष प्रत्याशी बनाने के लिए भरपूर जोर लगाया था, पर उन्हें सफलता नहीं मिली. कुछ वर्षों से पार्टी में उपेक्षित चल रहे अरुण यादव को उम्मीद थी कि राहुल-प्रियंका गांधी से सीथी बातचीत के चलते राज्य सभा उम्मीदवार बनाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी, क्योंकि प्रदेश कांग्रेस द्वारा अपनी उपेक्षा की शिकायत लेकर अनेक बार दिल्ली दरबार में अर्जी लगा चुके थे. हमेशा उन्हें राहुल-प्रियंका की ओर से सकारात्मक संकेत मिलते रहे.

प्रदेश कांग्रेस कर्ताधर्ताओं के रवैये के कारण ही अरुण यादव ने विधान सभा चुनाव न लडऩे का फैसला लिया था. पिछले घटनाक्रमों को देखते हुए खंडवा लोकसभा क्षेत्र से हर समय चुनावी तैयारियों में जुटे रहने वाले अरुण यादव यहां भी गतिविधियों से दूर रहे ओर राज्य सभा के रास्ते केंद्र में रहने का मन बना लिया था. मगर उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई. अब लोक सभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है, लेकिन इसबार अरुण ने सोच लिया है कि वे अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करेंगे, पार्टी चुनाव में उतारेगी तो लड़ लेंगे. यही कारण है कि उन्होंने अपने आपको सीमित कर लिया है. विगत माह भर से वे केवल अपने खरगोन जिले में स्थित शैक्षणिक संस्थानों की गतिविधियों में पूरा समय दे रहे हैं. उनकी राजनीतिक कार्यों में उपस्थिति कम ही नजर आ रही है.

उमंग पर अंचल की चार सीटें जिताने का दारोमदार

पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के सह प्रभारी के रूप में झारखंड में अपनी क्षमता सिद्ध कर चुके आदिवासी नेता उमंग सिंघार के सामने अब लोक सभा चुनाव में प्रदेश की आदिवासी सीटों पर कांग्रेस को विजयश्री दिलाने की चुनौती है. विशेषकर उनके खाते में मालवा-निमाड़ की चार सीटों को जिताने का दारोमदार है. आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित खरगोन-बड़वानी, रतलाम-झाबुआ, धार और आदिवासी बहुल खंडवा सीट फिलहाल भाजपा के कब्जे में है. संसदीय चुनाव में रतलाम-झाबुआ सीट को छोडक़र खरगोन, धार व खंडवा में भाजपा का वर्चस्व देखने को मिलता रहा है. रतलाम-झाबुआ सीट पर कांग्रेसी नेता कांतिलाल भूरिया का दबदबा रहा. उमंग सिंघार अभी विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में पार्टी की ओर से महती जिम्मेदारी निभा रहे हैं. विधान सभा चुनाव में अपने गृह क्षेत्र में उनकी टीम के अच्छे प्रदर्शन के बाद उमंग सिंघार के समक्ष लोक सभा चुनाव में इसे दोहराने की चुनौती है.

धार जिले में भाजपा ने स्थिति की मजबूत

अभी के विधान सभा चुनाव में भाजपा को जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) के कारण क्षति उठानी पड़ी थी. जयस संस्थापक डॉ. हीरालाल अलावा ने 2018 की तरह इस चुनाव में भी कांग्रेस से समझौता किया था और मनावर सीट से उम्मीदवार थे. जयस के साथ रहने से भाजपा को झटका लगा था. कांग्रेस ने जिले की धार, धरमपुरी सीट छोडक़र मनावर, गंधवानी, सरदारपुर, कुक्षी, बदनावर सीट पर फतह की थी. भाजपा ने लोक सभा चुनाव से पूर्व जयस में सेंध लगा दी है. कुछ दिनों पहले भाजपा ने जयस संगठन के प्रदेश अध्यक्ष लाल सिंह बर्मन, रमेश सोलंकी जयस तहसील अध्यक्ष मनावर समेत सैकड़ों जयस  पदाधिकारी एवं कार्यकर्ताओं को पार्टी की सदस्यता ग्रहण करवाकर अपनी स्थिति मजबूत की है.

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