बुधवार को पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण दिवस मनाया गया. सबसे जरूरी है कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर बेहद व्यापक अभियान छोड़ा जाए. सिर्फ भाषण बाजी और बयान बाजी से कुछ नहीं होगा. इस समय दुनिया में पर्यावरण संरक्षण ही सबसे प्रमुख मुद्दा होना चाहिए क्योंकि प्रकृति के संरक्षण के जरिए ही हम मानवता को बचा सकते हैं. दरअसल, क्लाइमेट चेंज अब दुनिया की कड़वी हकीकत है. प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए तथा अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए पेड़-पौधे लगाना बहुत ज़रूरी है.
पेड़ पर्यावरण के लिए बहुत ज़रूरी इसलिए भी हैं क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड को खींचने और ऑक्सीजऩ छोडऩे के अलावा, पेड़ तूफ़ानी पानी के बहाव की मात्रा को भी कम कर सकते हैं. इससे हमारे जलमार्गों में कटाव और प्रदूषण कम होता है और बाढ़ के प्रभाव भी कम हो सकते हैं. पेड़-पौधों के माध्यम से प्रकृति सभी प्राणियों पर अनंत उपकार करती है. पेड़-पौधे हमें छाया प्रदान करते हैं। फल-फूलों की प्राप्ति भी हमें पेड़-पौधों से ही होती है.पेड़-पौधों से हमें ऑक्सीजऩ की प्राप्ति होती है, जो हमें जीवित रखने के लिए बहुत आवश्यक है.
इसके अलावा, कई वन्यजीव प्रजातियां अपने आवास, सुरक्षा और भोजन के लिए पेड़ों पर निर्भर हैं. पेड़ों से मिलने वाली छाया और भोजन से मनुष्य को लाभ होता है.कई पेड़-पौधों की छाल औषधि बनाने के काम आती है तो पेड़-पौधों की सूखी पत्तियों से खाद भी बनती है. पेड़-पौधे हमारे पर्यावरण को भी सुरक्षित रखते हैं, इसलिए हमें पेड़-पौधे नहीं काटने चाहिए. आज हम अपने लालच के लिए पेड़-पौधे काटकर अपने पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं.इससे पक्षियों के घर उजड़ रहे हैं तथा वातावरण भी दूषित हो रहा है. वृक्ष काटने से ही बाढ़, भूमि-स्खलन आदि होते हैं. इसीलिए वृक्षारोपण करना आवश्यक है, इसके कई सारे लाभ हमारे जीवन में होते हैं परन्तु वर्तमान में वृक्षारोपण के लिए मौसमी परिस्थितियों की अनुकूलता भी बहुत आवश्यक है.बहरहाल, पर्यावरण असंतुलन और हरियाली के विनाश का खामियाजा हम तापमान में वृद्धि के रूप में भुगत रहे हैं.पिछले कई दिनों से देश के अधिकांश हिस्सों का तापमान 40 से 48 डिग्री तक रिकॉर्ड किया गया. जाहिर है पानी अब फिर से ऊपर जा रहा है .दुर्भाग्य और विडंबना यह है कि हम अब भी पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.पृथ्वी का तापमान बढ़ता ही जा रहा है. यह कार्बन उत्सर्जन, विषैली गैसों और धुएं का ही असर है कि जिन यूरोपीय देशों में, घर-दफ्तरों में, पंखे ही नहीं होते थे और अधिकतर मौसम सर्द ही रहता था, वहां आजकल तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक है. वहां के लोग तालाबों, झरनों में नहा रहे हैं और घर-दफ्तरों में पंखे भी चलने शुरू हो गए हैं.इटली के वेनिस शहर की झीलों पर सूखने के संकट मंडरा रहे हैं. दुनिया भर से लोग इस खूबसूरत शहर में आते रहे हैं और झीलों में नौका-विहार का आनंद उठाते रहे हैं, लेकिन लगातार गर्मी इतनी बढ़ती जा रही है कि झीलों का पारदर्शी पानी भाप बनने लगा है.ये प्रत्यक्ष तौर पर जलवायु परिवर्तन के ही प्रभाव हैं.भारत में 90 प्रतिशत से अधिक कामगार और मजदूर खुले में ही काम करने को बाध्य हैं.यदि जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मियां लगातार लंबी होती रहीं, तो इस तरह काम करना असंभव-सा होता जाएगा. जाहिर है कि कामगारों की औसत उत्पादकता और कार्य-शक्ति कम होती जाएगी. अंतत: नुकसान देश का ही होगा. सर्वोच्च अदालत और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को लेकर सरकारों को फटकार लगाते रहे हैं.चेतावनियां भी जारी करते हैं, लेकिन हमारा राजनीतिक नेतृत्व इस मामले में लापरवाह है.उसे भविष्य के खतरों से डर नहीं लगता.दुर्भाग्य यह भी है कि ये मुद्दे जन-सरोकार के आधार नहीं बनते. प्रदूषण और बदलते मौसम के भयावह खतरों पर आंदोलन नहीं किए जाते और न ही कोई इसे चुनावी मुद्दा बनता है.दरअसल, ग्लोबल वार्मिंग की समस्या वैश्विक स्तर पर है.यह माना जाता है कि इसके लिए ज्यादा दोषी विकसित देश हैं, जो अपनी जिम्मेवारी समझने के लिए तैयार नहीं हैं.कई अवसरों पर विकसित देशों ने वादा किया कि वे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को हल करने के लिए पूरे प्रयास करेंगे, लेकिन क्रियान्वयन के स्तर पर आज तक खास कुछ नहीं हुआ. तृतीय विश्व को विकसित देशों पर हर हाल में दबाव बनाना होगा कि वे अपनी जिम्मेवारी समझें, नहीं तो यह समस्या पूरे विश्व के लिए संकट पैदा कर देगी.