जालंधर 17 मार्च (वार्ता) ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) की संघीय परिषद की बैठक में बिजली (संशोधन) नियमों के माध्यम से बिजली मंत्रालय के निजीकरण के एजेंडे का जोरदार विरोध किया गया है।
एआईपीईएफ के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने रविवार को कहा कि पिछले दस वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने पांच बार बिजली संशोधन विधेयक का मसौदा तैयार किया लेकिन लगातार दो लोकसभा कार्यकाल में सफल नहीं हो सकी। उन्होने कहा कि प्रतिस्पर्धी बोली के नाम पर लगभग हर दर पर ट्रांसमिशन का बड़े पैमाने पर निजीकरण चल रहा है।
बैठक में एआईपीईएफ के मुख्य संरक्षक पदमजीत सिंह ने ग्लोबल वार्मिंग के मद्देनजर फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों और अधिक जल विद्युत उत्पादन परियोजनाओं की वकालत की। महासचिव रत्नाकर राव ने कहा कि बिजली इंजीनियर राजनीतिक नेताओं को निजीकरण के नुकसान के बारे में जानकारी देंगे। राज्य बिजली उपयोगिताओं में स्मार्ट मीटर की स्थापना बिजली क्षेत्र के निजीकरण का एक और तरीका है।
संघीय परिषद की चेन्नई में आयोजित बैठक में पंजाब, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, असम, गुजरात और तमिलनाडु सहित देश भर के 23 राज्य घटकों ने भाग लिया।
इस दौरान फेडरेशन के चुनाव में शैलेन्द्र दुबे को सर्वसम्मति से अध्यक्ष और पी रत्नाकर राव को लगातार तीसरी बार एआईपीईएफ का महासचिव चुना गया। वी के गुप्ता को फिर से फेडरेशन का प्रवक्ता बनाया गया है। उत्तराखंड के कार्तिक दुबे वरिष्ठ उपाध्यक्ष चुने गए। पंजाब के जितेंदर गर्ग और हरियाणा के विजेंदर लांबा को क्रमश: सचिव और संयुक्त सचिव बनाया गया। सुनील ग्रोवर और सत्या पॉल को संरक्षक बनाया गया।
एआईपीईएफ ने संघीय परिषद में महिला इंजीनियरों को शामिल करने के लिए अपने संविधान में संशोधन किया। पश्चिम बंगाल के एर मौपाली मुखोपाध्याय को एआईपीईएफ का वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनाया गया है।