लोक परिवहन को बढ़ावा देना जरूरी

हाल ही में दो सडक़ दुर्घटनाओं की चर्चा है. पुणे हिट एंड रन केस में एक युवा दंपति की दुखद मृत्यु हो गई. जबकि उत्तर प्रदेश केसरगंज के भाजपा के प्रत्याशी करण बृजभूषण सिंह की कार से टकराकर दो मजदूर गंभीर रूप से घायल हो गए. इन दोनों दुर्घटनाओं की राजनीतिक कारणों से भी खूब चर्चा है लेकिन इस चर्चा के दौरान यह विषय भी सामने आया कि यदि लोक परिवहन को बढ़ावा दिया जाए तो सडक़ दुर्घटनाओं में भी कमी आ सकती है और शहरों में विकराल होती यातायात समस्या का भी समाधान हो सकता है. इस संबंध में व्यापक और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. दरअसल, वर्तमान दौर में विकास का एक महत्वपूर्ण घटक परिवहन है और उससे जुड़ा सवाल जनसंख्या का है.सदियों से परिवहन हमारे शहरों और गांवों की जीवन रेखा के रूप में कार्य करता रहा है. लगातार आबादी बढऩे के साथ ही आवागमन के लिए सुलभ परिवहन पर हमारी निर्भरता भी बढ़ती जाती है.जनसंख्या वृद्धि और वाहनों की संख्या में बढ़ोतरी साथ-साथ ही होती है जिससे यातायात जाम वाली स्थिति अधिक बनती है और सडक़ों पर खर्च होने वाले घंटे लंबे होते जाते हैं.एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2050 तक हमारी वैश्विक आबादी 9.7 अरब तक पहुंचने का अनुमान है, जिनमें से अधिकांश लगभग 68.4 प्रतिशत लोग शहरी क्षेत्रों में रहेंगे.

भारत के संदर्भ में देखा जाए तो मौजूदा 1.4 अरब की आबादी 20&0 तक बढक़र 1.5 अरब से अधिक होने की उम्मीद है.वर्ष 2047 तक लगभग 51 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही होगी. ये आंकड़े चौंकाने वाले हो सकते हैं लेकिन ये हमें अपने रोजमर्रा के जीवन पर पडऩे वाले प्रभावों पर विचार करने के लिए थोड़ा ठहरकर सोचने के लिए मजबूर करते हैं. वर्ष 1950 से भारत ने अपनी आबादी में एक अरब की बढ़ोतरी देखी गई है.

रोड ट्रांसपोर्ट ईयर बुक 2019-20 के मुताबिक इसी अवधि के दौरान पंजीकृत वाहनों की संख्या ने आसमान छू लिया और यह संख्या 1951 के &00,000 से बढक़र 2020 में &2.6 करोड़ हो गई.आवागमन के साधन के तौर पर वाहन खरीदने वालों की तादाद बढऩे के साथ ही यातायात भीड़ की पुरानी समस्या और भी बढ़ती गई जिसके चलते हमारा रोजमर्रा का सफर सहनशक्ति की परीक्षा लेने वाला बनता जा रहा है.

एम्सटर्डम के एक शोध समूह द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बताया गया कि पुणे में जाम में फंसे रहने के कारण लोगों ने एक वर्ष में काम के पूरे पांच दिन गंवा दिए. उसी अध्ययन में, बेंगलूरु और पुणे को 202& में दुनिया के 10 सबसे खराब यातायात प्रभावित शहरों में छठे और सातवें स्थान पर रखा गया.बेंगलूरु की पहचान दुनिया के दूसरे सबसे अधिक भीड़-भाड़ वाले शहर के रूप में की गई.भीड़भाड़ वाली सडक़ों से गुजरने का तनाव और थकान लोगों के साथ-साथ पूरे समुदाय पर भी भारी पड़ता है. साथ ही, पर्यावरणीय प्रभाव को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.वाहनों के जाम में खड़े रहने के चलते हम जिस हवा में सांस लेते हैं वह भी प्रदूषित हो जाती है और इससे हमारे स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है.जैसे-जैसे हम इन चुनौतियों से जूझ रहे हैं, एक बात निश्चित रूप से स्पष्ट है कि हमें आवागमन के लिए टिकाऊ समाधान खोजने की आवश्यकता है. सार्वजनिक परिवहन में निवेश के साथ ही साइकल चलाने जैसे परिवहन के वैकल्पिक साधनों को बढ़ावा देना, पैदल चलना और स्मार्ट शहरी नियोजन रणनीतियों को लागू करना वास्तव में भीड़भाड़ कम करने और रहने योग्य शहर बनाने के लिए आवश्यक कदम हैं.अत्याधुनिक तकनीक से संचालित स्मार्ट परिवहन प्रणालियों को अपनाने से भी यातायात भीड़ को अनुकूल बनाए जाने और उनकी गतिशीलता को एक दिशा देने की अपार संभावना है. भीड़ के हिसाब से मूल्य तय करने वाली योजनाएं वास्तव में यातायात भीड़ को प्रबंधित करने और उत्सर्जन कम करने के लिए नई कारगर रणनीति है.ये योजनाएं वैकल्पिक परिवहन साधनों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के साथ ही अनावश्यक रूप से की जाने वाली कार यात्राओं को हतोत्साहित कर सकती हैं.भीड़ के आधार पर मूल्य निर्धारण से मिलने वाले राजस्व का निवेश, परिवहन के बुनियादी ढांचे में सुधार और निरंतर गतिशीलता वाली पहलों में किया जा सकता है.यही बात शहरों की योजना बनाने वालों के लिए भी मायने रखती है.अगर हम मिली-जुली सुविधाओं वाले इलाके बनाएं और लोगों के रहने और दफ्तर जाने की जगहों को सार्वजनिक परिवहन के पास बनाएं तो इससे शहर को आसानी से घूमने लायक बनाया जा सकेगा और ये ’यादा जीवंत भी बने रहेंगे. इसके लिए ना सिर्फ आधुनिक और सबके लिए समान कामकाज की जगह बनानी होगी बल्कि यह भी जरूरी है कि आवागमन के लिए हम परिवहन व्यवस्था का उपयुक्त इस्तेमाल करें और साथ ही पर्यावरण का भी ध्यान रखें.

 

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