अंतर्राष्ट्रीय स्वतंत्र संस्थाओं और यूनिसेफ के अनुसार 21 लाख भारतीयों की मौत का कारण वायु प्रदूषण बताया गया है. इस रिपोर्ट से जाहिर है कि वायु प्रदूषण को लेकर सरकारें और जनता में अवेयरनेस नहीं है. रिपोर्ट चूंकि यूनिसेफ और अमेरिका के स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान ‘हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट’ की साझेदारी में जारी हुई है, अत: ये आंकड़े परेशान करने वाले हैं, जिसमें वर्ष 2021 में वायु प्रदूषण से 21 लाख भारतीयों के मरने की बात है. दुखद बात यह है कि मरने वालों में 1.69 लाख बच्चे हैं, जिन्होंने अभी दुनिया ठीक से देखी ही नहीं थी. निश्चय ही ये आंकड़े जहां व्यथित व परेशान करने वाले हैं. वहीं नीति-नियंताओं को शर्मसार करने वाले भी हैं कि इस दिशा में अभी तक गंभीर प्रयास क्यों नहीं हो रहे हैं?
वैसे, ऐसा नहीं है कि पर्यावरण प्रदूषण संकट से अकेला भारत ही जूझ रहा है.चीन में भी इसी कालखंड में 23 लाख लोग वायु प्रदूषण से मरे हैं.जहां तक पूरी दुनिया में इस वर्ष मरने वालों की कुल संख्या का प्रश्न है तो यह करीब 81 लाख बतायी जाती है.चिंता की बात यह है कि भारत व चीन में वायु प्रदूषण से मरने वालों की कुल संख्या के मामले में यह आंकड़ा वैश्विक स्तर पर 54 प्रतिशत है.जो हमारे तंत्र की विफलता, गरीबी और प्रदूषण नियंत्रण में शासन-प्रशासन की कोताही को ही दर्शाता है. आम आदमी को पता ही नहीं होता है कि किन प्रमुख कारणों से यह प्रदूषण फैल रहा है और किस तरह वे इससे बचाव कर सकते हैं.
सडक़ों पर लगातार बढ़ते निजी वाहन,गुणवत्ता के ईंधन का उपयोग न होना, निर्माण कार्य खुले में होना, उद्योगों की घातक गैसों व धुएं का नियमन न होने जैसे अनेक कारण वायु प्रदूषण बढ़ाने वाले हैं. वहीं दूसरी ओर आवासीय कॉलोनियों व व्यावसायिक संस्थानों का विज्ञानसम्मत ढंग से निर्माण न हो पाना भी प्रदूषण बढ़ाने की एक वजह है.दरअसल, अनियोजित कॉलोनियों व बहुमंजिली इमारतों के निर्माण से हवा का वह स्वाभाविक प्रवाह बाधित हुआ है जो वायु प्रदूषण रोकने में मददगार होता था. दीवाली के आसपास पराली जलाने का ठीकरा किसानों के सिरों पर फोडक़र प्रदूषण नियंत्रण की जवाबदेही से मुक्त होने का जो उपक्रम होता है, वह जगजाहिर है.इस रिपोर्ट में वायु प्रदूषण से वर्ष 2021 में जिन 21 लाख लोगों की मौत होने का जिक्र है, दुर्भाग्य से उनमें 1,69,400 बच्चे हैं. जिनकी औसत आयु पांच साल से कम बतायी गई है. जानलेवा प्रदूषण का प्रभाव गर्भवती महिलाओं पर होने से बच्चे समय से पहले जन्म ले लेते हैं, इनका शारीरिक विकास भी सही से नहीं हो पाता. इससे बच्चों का कम वजन का पैदा होना, अस्थमा तथा फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं. दरअसल,चिंता की बात यह है कि बेहद गरीब मुल्कों नाइजीरिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इथोपिया से ज्यादा बच्चे भारत में वायु प्रदूषण से मर रहे हैं. विडंबना यह है कि ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के संकट ने वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या को बढ़ाया ही है.
एक अरब चालीस करोड़ जनसंख्या वाले देश भारत के लिये यह संकट बहुत बड़ा है. चिंता की बात यह है कि दक्षिण एशिया में मृत्यु दर का सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण ही है. उसके बाद उच्च रक्तचाप, कुपोषण तथा तंबाकू सेवन से होने वाली मौतों का नंबर आता है. दरअसल, गरीबी और आर्थिक असमानता के चलते बड़ी आबादी येन-केन- प्रकारेण जीविका उपार्जन में लगी रहती है, उसकी प्राथमिकता प्रदूषण से बचाव के बजाय रोटी ही है.वहीं ढुलमुल कानूनों, तंत्र की काहिली तथा जागरूकता के अभाव में वायु प्रदूषण रोकने की गंभीर पहल नहीं हो पाती.हर साल शीत ऋतु की दस्तक होने पर वायु प्रदूषण का जो बड़ा संकट राष्ट्रीय राजधानी में पैदा होता है, उसे शासन फौरी उपायों से दूर करने का प्रयास करता है. वाहनों की गुणवत्ता के मानकों पर प्रवेश, ऑड-ईवन की तर्ज पर वाहनों का चलाना, फैक्ट्रियों में उत्पादन पर रोक, निर्माण कार्य पर रोक जैसे फौरी उपायों का सहारा लिया जाता है. फिर साल भर के लिये तंत्र हाथ पे हाथ धरे बैठा रहता है. सवाल यह है कि ये नीतियां साल भर के लक्ष्य को रखकर क्यों नहीं बनायी जाती? राष्ट्रीय राजधानी के अलावा भी देश में यह संकट लगातार गहरा हो रहा है, तो विभिन्न राज्यों में दिल्ली जैसी पहल क्यों नहीं होती? कुल मिलाकर वायु प्रदूषण पर गंभीरता दिखानी होगी क्योंकि इसका सीधा संबंध पर्यावरण संतुलन से है.