कलेक्टर के प्रतिवेदन पर तत्कालीन डी एस ओ नागेंद्र सिंह निलंबित

उपार्जन के मामले में दो अधिकारियों पर गिरी गाज, अधीनस्थ को लेकर विभाग में चुप्पी,गोदाम प्रभारी भी संदेह के दायरे में

सतना । समर्थन मूल्य पर उपार्जन के दौरान हुए 93 लाख रुपए के गेहूं घोटाले में एक और अफसर पर कार्यवाही की गाज गिरी है। डीएम नान के बाद अब राज्य शासन ने सतना के तत्कालीन प्रभारी डीएसओ नागेंद्र सिंह को भी निलंबित कर दिया है। अभी नान और खरीदी की निगरानी करने वाले वरिष्ठ, कनिष्ठ अधिकारी ,कमर्चारियों पर किसी प्रकार की कार्यवाही प्रस्तावित नहीं की गई है.

 

खाद्य ,नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण आयुक्त मप्र शासन ने सतना के तत्कालीन प्रभारी डीएसओ ( जिला आपूर्ति अधिकारी ) नागेंद्र सिंह को निलंबित कर दिया है। निलंबन अवधि में इन्हें जीवन निर्वाह भत्ते की पात्रता के साथ संचालनालय में अटैच किया गया है। श्री सिंह का हाल ही में सतना से तबादला कर प्रभारी डीएसओ के तौर पर अलीराजपुर में पदस्थ किया गया था। चार दिन पहले ही वे सतना से रिलीव किए गए थे। यह कार्यवाही कलेक्टर सतना अनुराग वर्मा के 21 मई को प्रेषित प्रतिवेदन के आधार पर की गई।

निलंबन आदेश के अनुसार,आयुक्त ने माना है कि प्रभारी डीएसओ के तौर पर नागेंद्र सिंह ने अपने दायित्व के प्रति लापरवाही बरती है। पर्यवेक्षण एवं मॉनीटरिंग का दायित्व डीएसओ का होता है। लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में गेहूं उपार्जन में फर्जीवाड़ा हो जाने और रैक पॉइंट न होने के बावजूद गाड़ियों का रैक पॉइंट पर मूवमेंट दर्शाया जाना भी डीएसओ की जानकारी में न आना,बड़ी लापरवाही है। इससे यह भी प्रतीत होता है कि इस घोटाले में तत्कालीन प्रभारी डीएसओ की भी संलिप्तता है। निलंबन आदेश में जायतमाल बाबा स्व सहायता समूह को कारीगोही में उपार्जन कार्य दिए जाने पर भी प्रश्न खड़े करते हुए उल्लेख किया गया है कि जायतमाल समूह को वहां कार्य डीएसओ ने दिया था जबकि इसके पूर्व वहां किन्ही अन्य संस्थाओं से कार्य कराया जाता था।

 

कलेक्टर ने भेजा था प्रतिवेदन

खरीदी केंद्र जयतमाल जो 93 लाख के घोटाले का केंद्र है इस मामले में खाद्य विभाग की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है। कलेक्टर सतना अनुराग वर्मा ने इस मामले में एसीएस को प्रस्ताव भेजा था। जिसमे बताया गया था कि शिकायतों के आधार पर जिन व्यक्तियो का नाम आ रहे है उनका लगातार खाद्य विभाग में आना जाना बना रहता है, जिससे कि तत्कालीन डीएसओ की भी भूमिका संदेहास्पद होने से इंकार नहीं किया जा सकता। तत्कालीन डीएसओ नागेन्द्र सिंह द्वारा जायतमाल बाबा महिला स्व सहायता समूह कारीगोही नवीन केन्द्र की स्थापना कर गेहूं खरीदी का कार्य दिया गया है। जबकि निर्धारित स्थल कारीगोही में पूर्व में अन्य समूह/समितियो द्वारा खरीदी का कार्य किया गया है। इतना बड़ा गेहूँ बिकी फर्जीवाडा व उपार्जन घोटाला हो गया एवं तत्कालीन डीएसओ नागेन्द्र सिंह को जानकारी में नहीं आना उनकी भूमिका को संदिग्ध करता है।

अधीनस्थों पर अभी नजर नहीं

इस मामले में खरीदी केंद्रों में नान द्वारा खरीदी की निगरानी के लिए अमले की तैनाती की जाती है. साथ ही प्रशासन की ओर से भी राजस्व अमले को खरीदी की नियमित निगरानी के आदेश दिए गए थे.जिला स्तर पर भी निगरानी समिति गठित की गई थी.इस एक करोड़ के घोटाले के मामले में इतने सारे अधिकारी, कर्मचारी क्या कर रहे थे.यह भी प्रशासनिक अमले को सन्देह के दायरे में लाता है. इसके बाद अनाज के गोदामीकरण के पूर्व गोदाम सहायक की भी सहमति लेनी होती है. इस मामले गोदाम सहायक की भूमिका भी अभी तक स्पष्ट नही की गई.

58 में सिर्फ 19 किसानों के नाम ही सार्वजनिक

इस 3660 क्विंटल गेंहू के उपार्जन मामले में अभी तक 58 किसानों में से सिर्फ 19 के नाम ही सामने आए हैं, जबकि इस खरीदी घोटाले में किसानों की सीधी मिलीभगत की पुष्टि प्राथमिक जांच के दौरान हो गई है. अब तक जिनके नाम सामने आए हैं उनमें सपना शुक्ला 94 क्विंटल, राजमणि पांडेय 308,तिलकराज गौतम 56,धुवेन्द्र सिंह 251,रीता शुक्ला 67,मयंक द्विवेदी141,संजय तिवारी 308,रामकुण्डल शुक्ला 151,जितेंद्र कुमार शुक्ला 161, गीता देवी 212,चंद्रभूषण तिवारी 54,अजय सिंह 302, शिवा सिंह 254,अनमोल सिंह 221, रोशनी त्रिपाठी 116,विक्रम सिंह 350, संतोष कुमार कुशवाहा 131, अभिलाषा सिंह 249,हेमंत सिंह 264 क्विंटल शामिल है. शेष 39 किसानों के नाम अभी तक सार्वजनिक नही किए गए.इस मामले में अन्य किसानों का कहना है कि किसानों के नाम पर उपार्जन में गन्दा खेल खेलने वाले सभी नामजद किसानों को हमेशा के लिए उपार्जन से प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए ताकि फिर कोई किसानों के नाम पर सरकारी योजना का गलत फायदा न उठा सके.

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