रेवड़ी योजनाएं और अर्थव्यवस्था

लोकसभा चुनाव का पांचवा चरण सोमवार को संपन्न हो रहा है. इसके बावजूद राजनीतिक दल चुनाव के मध्य में भी लोकलुभावन यानी रेवड़ी योजनाओं को घोषित करने में कोई कसर नहीं रख रहे हैं. दरअसल, ये योजनाएं नई सरकार के लिए भारी पडऩे वाली हैं. राजनीतिक दलों के ये बड़े बड़े लोकलुभावन वादे देश को आखिर कहां ले जाकर छोड़ेंगे?

भाजपा ने आयुष्मान योजना को विस्तारित करने की बात कही है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार 5 वर्षों के लिए 80 करोड लोगों को मुफ्त 5 किलो अनाज देने वाली है. इसका जवाब में कांग्रेस ने 85 करोड लोगों को 10 किलो मुफ्त अनाज और महिलाओं को एक लाख रुपए प्रतिवर्ष देने का वादा किया है. कांग्रेस किसानों को एमएसपी भी देगी.सबको पता है सरकारी खजाने पर 2 लाख करोड़ रुपए की सबसिडी का बोझ पहले से ही है, लिहाजा 10 किलो अनाज बांटने पर वह दोगुनी हो जाएगी.दिलचस्प है कि पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने ही रायबरेली की जनसभाओं में इस योजना पर सवाल उठाते हुए जनता से पूछा है कि आपको रोजगार चाहिए या 5 किलो मुफ्त अनाजज्? राहुल गांधी समेत कांग्रेस के बड़े नेता भी इस योजना पर सवाल उठाते रहे हैं कि क्या 80 करोड़ से अधिक भारतीय इतने गरीब हैं कि यदि उन्हें मुफ्त अनाज न मिले, तो वे भूखों मर सकते हैं? इस योजना के 10 किलो तक विस्तार पर कांग्रेस में रणनीतिक विरोधाभास क्यों हैं? क्या नेतागण आपस में विमर्श नहीं करते? कांग्रेस का चुनाव घोषणा-पत्र भी इस मुद्दे पर बिल्कुल खामोश है ! बहरहाल,यह विरोधाभास अपनी जगह है लेकिन कोई दल यह बताने को तैयार नहीं है कि इस तरह के वादों को कैसे पूरा किया जाएगा. कांग्रेस ने कर्नाटक में 5 गारंटिया दी थी. इन गारंटियों को पूरा करने में कर्नाटक सरकार की कमर टूट गई है. वहां मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कहना पड़ा है कि सरकार के पास विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं है. कर्नाटक सरकार पर कर्ज कई गुना बढ़ गया है. इसी तरह हिमाचल में कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का वादा किया था, यह स्कीम अभी भी पूरी तरह तक लागू नहीं हो पाई है. इसका कारण यह है कि सरकार के पास इतना पैसा नहीं है. हिमाचल और कर्नाटक का ओल्ड पेंशन स्कीम का वादा इतना भारी पड़ा है कि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के अपने घोषणा पत्र में ओल्ड पेंशन स्कीम के वादे से तौबा कर ली. कांग्रेस ने बेरोजगारों को रोजगार के गारंटी देने की भी बात कही है. अरविंद केजरीवाल ने इससे भी आगे बढक़र यह कहा है कि पूरे देश को मुफ्त बिजली दी जाएगी. उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी के इस वादे से इंडिया गठबंधन की सभी पार्टियों सहमत हो जाएंगे. एक रिपोर्ट के अनुसार इंडिया और एनडीए ने जो वादे किए हैं यदि उन्हें पूरा करना पड़े तो सरकारी खजाने पर 23 लाख करोड़ का अतिरिक्त भार आएगा. जबकि देश का कुल बजट 45 लाख करोड़ का है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 2022 में भारत पर जीडीपी का 81 प्रतिशत कर्ज था. 2024 तक यह और बढ़ेगा. जाहिर है यदि राजनीतिक दल इसी तरह रेवड़ी योजनाएं लाते रहे तो फिर अर्थव्यवस्था का भगवान ही मालिक है ! अर्थशास्त्री कहते हैं कि यदि किसी सरकार को कर्ज लेना हो तो उसका निवेश इंफ्रास्ट्रक्चर योजनाओं में करना चाहिए जिससे देश की तरक्की हो और आर्थिक विकास बढ़े, लेकिन यदि मुफ्त अनाज या रेवडिय़ां बांटने के लिए कर्ज लिया जाएगा, तो भारत भी रसातल में पहुंच सकता है. बेहतर तो यह होगा कि आने वाली सरकार मुफ्त की योजनाएं बंद करे और सभी बेरोजगार युवाओं को सरकारी रोजगार या स्वरोजगार उपलब्ध करवाए.अगर सभी के हाथों में पैसा होगा तो आवश्यक वस्तुएं तो बाजार से खरीदी जा सकती हैं. दरअसल,देश की समस्याओं का हल युवाओं को रोजगार के अवसर देने में है ना कि मुफ्त अनाज या मुफ्त बिजली देने में !

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