दिल्ली डायरी
प्रवेश कुमार मिश्र
बिहार और महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन और राजग खेमे के अंदर तनाव की स्थिति बनी हुई है. सीटों के तालमेल के उलझन को सुलझाना रणनीतिकारों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. बिहार में जहां एक तरफ राजद व कांग्रेस के बीच सीटों के तालमेल को लेकर पेंच फंसा हुआ है वहीं जदयू-भाजपा के साथ उसके चारों सहयोगी दलों के कारण तालमेल नहीं हो पाया है. राजद की ओर से कांग्रेस को सात सीटों का प्रस्ताव आया है जबकि कांग्रेस एक दर्जन सीट मांग रही है. दूसरी ओर राजग खेमे में जदयू व चिराग पासवान के दबाव के कारण भाजपाई वार्ताकार परेशान दिख रहे हैं. इसी तरह का हाल महाराष्ट्र में भी है. दोनों खेमे में शामिल दलों के नेता ज्यादा से ज्यादा सीटों को अपने पाले में करने के लिए बहुस्तरीय प्रयास कर रहे हैं. संभवतः इसी वजह से दोनों राज्यों के टिकट बंटवारे की प्रक्रिया अभी आरंभ नहीं हुई है. चर्चा है कि एक सप्ताह के अंदर दोनों पक्षों के शीर्ष नेतृत्व विशेष हस्तक्षेप करके समन्वय स्थापित करने का प्रयास करेंगे.
जातिगत समीकरण को प्राथमिकता
कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव में उतरे जाने वाले उम्मीदवारों के चयन में खासतौर पर जातिगत समीकरण को साधने की रणनीति बनाई है. पार्टी रणनीतिकारों ने इसबार ‘कांग्रेस का हाथ सबके साथ’ के नारे को पीछे छोड़ कर अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए बदली रणनीति के साथ जाति आधारित रणनीति पर केन्द्रित करना आरंभ कर दिया है. हालांकि इस बदलाव का पार्टी के आंतरिक विमर्श में विरोध भी हो रहा है. पार्टी द्वारा जारी पहली लिस्ट में जिस तरह से विभिन्न समीकरण को साधने का प्रयास किया गया है उससे पार्टी का एक खेमा काफी उत्साहित है लेकिन दूसरे खेमे के लोग जीताऊ उम्मीदवार की रणनीति पर फोकस करने की सलाह देते हुए पार्टी की परंपरा पद्धति के साथ आगे बढ़ने की वकालत कर रहे हैं. जातिगत समीकरण से अलग युवाओं को विशेष महत्व देने के लिए भी पार्टी के अंदर दबाव बनाया जा रहा है. हालांकि पहली लिस्ट के बाद सलाह देने वाले समूह के नेताओं की नजर पार्टी की दूसरी लिस्ट पर टिकी हुई है.
ममता की एकला चलो की राह
इंडिया गठबंधन से अलग राह अपनाकर टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में एकला चलो की रणनीति के साथ सभी सीटों के लिए एकतरफा उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य में उनकी राजनीति किसी से बंधी हुई नहीं है. हालांकि उनके इस निर्णय को लेकर भाजपा ज्यादा खुश है. भाजपाई रणनीतिकारों को लगने लगा है कि कांग्रेस व टीएमसी के बीच वोटों के बिखराव का फायदा सीधे तौर पर भाजपाई उम्मीदवारों को होगा. ममता के इस निर्णय को लेकर दिल्ली की राजनीतिक गलियारों में तीसरे मोर्चे की संभावना को लेकर भी चर्चा आरंभ हो गई है.
सीएए को लेकर राजनीति शुरू
लोकसभा चुनाव के ठीक पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए को लागू करने के फैसले को लेकर राजनीति आरंभ हो गई है. तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने इस निर्णय को राजनीतिक उद्देश्य से लगाया गया विभाजनकारी करार दिया है. विपक्षी दलों का आरोप है कि चुनाव में वोटो के ध्रुवीकरण की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए इसे लागू किया गया है. हालांकि केरल व पश्चिम बंगाल की सरकार ने इसे अपने शासन वाले राज्य में लागू नहीं करने की बात कर विरोध जताया है लेकिन भाजपाई रणनीतिकारों ने इस निर्णय के पक्ष में जो दलील दी है उससे स्पष्ट है कि पार्टी ने अपने घोषणा पत्र के अनुसार इसे व्यापक विमर्श के बाद लागू किया है. सीएए के लागू होने की घोषणा के बाद दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में अलग-अलग स्तर की चर्चा हो रही है.