
जबलपुर। स्कूल शिक्षा विभाग में मूल्यांकन का कार्य ठेके में किये जाने संबंधित मामले जांच के बाद निलंबित किये जाने को चुनौती देते हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। याचिका में कहा गया था जांच रिपोर्ट में अनुसार अनियमितताओं में वह सीधे तौर पर शामिल नहीं था। हाईकोर्ट जस्टिस संजय द्विवेदी ने निलंबन के आदेश को निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि जनता में विभाग की छवि बचाने याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही की गयी है। अनियमितताओं के लिए याचिकाकर्ता प्रत्यक्ष रूप से दोषी नहीं था।
याचिकाकर्ता डॉ राकेश कुमार वर्मा की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि वह शासकीय शहीद भगत सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिपरिया जिला नर्मदापुरम में प्रभारी प्राचार्य के पद पर पदस्थ था। उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के दौरान अनियमितताएं के संबंध में सोशल मीडिया पर खबर वायरल हुई थी। जिसकी जांच के लिए समिति का गठन किया गया था। जांच समिति की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर पुस्तिका क्रमांक-13206-2025, जिसका मूल्यांकन सुश्री खुशबू पगारे अतिथि संकाय द्वारा किया जाना था। जिसका मूल्यांकन लैब टेक्नीशियन पन्नालाल पठारिया के द्वारा किया गया था। जांच रिपोर्ट में सुश्री खुशबू पगारे ने अपने बयान में स्वीकार किया था कि उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के लिए उन्होंने राकेश कुमार मेहर नामक व्यक्ति को 7000 रुपए दिए थे। राकेश कुमार ने अपने बयान में स्वीकार किया था कि उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के बदले उन्होंने पन्नालाल पठारिया को 5000 रुपए दिए थे। जांच रिपोर्ट समिति ने प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता और राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. रामगुलाम पटेल को कथित अनियमितता के लिए दोषी माना।
जांच समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर उप सचिव उच्च शिक्षा विभाग ने याचिकाकर्ता को निलंबित कर दिया। याचिका में कहा गया था कि बिना सोचे-समझे यांत्रिकी तरीके से निलंबन का आदेश पारित किया गया है। कथित अनियमितता में याचिका की प्रत्यक्ष संलिप्तता नहीं होने के बावजूद भी उसके खिलाफ निलंबन की कार्यवाही अनुचित है।
सरकार की तरफ से याचिका का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता के पास आदेश के खिलाफ अपील का प्रावधान उपलब्ध था। इसके बावजूद भी याचिकाकर्ता ने सीधे कोर्ट में याचिका दायर कर दी। एकलपीठ ने सरकार की दलील को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता को नोडल अधिकारी होने के कारण कथित अनियमितता के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में निलंबन का आदेश पारित किया जाता तो स्पष्ट तो यह माना जाए कि प्राधिकारी किसी तरह याचिकाकर्ता को रोजगार से बाहर रखने की कोशिश कर रहा है। जांच रिपोर्ट में यह पाया गया है कि याचिकाकर्ता कथित अनियमितता में सीधे तौर पर शामिल नहीं था। याचिकाकर्ता को निलंबित करने का आदेश केवल जनता के बीच विभाग की छवि बचाने तथा यह दर्शाने के लिए पारित किया गया है कि कथित अनियमितता के लिए समुचित कार्रवाई की गई है। दूसरों की संतुष्टि किसी कर्मचारी को निलंबित करने का मुख्य उद्देश्य नहीं है। निष्पक्ष तरीके से जांच पूरी करने के बाद ऐसा किया जाना चाहिए था। एकलपीठ ने याचिका की सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के पक्ष में राहतकारी आदेश जारी किये।
