खंडवा: अंग्रेजों के जमाने का घोषित जिला अब भी अव्यवस्थाओं के लपेटे में उलझ रहा है। 60 करोड़ की नर्मदा जल योजना 200 करोड़ रुपए में भी पूरी नहीं हुई। अब भी बजट की आस और जिम्मेदारों की प्यास बाकी है।स्वीमिंग पूल की लागत भी चार गुना हो गई, लेकिन इसमें चुल्लू भर पानी भी नहीं इक_ा कर पाए। कब तक बायपास, रिंगरोड की कहानी सुनाई जाती रहेगी।
पांच चुनावों से घिसे-पिटे मुद्दे
प्राइमरी में जो बच्चे सुनते थे कि शहर के बाहर से भारी वाहन निकलेंगे। अब वे बच्चे भी वोट देने लायक हो गए। सिटी बस जैसी जरा सी बात पर इतना मंथन होता है कि आज तक इस कस्बेनुमा शहर को इन्होंने शहर नहीं होने दिया। ए ग्रेड मंडी की अव्यवस्थाएं सबको पता है।
याद करो पुराना खंडवा
इससे तो 1920 के पहले का खंडवा विकास में अच्छा था। यहां अंग्रेजों ने हवाई पट्टी बना दी थी। खंडवा से हवाई जहाज उड़ान भरते थे। रेल के मामले में खंडवा का नाम मुंबई से कोलकाता तक जाना जाता था। फिल्म इंडस्ट्री में उस वक्त पहला सुपरस्टार अशोक कुमार के रूप में खंडवा ने दिया था। खंडवा से मुख्यमंत्री भी हुए । दादाजी जैसे बड़े संतों ने खंडवा को देह त्यागने के लिए चुना। आजादी के लिए संघर्ष की लड़ाई बुद्धिजीवी तरीके से माखनलाल चतुर्वेदी ने शुरू की। सुभद्रा कुमारी चौहान जैसी क्रांतिकारी कवयित्री खंडवा की ही थीं। इन सबसे नहीं लगता कि जब खंडवा क्या था, और अब खंडवा क्या है?
हम और आप इसके दोषी!
अब इसमें जनप्रतिनिधियों को दोष देंगे तो वह ठीक नहीं है! आम लोग किस धारणा से जनप्रतिनिधि चुनते हैं। यह ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। खंडवा कभी दाल मिल और जीनिंग के मामले में देशभर का किंग माना जाता था। यहां से यह मिलें उठकर महाराष्ट्र क्यों चली गईं? अब तो लगभग 80 ऐसी संस्थाएं हैं, जो बीज निर्माण का काम कर रही हैं। इनमें से कुछ देश के हर क्षेत्र में बीज भेजती हैं। कुछ तो खंडवा ही नहीं मध्यप्रदेश को बदनाम कर चुकी हैं। तेल के कारोबार में भी खंडवा का नाम चलता है।
यह हालत किसने की?
आज के हालात सब जानते हैं। मोटे बजट इन नालों के निर्माण पर खपाए जा रहे हैं। उद्योगों के लिए अलग से बने एरिया खाली पड़े हैं। शहर के अंदर मौत बांटने वाले उद्योग चल रहे हैं। लोग निजी केन से मजबूरन फिल्टर वाला पानी खरीदकर पी रहे हैं। 200 जल कर दे रहे हैं। सिर्फ तीसरे दिन एक घंटे मुश्किल से पानी नसीब होता है।
शहर की इस हालात पर क्यों जनप्रतिनिधि गौर नहीं करते? आम जनता क्यों मुंह सिलकर चुपचाप बैठी रहती है?