सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों ने अत्यंत रचनात्मक और सराहनीय पहल करते हुए मणिपुर के हिंसा प्रभावित लोगों से मुलाकात की है. नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के कार्यकारी अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जज जस्टिस बी आर गवई के नेतृत्व में गए प्रतिनिधिमंडल ने लोगों के बीच राहत सामग्री का वितरण किया. इस दौरान कई मुफ्त कानूनी सेवा शिविरों का आयोजन किया गया. साथ ही 400 डॉक्टरों के साथ लोगों तक मेडिकल सहायता भी पहुंचाई गई.मणिपुर जैसे सीमावर्ती अशांत राज्य में की गई यह पहल अत्यंत महत्वपूर्ण और स्वागत योग्य है.इससे वहां शांति स्थापित होने में मदद मिलेगी. इसी के साथ पीडि़त नागरिकों को यह एहसास होगा कि देश के इतने महत्वपूर्ण और संवैधानिक पदों पर बैठे हुए जज उनकी चिंता कर रहे हैं. इस पहल का महत्व इसलिए भी है क्योंकि मणिपुर का संघर्ष 2 वर्ष पूर्व हाई कोर्ट द्वारा दिए गए एक निर्णय के बाद शुरू हुआ था. इस निर्णय में मैतई समुदाय को आदिवासी वर्ग का दर्जा दिया गया था. इसी निर्णय के खिलाफ मणिपुर का जनजातीय कुकी समुदाय सडक़ों पर उतर आया था और हिंसा भडक़ उठी थी. बहरहाल,नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी का गठन 1995 में हुआ था. इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता पहुंचाना और कानूनी विवादों के त्वरित समाधान में मदद करना है. इसी राष्ट्रीय न्यायिक सेवा प्राधिकरण की निगरानी में ही देश भर में लोक अदालतों का आयोजन होता है. निर्धन और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता देने के लिए वकील उपलब्ध करवाना भी नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी का काम है.जस्टिस गवई के साथ इस दौरे में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ, एम एम सुंदरेश, के वी विश्वनाथन और एन कोटिश्वर सिंह भी गए थे. जजों ने इंफाल और उखरुल जिलों में कई मुफ्त लीगल सहायता केंद्रों का उद्घाटन किया.जस्टिस बी गवई ने दौरे के बाद बिल्कुल सही कहा कि मणिपुर भारत का हिस्सा है. यहां के लोगों ने पिछले कुछ समय में बहुत कठिनाइयां उठाई हैं. राज्य के पुनर्निर्माण में कार्यपालिका के साथ न्यायपालिका भी योगदान देना चाहती है. उनका यह कहना बेहद महत्वपूर्ण है कि मणिपुर के लोगों को ऐसा महसूस नहीं होना चाहिए कि वो अकेले पड़ गए हैं. पूरा देश उनके साथ है. दरअसल,मणिपुर में मई 2023 से मेइती और कुकी समुदायों के बीच जारी जातीय हिंसा में 250 से अधिक लोग मारे गए हैं और हजारों लोग बेघर हो गए हैं. मुख्यमंत्री पद से एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद केंद्र ने 13 फरवरी को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था और राज्य विधानसभा को निलंबित कर दिया गया था.जबकि मणिपुर विधानसभा का कार्यकाल 2027 तक था.दरअसल,चीन की सीमा से सटे राज्य मणिपुर में शांति की बहाली बहुत ही आवश्यक है.यह देश की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र है.जाहिर है यहां की शांति को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए.
बहरहाल,उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार मणिपुर की शांति बहाली के लिए हर संभव प्रयास करेगी.वैसे केंद्रीय गृह मंत्रालय इस अशांत राज्य की लगातार मॉनीटरिंग कर रहा है. केंद्र सरकार ने राज्य में शांति की स्थापना के लिए अनेक कदम भी उठाए हैं. बहरहाल,जहां तक राष्ट्रीय न्यायिक सेवा प्राधिकरण के जजों के मणिपुर दौरे का सवाल है तो यह निश्चित रूप से सराहनीय पहल रही, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए. दरअसल,इस तरह के उपक्रम पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए जरूरी हैं क्योंकि इन राज्यों के नागरिक देश से खुद को कटा हुआ महसूस करते हैं.