उज्जैन: थोड़ी सर्दी, थोड़ी गर्मी के बीच ठंडी हवा के झोंके, फागुन की मस्ती, ग्रामीण क्षेत्र में टेसू के फूलों की लालिमा होलिया रंग उड़ाने को तैयार है। तीज त्योहारों की परंपराओं की मनुष्य भले अनदेखी कर रहा हो, लेकिन प्रकृति ने अपने नियमों का पालन करना अनवरत जारी रखा है। बिखर रही टेसू पलाश फूलों की लालिमा बदलते दौर में केमिकल रंगों के चलन ने कुदरत के नवाजे रंगों को भले ही पीछे धकेल दिया हो, लेकिन कुदरत अपना प्यार लुटाने में कोई कोताही नहीं बरतती। वरना एक जमाना था जब रंगने के लिए टेसू के फूलों को खूब इस्तेमाल किया जाता था। होली के मौसम में कुदरत ने ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी तादाद में टेसू के फूल खिलाए हैं। क्षेत्र में यह फूल अपनी लालिमा बिखेर रहे हैं।
महाभारत में भी पलाश का जिक्र
जानकारों के अनुसार कौरवों की ओर से पांडवों का मटियामेट करने की योजना के तहत उनके निवास स्थल लाक्षागृह को अग्नि के सुपुर्द किए जाने की जानकारी देने को विदुर ने जब पांडवों को सांकेतिक भाषा में सतर्क रहने को कहा कि वनों में जब पलाश खिलते हैं तो अग्निकांड का सा महौल बन जाता है। वनों में आग लगने से चूहे बच जाते हैं। क्योंकि वे बिल बनाकर-खतरे वाले स्थान से अंयत्र निकलने में सक्षम रहते हैं। विदुर की बात समझकर पांडवों ने समय रहते लाक्षागृह से सुरंग बना ली। लाक्षागृह को जलाए जाने के समय वे उसी सुरंग से निकलकर सुरक्षित बच-गए थे।
