अविनाश दीक्षित
महाकौशल ही नहीं अपितु प्रदेश के कद्दावर नेताओं में शुमार पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल स्वजातीय समाज के लोगों को सीख देने के बाद उलझ कर रह गए हैं।दरअसल बीते शनिवार को राजगढ़ के सुठालिया में एक स्वजातिय कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा था कि लोगों को सरकार से भीख मांगने की आदत हो गई है, लोग नेताओं को माला पहनाकर अपना मांग पत्र थमा देते हैं, उन्होंने इसे गलत बताया था। उनके इस बयान को कांग्रेस ने जनता का अपमान बताते हुए मुद्दा बना लिया तथा इसके जरिए भाजपा पर आक्रामक तरीके से तीखे सवाल दाग रही है।
प्रहलाद पटेल पर बड़ा हमला जीतू पटवारी ने किया था, इसके बाद कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी उनके बयान को आधार बनाकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़े किए, जिनका जवाब कमल दल के किसी नेता ने नहीं दिए हैं। यद्यपि बीते सोमवार को जबलपुर में पटेल खुद आगे आए और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के आरोपों को खारिज किया। उन्होंने आरोप लगाया कि मेरे भाषण के कुछ अंश निकालकर बिना सोचे समझे पटवारी ने मेरी पार्टी व नेतृत्व पर हमला किया है, यह ओछी राजनीति है तथा कार्यक्रम को विवादास्पद बनाने वाले पटवारी को मेरी पार्टी एवं नेतृत्व से क्षमा मांगनी चाहिए।
मंगलवार यानि 4 मार्च को उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को टैग करते हुए लिखा कि मेरे मन में जनता सदैव जनार्दन रही, चाहे उसने नकारा हो या स्वीकारा हो, यह मेरी निष्ठा का अतीत है, वह आज भी है, लेकिन शुचिता की राजनीति भ्रष्ट और बेईमानों को कैसे रास आएगी, हालांकि कुछ समय बाद ही पोस्ट को डिलीट कर दिया गया।
फिलहाल स्वजातीय समाज को स्वाभिमान का पाठ पढ़ाने वाले मंत्री पटेल के उक्त बयान को लेकर कांग्रेस आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए है और भाजपा को बैक फुट में रहना पड़ रहा है। वहीं कांग्रेस को बैठे-बिठाये राजनीतिक हमले करने का मौका मिल गया है, जिसे भुनाने की वह कोशिश कर रही है। 6 मार्च को सभी जिला मुख्यालयों में जंगी प्रदर्शन कर उसने यह जतला भी दिया है कि वह इस अवसर को यूं ही हाथ से जाने नहीं देगी। कांग्रेस के प्रदर्शनों से भाजपा की सेहत पर क्या फर्क पड़ेगा, इस पर कुछ कहना फिलहाल मुश्किल है परंतु भाजपाई गलियारों में चर्चा है कि डैमेज कंट्रोल के लिए शीर्ष स्तर से श्री पटेल को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने की सलाह दी जा सकती है।
सवालों में घिरे कुलगुरु
विद्यार्थियों को उच्च शैक्षणिक मानदण्ड स्थापित करने की सीख देने वाले रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर राजेश वर्मा को हाई कोर्ट द्वारा गठित समिति सदस्यों के गंभीर सवालों का सामना करना पड़ ही गया। मामला 21 नवंबर 2024 को विश्वविद्यालय में आयोजित बैठक से जुड़ा है। दरअसल एक महिला अधिकारी ने प्रोफेसर वर्मा पर बैठक के दौरान अशोभनीय टिप्पणी करने और अभद्र इशारा करने का आरोप लगाया था। महिला अधिकारी ने राज्य महिला आयोग, उच्च शिक्षा विभाग, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कुलसचिव और राजभवन को शिकायत कर जांच की मांग उठाई थी। शिकायतकर्ता ने 21 नवंबर को ही बैठक के सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराने की मांग कुल सचिव से की थी, लेकिन उसे सीसीटीवी फुटेज नहीं दिए गए।
उसके बाद मामले ने तूल पकड़ लिया किंतु गहरा तब गया जब रादुविवि की आंतरिक महिला हिंसा और यौन उत्पीड़न कमेटी ने इस मामले की जांच करने से इनकार कर दिया। हीला हवाली के बीच मामला हाई कोर्ट पहुंच गया, फुटेज सुरक्षित रखने के निर्देश के साथ पांच सदस्यीय कमेटी गठित करने के आदेश हुए। कमेटी अध्यक्ष अधिवक्ता सरोज तिवारी, महिला बाल विकास विभाग की परियोजना अधिकारी कांता देशमुख, सामाजिक कार्यकर्ता रीना वासनिक, महिला बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी एमएल मेहरा, सामाजिक कार्यकर्ता अंशुमन शुक्ला ने बीते सोमवार को कुलगुरु प्रोफेसर राजेश वर्मा को तलब कर उनके बयान दर्ज किये। प्रोफेसर वर्मा ने अपने बयान में क्या सफाई दी, यह तो उजागर नहीं हो सका है मगर विश्वविद्यालय की गलियारों में कुलगुरु की बदली भाव भंगिमा को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं जरूर हो रही हैं।