नयी दिल्ली, 01 मार्च (वार्ता) दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष देवेन्द्र यादव ने केंद्र सरकार पर राष्ट्रीय राजधानी में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और वित्तीय संसाधनों को मनमाने ढंग से नियंत्रित करने की साजिश रचने का आरोप लगाया है।
श्री यादव ने शनिवार को कहा कि केंद्र सरकार के इशारे पर प्रदेश सरकार के वित्त विभाग सरकार ने 25 फरवरी को एक आदेश जारी कर एक करोड़ रुपये से अधिक के सभी विभागीय खर्चों के लिए वित्त विभाग से अनुमोदन को अनिवार्य बना दिया है।
उन्होंने वित्त विभाग द्वारा जारी 07 अगस्त 2019 के कार्यालय ज्ञापन का हवाला देते हुए कहा कि यह आदेश उपराज्यपाल द्वारा जारी किया गया था, लेकिन अब बजट प्रभाग के एक अधिकारी के आदेश से इसे निष्क्रिय कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि केन्द्र सरकार अधिकारियों के माध्यम से संवैधानिक पद पर बैठे उप-राज्यपाल की शक्तियों की भी अनदेखी कर रही है। उन्होंने कहा कि दिल्ली प्रदेश कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के इस अलोकतांत्रिक निर्णय का पुरजोर विरोध करेगी।
उन्होंने कहा कि 07 अगस्त 2019 के कार्यालय ज्ञापन के अनुसार 50 करोड़ से अधिक की परियोजनाओं के खर्च तथा अनुमान के लिए ही वित्त विभाग की अनुमति आवश्यक थी, जबकि 100 करोड़ से अधिक की परियोजनाओं के लिए आर्थिक एवं वित्तीय समिति (ईएफसी) से स्वीकृति आवश्यक थी, लेकिन अब एक साधारण अधिकारी के आदेश से इस फैसले को बदल दिया गया है। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2025 में विधानसभा चुनाव के कारण महीनों आचार संहिता लागू रही, जिससे अन्य वर्षों की तुलना में सरकारी खर्च कम होगा। ऐसे में इस प्रकार के आदेश का जारी किया जाना स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और वित्तीय संसाधनों को मनमाने ढंग से नियंत्रित करने की साजिश है।
श्री यादव ने कहा कि भाजपा नेताओं ने दिल्ली सरकार मंत्रिमंडल की पहली बैठक में महिलाओं के खाते में 2500 रुपये भेजने का वादा किया था, जबकि केजरीवाल सरकार ने बजट घोषणा में महिलाओं को 1000 रुपये देने की बात कही थी, जिसे न तो आम आदमी पार्टी ने लागू किया था और न ही भाजपा की दिल्ली सरकार ने अभी तक लागू किया हैं। इसके बावजूद, सरकार द्वारा वित्त विभाग के खर्च में कटौती का बहाना बनाकर ऐसे आदेश जारी करना यह दर्शाता है कि इनका उद्देश्य ठेकेदारों से उगाही की योजना को आगे बढ़ाना है।
उन्होंने वित्तीय शक्ति के विकेंद्रीकरण की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि यह सुचारू, पारदर्शी और उत्तरदायी शासन सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य है। वित्तीय विकेंद्रीकरण से निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी आएगी और प्रशासनिक अड़चनें कम होंगी, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा होगी।