अपने गिरेबान में झांके पश्चिमी देश

भारत ने मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन पर अमेरिकी विदेश विभाग की हालिया रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर उचित ही किया है.दरअसल, अमेरिका ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मणिपुर और जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है. भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को भेद भावपूर्ण बताया है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिकी विदेश विभाग का ये दस्तावेज पक्षपातपूर्ण है. ये भारत के प्रति उनकी खराब समझ को भी दिखाता है. भारत ने सिर्फ इस रिपोर्ट को ही खारिज नहीं किया, बल्कि अमेरिका को आईना भी दिखाया है.

भारत ने अमेरिका में नस्लीय हिंसा और फायरिंग के मामलों का जिक्र किया. इसमें नस्ल और मूल के आधार पर होने वाले हमले, हेट क्राइम्स और गन वॉयलेंस के मुद्दे शामिल हैं. अमेरिका में लंबे समय से अश्वेतों पर हमले हो रहे हैं. इसके अलावा वहां एशियाई मूल के लोगों के साथ भी नस्लीय भेदभाव होता है.भारत ने पलटवार करते हुए अमेरिका को करारा जवाब दिया है. दरअसल ऐसा किया जाना जरूरी था. पश्चिमी देश को यह अहंकार है कि दुनिया में वे ही सभ्य और लोकतांत्रिक हैं. जबकि ऐसा नहीं है. अमेरिका में अश्वेतों और रेड इंडियन्स के साथ भेदभाव के उदाहरण लंबे समय से सामने आते रहे हैं. जर्मनी में नए सिरे से नस्लीय भेदभाव सामने आया है. जबकि ब्रिटेन अपनी साम्राज्यवादी नीतियों के कारण पहले से ही कुख्यात है. ऐसे में भारत को नसीहत देने की बजाय पश्चिमी देशों ने अपने गिरेबान में झांकना चाहिए. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर भी जर्मनी और अमेरिका ने भारत को नसीहत देने की कोशिश की थी. इन सभी मामलों पर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने करारा जवाब दिया है. उन्होंने अवांछित टिप्पणी करने वाले देशों को सलाह दी है कि अन्य देशों को भारत के मामलों में राजनीतिक टीका-टिप्पणी करने से बचना चाहिए.

भारतीय विदेश मंत्रालय ने इन देशों के दूतावासों के उच्च अधिकारियों को तलब कर कड़ी आपत्ति जतायी थी. इसके बावजूद अमेरिका ने फिर से अपने बयान को दोहराते हुए उसमें आयकर विभाग द्वारा कांग्रेस के बैंक खातों पर रोक के मुद्दे को भी जोड़ दिया था.आप और कांग्रेस से जुड़े मामलों से भारत का हर नागरिक अवगत है ही.विदेश मंत्री जयशंकर ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि ऐसी बयानबाजी होती रही, तो उन देशों को बहुत कड़े जवाब के लिए तैयार रहना चाहिए.यह जगजाहिर तथ्य है कि अनेक देश वैश्विक स्तर पर अपने वर्चस्व और प्रभाव को बढ़ाने के लिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का प्रयास करते हैं.अमेरिका और कुछ यूरोपीय देश ऐसा करने में सबसे आगे रहते हैं.ये देश अपने को विशिष्ट समझते हैं और उन्हें लगता है कि वे दुनिया के दरोगा हैं.लोकतंत्र, मानवाधिकार, धार्मिक एवं नागरिक अधिकार, नैतिकता आदि की आड़ में ये देश दबाव बनाने का प्रयास करते हैं. जयशंकर ने उचित ही रेखांकित किया है कि ये उनकी पुरानी आदतें हैं और खराब आदतें हैं.वैसे भी अतरराष्ट्रीय व्यवस्था में एक-दूसरे देश की संप्रभुता के सम्मान का सिद्धांत आधारभूत सिद्धांत है.

स्थापित आचरणों, परंपराओं और व्यवहारों का अनुपालन अगर कोई देश नहीं करता है, तो फिर उसे भी तैयार रहना चाहिए कि दूसरे देश उसकी राजनीति और कानून-व्यवस्था पर अपने विचार रखेंगे. कुछ दिनों पूर्व चीन ने अरुणाचल प्रदेश की विकास परियोजनाओं तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा को लेकर आपत्ति की थी. उसने प्रदेश के अनेक स्थानों का नामकरण भी किया है. जयशंकर ने फिर रेखांकित किया है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा रहेगा. इससे पहले चीन कश्मीर और लद्दाख पर भी निराधार बयान दे चुका है.भारत में संवैधानिक और कानूनी व्यवस्था के अंर्तगत क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए? क्या सही है और क्या गलत, इस बारे में विचार करने, समर्थन करने, आलोचना करने या विरोध जताने का अधिकार भारत के लोगों को ही है.अमेरिका हो, जर्मनी हो या चीन हो, उन्हें अपने देशों की चिंता करनी चाहिए.आपत्तिजनक टिप्पणियों से परस्पर विश्वास को चोट पहुंच सकती है और संबंध प्रभावित हो सकते हैं. कुल मिलाकर पश्चिमी देशों को ऐसे सभी मामलों में करारा जवाब दिया जाना जरूरी है, जो भारत ने दिया भी है.

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