शिप्रा में मिलने वाले गंदे नालों की स्थिति जस की तस ही बनी 

करोड़ खर्च कर दिए फिर भी शिप्रा का आंचल मैला ही रहा…,अब सिंहस्थ के पहले बंधी है उम्मीद..

 

नवभारत

उज्जैन। यूं भले ही शिप्रा नदी को शुद्ध करने के लिए अभी तक करोड़ों रूपए खर्च कर दिए गए हों। लेकिन शिप्रा का आंचल मैला का मैला ही बना हुआ है। हालांकि अब उम्मीद जरूर बंधी है कि सिंहस्थ 2028 के पहले शिप्रा का शुद्धिकरण बेहतर रूप से हो जाएगा। गौरतलब है कि सिंहस्थ को लेकर सीएम डॉ.मोहन यादव ने योजनाएं बना ली है और इसमें शिप्रा का शुद्धिकरण भी शामिल है।

गौरतलब है कि हाल ही में एक बार फिर शिप्रा में गंदे नाले का पानी मिलने से लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी प्रत्याशी महेश परमार भडक़ गए थे और उन्होंने गंदे पानी में ही बैठकर धरना दे दिया था। यूं महेश परमार के इस धरने को भले ही मौजूदा चुनावी राजनीति से जोडक़र देखा जा रहा हो लेकिन असल में शिप्रा में मिलने वाले गंदे नालों की स्थिति जस की तस ही बनी हुई है।

पहली बार नहीं हुआ…पंडे भी नाराज रहते हंै-यहां बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब शिप्रा में गंदा पानी मिलकर शिप्रा की आत्मा को चोट पहुंचाई गई हो। ऐसा कई बार पहले भी हो चुका है। शिप्रा की दुर्दशा को देखकर घाटों पर पूजा पाठ का काम कराने वाले पंडे और तीर्थ पुरोहित भी प्रशासन से नाराज बने रहते है। चर्चा में कुछ पंडे पुजारियों ने यह बताया कि भले ही पर्व स्नानों पर श्रिप्रा में नर्मदा का पानी छोड़ दिया जाता हो। लेकिन सामान्य दिनों में प्रशासन का ध्यान शिप्रा की तरफ नहीं रहता है और चाहे जब गंदा पानी आकर मिलता रहता है। कई बार इस ओर प्रशासन का ध्यान आकृष्ट किया गया। लेकिन सुनवाई ही नहीं होती है। नदी का पानी गंदा होने के पीछे दूसरा बड़ा कारण शहर के 11 नालों का मिलना बताया जाता था। सिंहस्थ में करीब 3 करोड़ रुपए खर्च नए पंप लगाए गए थे। इनके संचालन पर हर महीने लाखों रुपए खर्च होते हैं। दावा है कि सभी पंपिंग स्टेशन चालू हैं और नालों का पानी नहीं मिल रहा है। इसके बावजूद शिप्रा का पानी प्रदूषित है।

 

मेघदूत में उल्लेख देखने को मिलता है

प्राचीन शिप्रा नदी धार्मिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा इस नदी का विभिन्न प्राचीन पुराणों ब्रह्मपुराण, स्कन्दपुराण व कालिदास रचित मेघदूत में उल्लेख देखने को मिलता है। इसकी उत्पत्ति को लेकर अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं हैं। जिनके आधार पर शिप्रा नदी का जन्म भगवान विष्णु की अंगुली के रक्त से हुआ है मेघदूत में उल्लेख देखने को मिलता है। कहा जाता है कि भगवान शिव एक बार भगवान विष्णु से भिक्षा मांगने पहुंचे। उस समय भगवान विष्णु ने भिक्षा देते हुए उन्हें अंगुली दिखा दी थी। जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उनकी अंगुली पर वार कर दिया। मान्यता है कि उस समय भगवान विष्णु की अंगुली से जो रक्तधारा निकली, वही धरती पर आकर शिप्रा नदी बन गयी। एक और धार्मिक मान्यता के आधार पर शिप्रा नदी की उत्पत्ति भगवान शिव के खप्पर से हुई है।

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