लोकसभा में मालवीय और अल्पसंख्यक समाज निर्णायक भूमिका में
शाजापुर, 14 अप्रैल. देवास-शाजापुर संसदीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा निर्णायक भूमिका में मालवीय समाज है और मालवीय समाज के वोटों से ही राजनीति रोशन होती है. एक दर्जन से अधिक सांसद मालवीय समाज के वोटों से चुनाव जीतते रहे हैं, लेकिन उसी मालवीय समाज को किसी भी राजनीतिक दल ने एक धर्मशाला भी देना उचित नहीं समझा. हर चुनाव में मालवीय समाज को धर्मशाला के नाम पर सदाबहार आश्वासन मिला है.
गौरतलब है कि देवास-शाजापुर संसदीय क्षेत्र में लगभग 4 लाख से अधिक मतदाता मालवीय समाज के हैं. जिन्होंने विधानसभा चुनाव या लोकसभा चुनाव में थोकबंद वोट राजनीतिक दलों को दिए हैं, लेकिन चुनाव के बाद नेताओं ने मालवीय समाज को कुछ नहीं दिया. जिला मुख्यालय पर लगभग सभी समाज की धर्मशाला है, लेकिन मालवीय समाज की धर्मशाला शहर में नहीं है. 20 साल पहले पूर्व विधायक हुकुमसिंह कराड़ा ने मालवीय समाज की धर्मशाला बनवाई थी, जो अब जर्जर हालत में है. समाज ने कई बार हर नेता से हर चुनाव में समाज की धर्मशाला के लिए अपनी मांग रखी, लेकिन समाज को केवल नेताओं से मिला आश्वासन. बीते तीन दशकों में मालवीय समाज से ही कई नेता चुनाव जीतते रहे हैं. लेकिन मालवीय समाज को इन नेताओं ने सामाजिक स्तर पर ऐसा कुछ नहीं दिया, जिसे समाज याद रखे.
राधाकिशन मालवीय भी नहीं दे पाए कोई सौगात
पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. राधाकिशन मालवीय भी शाजापुर से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. हालांकि वे चुनाव हार गए थे. लेकिन वे भी शाजापुर संसदीय क्षेत्र में मालवीय समाज के लिए कोई सौगात नहीं दे पाए. अब उनके पुत्र राजेंद्र मालवीय इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. अब देखना यह है कि वे मालवीय समाज को क्या नया आश्वासन देते हैं. क्योंकि जो जीत जाता है वो जीत में खुश रहता है और जो हार जाता है वो वापस चला जाता है और हार-जीत के इस फेर में मालवीय समाज हर चुनाव में ठगा हुआ महसूस करता है.
मालवीय और अल्पसंख्यक समाज जिसके साथ, उसकी जीत तय
लगभग 4 लाख मालवीय समाज मतदाता हैं और 2 लाख से अधिक अल्पसंख्यक मतदाता हैं. जो भी राजनीतिक दल इन मतदाताओं में सेंध लगाएगा. उसकी जीत लगभग तय होगी. बीते तीन दशकों में यदि लोकसभा चुनाव की बात करें, तो जातिगत समीकरण का पलड़ा भाजपा की तरफ रहा है. पूर्व सांसद थावरचंद गेहलोत मालवीय समाज से थे, उन्हें मालवीय समाज के भरपूर वोट मिले, लेकिन वे भी चार बार के सांसद और केंद्रीय मंत्री होने के बाद भी मालवीय समाज को धर्मशाला नहीं दे सके. बापूलाल मालवीय भी शाजापुर से कांग्रेस के सांसद रहे, लेकिन वे भी मालवीय समाज को ऐसी सौगात नहीं दे पाए, जो समाज के लिए यादगार रहे. वहीं दूसरी ओर अल्पसंख्यक समाज की बात करें, तो कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक अल्पसंख्यक माना जाता है, लेकिन कांग्रेस ने भी अल्पसंख्यक के उत्थान के लिए और सामाजिक स्तर बढ़ाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए.
वोट के दोहन तक सीमित हैं अल्पसंख्यक
नगर पालिका चुनाव हो, विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव हो. कांग्रेस ने अल्पसंख्यक वोटों का केवल दोहन किया है. अल्पसंख्यक समाज शत-प्रतिशत कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है, लेकिन बीते चार दशकों में कांग्रेस ने अल्पसंख्यक समाज की दशा और दिशा सुधारने के बजाय केवल वोट तक ही सीमित रखा है. यही कारण है कि आज अल्पसंख्यक समाज केवल कांग्रेस के लिए वोट देने तक ही सीमित होकर रह गया है. शाजापुर शहर में ही 20 हजार से अधिक अल्पसंख्यक मतदाता हैं. लेकिन उनके वार्डों में विकास किसी से छुपा नहीं है.
इनका कहना है
मालवीय समाज की धर्मशाला की मांग बरसों से की जा रही है. केवल एक धर्मशाला 20 साल पहले बनाई थी, जो जर्जर अवस्था में है. पूरे संसदीय क्षेत्र में मालवीय समाज के सबसे ज्यादा मतदाता हैं, लेकिन राजनीतिक दलों ने मालवीय समाज को केवल आश्वासन के अलावा कुछ नहीं दिया.
– दिलीप बामनिया, युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष, मालवीय समाज, शाजापुर