प्रयागराज जैसे हादसों की पुनरावृत्ति ना हो

प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या के स्नान का पुण्य कमाने आई श्रद्धालुओं की भारी भीड़ में मची भगदड़ के कारण 40 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इस हादसे की जांच के लिए रिटायर्ड न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायिक जांच कराने का फैसला किया है. इस जांच समिति के निष्कर्ष जब आएंगे, तब आएंगे, अभी उत्तर प्रदेश शासन और प्रशासन की प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि आगे की महत्वपूर्ण तिथियों पर इस हादसे की पुनरावृत्ति ना हो. बहरहाल,इस हादसे ने पुन: यह प्रश्न खड़ा कर दिया कि आखिर हमारे देश में भारी भीड़ वाले आयोजनों में जानलेवा हादसे क्यों होते रहते

हैं ? प्रारंभिक निष्कर्ष के अनुसार प्रयागराज मेला क्षेत्र में रात दो बजे के करीब भगदड़ इसलिए मच गई, क्योंकि बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ आए.उनके दबाव से बैरीकेड टूट गई और फिर अव्यवस्था फैल गई.इसके चलते लोग एक के ऊपर एक चढ़ते गए और आपाधापी में उन्होंने उन लोगों को भी कुचल दिया, जो मौनी अमावस्या पर संगम में डुबकी लगाने के लिए शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे,इनमें से कुछ तो वहां सो रहे थे. ऐसे में पूछा जा सकता है कि जब प्रशासन अच्छी तरह अवगत था कि मौनी अमावस्या पर करोड़ों श्रद्धालु आएंगे, तब उसने उन्हें संगम तट पर रुकने और सोने से क्यों नहीं रोका ? जब श्रद्धालुओं की अथाह भीड़ आनी थी, तब लोगों को संगम तट पर प्रतीक्षा करने और विश्राम करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी, क्योंकि इससे भीड़ का अनावश्यक दबाव बढ़ाना ही था, दुर्भाग्य से ऐसा हुआ भी.

प्रशासन की प्राथमिकता तो यह होनी चाहिए थी कि श्रद्धालु आते जाएं और स्नान कर प्रस्थान करते जाएं. प्रारंभिक निष्कर्ष में यह भी पता चला है कि मेला क्षेत्र में श्रद्धालुओं के आने और जाने के लिए एक ही मार्ग खुला रखा गया था. बाकी मार्गो से शाही स्नान के लिए अखाड़े आनेवाले थे. एक ही मार्ग पर श्रद्धालुओं के आमने-सामने आने से स्थिति और बिगड़ गई.लगता है मेला प्रशासन स्थिति का आंकलन करने में चूक गया और इसी के चलते अनहोनी हो गई.इस तरह की अप्रिय घटनाएं केवल सुरक्षा प्रबंधों में किसी कमी के कारण ही नहीं होतीं, वे लोगों की ओर से अनुशासन का परिचय न देने के कारण भी होती हैं.प्राय: आस्था के आवेग में लोग या तो संयम खो देते हैं या फिर सुरक्षा प्रबंधों की अनदेखी कर देते हैं. जाहिर है प्रयागराज में ऐसा ही हुआ. दरअसल,इतने बड़े आयोजन में कोई भी सुरक्षा व्यवस्था तभी प्रभावी हो सकती है, जब लोग प्रशासन का सहयोग करें और उसके निर्देशों का पालन करने के लिए तत्पर रहें.काश, महाकुंभ पहुंचे सभी श्रद्धालु यह समझ पाते कि मानव इतिहास के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में उन्हें श्रद्धा भाव के साथ ही अनुशासन भाव का भी परिचय देना होगा.जब भी इसका अभाव व्याप्त होता है, भगदड़ जनित घटनाएं हो जाती हैं. बहरहाल,यह पहले से संभावित था कि मौनी अमावस्या पर महाकुंभ में आठ-दस करोड़ श्रद्धालु आ सकते हैं. जाहिर है इतनी बड़ी संख्या को संभालने का पूर्वानुभव किसी भी प्रशासनिक अमले के पास नहीं हो सकता था. ऐसे में प्रशासनिक अधिकारियों ने अनुमान लगाने और योजना बनाने में गलती कर दी.महाकुंभ में भगदड़ के बाद जिस तरह आसपास के जिलों से आ रहे वाहनों को रोकना पड़ा और श्रद्धालुओं से भरी ट्रेनों को रुक-रुक कर चलाना पड़ा, उससे यह भी रेखांकित हो रहा है कि जब भीड़ प्रबंधन एक कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य दिख रहा था, तब ऐसे किसी संदेश से क्यों नहीं बचा गया कि महाकुंभ में स्नान की सबसे पावन बेला मौनी अमावस्या ही है ? जो भी हो, कम से कम अब यह देखा जाना चाहिए कि महाकुंभ के बाकी सभी महत्वपूर्ण स्नान निर्विघ्न रूप से संपन्न हों !

 

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