ऐसे नहीं होगा प्रदूषण नियंत्रण

प्रतिवर्ष जब भी छठ त्योहार आता है दिल्ली और अन्य राज्यों में गंगा और यमुना के प्रदूषित होने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया जाता है. इस मुद्दे पर राजनीति की जाती है और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता है. इसी के साथ पराली जलने के मुद्दे पर भी राजनीति होती है. आम आदमी पार्टी हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों पर आरोप लगाती है जहां भाजपा का शासन है तो भाजपा पंजाब और दिल्ली सरकार को दोषी ठहराती है जहां आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं. दिल्ली में दिवाली आने पर आतिशबाजी के प्रबंध पर भी इसी तरह की राजनीति होती है. जाहिर है जुबानी जमा खर्च तो होता है लेकिन समस्या का हल नहीं निकाला जाता.

दीपावली का त्योहार बीत गया, जैसी आशंका थी दीपावली पर प्रदूषण के स्तर में वृद्धि होगी, वैसा ही हुआ. पिछले दिनों खबर आई कि दिल्ली दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित राजधानी है. एक रिपोर्ट के अनुसार देश के सर्वाधिक प्रदूषित 32 शहरों में ग्यारह हरियाणा के हैं. यही वजह है कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकारों को फटकार लगाई कि प्रदूषण रोकने के लिये जमीनी स्तर पर प्रयास न के बराबर हैं.दरअसल, इस मौसम में हर साल ठंड शुरू होते ही हवा की दशा-दिशा में बदलाव के साथ ही आसमान में धुएं की परत जमने लगती है. यही वजह है कि पराली संकट व अन्य कारणों से बढ़ते प्रदूषण से चिंतित सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहना नागरिकों का मौलिक अधिकार है. साथ ही एक हकीकत यह भी है कि सिर्फ सरकारी प्रयासों से ही प्रदूषण की समस्या का समाधान संभव नहीं है.यह स्थिति तभी बदलेगी जब लोगों की तरफ से भी ईमानदार पहल होगी.दरअसल,बात तब बनेगी जब हम बच्चों के पाठ्यक्रम में यह बात शामिल करेंगे कि उनके भविष्य के लिये पर्यावरण, पानी व हवा की रक्षा कितनी जरूरी है.बच्चों को अहसास कराएं कि जिस तरह से बड़े लोग पानी का दुरुपयोग कर रहे हैं, उससे उनके भविष्य के लिये पानी का संकट गहरा हो जाएगा.इसके लिये टीवी, प्रिंट मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाये जा सकते हैं.इस अभियान में सूचना माध्यमों की भी जवाबदेही तय करने की जरूरत है.वैसे तो ग्रीन ट्रिब्यूनल या अन्य प्रदूषण नियंत्रक संस्थाएं अकसर राज्यों के सचिवों व अधिकारियों को दंडित करने की बात करती हैं, लेकिन यह इस समस्या का समाधान नहीं है.दरअसल, जब तक नागरिकों व किसानों को जागरूक, जवाबदेह नहीं बनाया जाएगा, तब तक स्थिति में बदलाव संभव नहीं है.विडंबना यही है कि वे वोट की राजनीति के प्रलोभन में पराली जलाने के खिलाफ आवाज उठाने में चुप्पी साध लेते हैं.उनके खिलाफ भी तो लापरवाही के मामले दर्ज होने चाहिए.वहीं यह भी हकीकत है कि प्रदूषण संकट के मूल में सिर्फ पराली समस्या ही नहीं है.हमारी उपभोक्ता संस्कृति, वाहनों का अंबार, सार्वजनिक यातायात सुविधा का पर्याप्त न होना, अनियोजित निर्माण कार्य, जीवाश्म ईंधन का प्रयोग तथा कूड़े का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण न होना भी प्रदूषण संकट के मूल में है.इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये व्यापक स्तर पर जनजागरण अभियान चलाने, शैक्षिक पाठ्यक्रम में प्रदूषण-पर्यावरण के मुद्दे शामिल करने तथा तंत्र की जवाबदेही तय करना प्राथमिकता होनी चाहिए.यदि हम ऐसा करें तो साल-दर-साल बढ़ते प्रदूषण संकट पर किसी तरह लगाम लगाने में हम कामयाब हो सकते हैं. साथ ही हर साल वायु प्रदूषण से होने वाली लाखों मौतों को हम रोक पाने में कामयाब हो सकते हैं.शासन को भी आग लगने पर कुआं खोदने की मानसिकता से बचना होगा और दूरगामी प्रभावों वाली नीतियां लागू करनी होंगी.

Next Post

वार्षिक राशि भविष्य : 01 नवंबर 2024 से 31 अक्टूबर 2025 तक

Wed Nov 6 , 2024
Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Total 0 Shares Facebook 0 Tweet 0 Mail 0 WhatsApp 0

You May Like