मुंबई, 01 नवंबर (वार्ता) बॉलीवुड की जानीमानी अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरी आज 59 वर्ष की हो गयी।
पद्मिनी कोल्हापुरी का जन्म 01 नवंबर, 1965 को एक मध्यम वर्गीय कोंकणी परिवार में हुआ। उनके पिता पंढरीनाथ कोल्हापुरे शास्त्रीय गायक थे, जबकि उनकी मां एयरलाइंस में काम किया करती थीं। घर में संगीत का माहौल रहने के कारण पद्मिनी कोल्हापुरी का रुझान भी संगीत की तरफ हो गया और वह अपने पिता से संगीत सीखने लगीं। वर्ष 1973 में प्रदर्शित फिल्म ‘यादों की बारात’ में उन्हें गाने का अवसर मिला। इस फिल्म में उनकी आवाज में रचा बसा यह गीत ‘यादो की बारात निकली है आज दिल के द्वारे’ श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद उन्होंने किताब, दुश्मन, दोस्त जैसी फिल्मों में भी अपनी बहन शिवांगी के साथ पार्श्वगायन किया।
पद्मिनी कोल्हापुरी ने बतौर बाल कलाकार अपने करियर की शुरुआत निर्माता बी.एस.थापा की फिल्म ‘एक खिलाड़ी बावन पत्ते’ से की। वर्ष 1974 में उन्हें अपनी दूर की रिश्तेदार आशा भोंसले के प्रयास से देवानंद की फिल्म ‘इश्क इश्क इश्क’ में बतौर बाल कलाकार काम करने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने ड्रीमगर्ल, साजन बिना सुहागन, जिंदगी जैसी फिल्मों में भी बतौर बाल कलाकार काम किया। वर्ष 1977 में प्रदर्शित फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ उनके करियर की अहम फिल्म साबित हुई। राजकपूर की इस फिल्म में उन्होंने अभिनेत्री जीनत अमान के बचपन की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म में पदमिनी के अभिनय को जबरदस्त सराहना मिली इसके साथ ही वह दर्शको के बीच अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गई।
वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘इंसाफ का तराजू’ पद्मिनी कोल्हापुरी के करियर की महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई। बी.आर.चोपड़ा के बैनर तले बनी यह फिल्म वर्ष 1976 में प्रदर्शित हॉलीवुड फिल्म ‘लिपिस्टक’ की रिमेक थी। इस फिल्म में पद्मिनी कोल्हापुरी ने अभिनेत्री जीनत अमान की बहन की भूमिका निभाई थी जिन्होंने बलात्कार की शिकार एक युवती की भूमिका निभाई थी। फिल्म में अपनी संजीदा भूमिका से उन्होंने दर्शको का दिल जीत लिया साथ ही सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित की गई।बतौर अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुर ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘जमाने को दिखाना है’ से की। नासिर हुसैन निर्मित इस फिल्म में उनके नायक की भूमिका अभिनेता ऋषि कपूर ने निभाई थी। बेहतरीन गीत-संगीत के बावजूद फिल्म को टिकट खिड़की पर अपेक्षित सफलता नहीं मिली। वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘प्रेम रोग’ में पदमिनी कोल्हापुरी के अभिनय के नए रूप देखने को मिले। राजकपूर के निर्देशन में बनी इस फिल्म में उन्होंने एक विधवा का किरदार निभाया था। अपने भावपूर्ण अभिनय से उन्होंने दर्शकों का दिल जीतकर फिल्म को सुपरहिट बना दिया।फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित की गईं।
वर्ष 1982 में पद्मिनी कोल्हापुरी को सुभाष घई निर्मित फिल्म ‘विधाता’ में काम करने का अवसर मिला जो उनके करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में उन्होंने अभिनय के अलावे एक गीत ‘सात सहेलियां खड़ी खड़ी’ को भी अपनी आवाज दी थी जो उन दिनों श्रोताओं के बीच क्रेज बन गया था। हालांकि, बाद में यह गीत बैन कर दिया गया था। वर्ष 1983 में प्रदर्शित फिल्म ‘सौतन’ उनके करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। इस फिल्म में उन्हें सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म में एक अछूत कन्या का किरदार निभाया था। फिल्म में अपने संजीदा अभिनय के लिये पद्मिनी कोल्हापुरी सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से नामांकित की गई।
वर्ष 1985 में प्रदर्शित फिल्म ‘प्यार झुकता नहीं’ पद्मिनी कोल्हापुरी के करियर की सर्वाधिक सुपरहिट फिल्मों में शुमार की जाती है। इस फिल्म में उनके नायक की भूमिका मिथुन चक्रवर्ती ने निभाई थी। दोनों की जोड़ी को दर्शको ने बेहद पसंद किया। फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए पद्मिनी कोल्हापुरी अपने करियर में दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से नामांकित की गई।वर्ष 1986 में प्रदर्शित फिल्म ‘ऐसा प्यार कहां’ के निर्माण के दौरान उनका झुकाव निर्माता टुटु शर्मा की ओर हो गया और बाद में उन्होंने शादी कर ली। शादी के बाद पद्मिनी कोल्हापुरी ने फिल्मों में काम करना काफी हद तक कम कर दिया।
वर्ष 1993 में प्रदर्शित फिल्म ‘प्रोफेसर की पड़ोसन’ के बाद पद्मिनी कोल्हापुरी ने फिल्म इंडस्ट्री से संयास ले लिया। वर्ष 2004 में प्रदर्शित मराठी फिल्म ‘मंथन’ से उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी वापसी की। फिल्म में उनकी भूमिका दर्शकों के बीच काफी सराही गई। उन्होंने अपने करियर में लगभग 60 फिल्मों में काम किया है। वह इन दिनों बॉलीवुड में अधिक सक्रिय नहीं हैं।