नयी दिल्ली, 24 अक्टूबर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने अचल संपत्तियों को तोड़ने के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार, उत्तराखंड और राजस्थान के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करने की याचिका गुरुवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह उस पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है।
पीठ ने कहा, “हम भानुमती का पिटारा नहीं खोलना चाहते हैं।”पीठ ने कहा कि कोई भी प्रभावित व्यक्ति अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है, कोई तीसरा पक्ष नहीं।
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन की ओर से अधिवक्ता एम निजाम पाशा ने दावा किया कि ऐसे तीन उदाहरण हैं, जहां तोड़फोड़ करने से पहले अदालत से अनुमति नहीं ली गई।
उन राज्यों सरकारों की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि तोड़फोड़ फुटपाथ पर की गई। उन्होंने कहा कि याचिका समाचार रिपोर्ट के आधार पर तीसरे पक्ष द्वारा दायर की गई थी।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह संपत्तियों के तोड़फोड़ से प्रभावित लोगों की सुनवाई करेगा।
इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ऐसे तथ्य सामने लाने वाले पत्रकारों को भी परिणाम भुगतने पड़े।इसके बाद पीठ ने कहा कि पत्रकारों को अदालत का दरवाजा खटखटाने दें।
याचिका में आरोप लगाया कि हरिद्वार, जयपुर और कानपुर में अधिकारियों ने शीर्ष के आदेश की अवमानना करते हुए अचल संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि बिना उसकी अनुमति के आरोपियों की संपत्ति नहीं तोड़ी नहीं जाएगी।
शीर्ष अदालत ने एक अक्टूबर को अपने 17 सितंबर के आदेश को आगे बढ़ा दिया था, जिसमें इस न्यायालय की अनुमति के बिना आपराधिक मामले में आरोपी की संपत्ति को तोड़ने के लिए सरकार द्वारा बुलडोजर के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई थी।
न्यायालय ने हालांकि,तब सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों या जल निकायों पर अतिक्रमण से जुड़ी कार्रवाई को छूट दी थी।