*कांग्रेस : मोदी के असर और मंदिर लहर के बीच हार का पिछला बड़ा अंतर पाटने की भी चुनौती*
हरीश दुबे
ग्वालियर। कांग्रेस ने भले ही ग्वालियर चंबल संभाग की दो महत्वपूर्ण संसदीय सीटों पर अपने प्रत्याशी तय करने में देर कर दी लेकिन आज घोषित दोनों प्रत्याशियों के प्रोफाइल, जनाधार और पिछले रिपोर्ट कार्ड के आधार पर इतना तो कहा ही जा सकता है कि कांग्रेस ने ग्वालियर और मुरैना सीटों पर चुनाव को कांटे के संघर्ष में तब्दील करने की भरसक कोशिश की है। ग्वालियर और मुरैना में प्रत्याशी बनाए गए प्रवीण पाठक एवं नीटू सिकरवार के बीच कई समानताएं हैं। दोनों ही युवा चेहरे होने के साथ तेजतर्रार छवि रखते हैं और एक एक बार विधायक भी रह चुके हैं। कई मौके ऐसे भी आए जब इन दोनों नेताओं ने सिद्धांतों के सवाल पर समझौते करने या झुकने के बजाए न सिर्फ अपनी ही पार्टी के कतिपय नेताओं से टकराने में भी गुरेज नहीं किया।
करीब महीना भर की असमंजश के बाद ग्वालियर और मुरैना सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों के नामों के ऐलान के साथ चुनावी अखाड़ा पूरी तरह सज गया है। दिलचस्प बात यह है कि ग्वालियर में भाजपा और कांग्रेस ने ऐसे चेहरों को प्रत्याशी बनाया है जो पिछले विधानसभा चुनाव में परास्त हो गए थे, हालांकि इस जीत हार का मार्जिन ज्यादा नहीं था। कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण पाठक के समक्ष ग्वालियर सीट पर विगत सत्रह वर्ष से लगातार मिल रही पराजय को इस बार विजयश्री में बदलने की चुनौती है। कांग्रेस के कद्दावर नेता अशोक सिंह इस सीट पर लगातार चार बार पराजित हो चुके हैं। इससे कहीं बड़ी चुनौती मुरैना में कांग्रेस के उम्मीदवार नीटू सिकरवार के समक्ष है। दरअसल, मुरैना सीट पर कांग्रेस को विगत साढ़े तीन दशक से राजनीतिक सूखे की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। सन 91 में निर्वाचित बारेलाल जाटव यहां से आखिरी कांग्रेस सांसद थे। उनके बाद करीब 35 वर्ष से यहां भाजपा ही लगातार जीत रही है। अशोक अर्गल लगातार चार बार जीते और फिर परिसीमन में जब यह सीट अनारक्षित हो गई तो नरेंद्र सिंह तोमर यहां से जीतते रहे, बीच में एक मर्तबा अनूप मिश्रा को भी नुमाइंदगी का मौका मिला।
कांग्रेस का मुकाबला नरेंद्र सिंह के राजनीतिक आभामंडल से
सच्चाई यह है कि ग्वालियर और मुरैना, दोनों सीटों पर विधानसभा अध्यक्ष तोमर की ही प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। संवैधानिक पद पर होने के कारण तोमर चुनाव प्रचार से दूर हैं लेकिन ग्वालियर के भारतसिंह कुशवाह और मुरैना के शिवमंगल सिंह तोमर उन्हीं के खेमे के माने जाते हैं। माना जाता है कि इन दोनों को टिकट दिलाने में तोमर की ही भूमिका रही। इस तरह इन सीटों पर कांग्रेस का मुकाबला नरेंद्र सिंह के राजनीतिक आभामंडल से है। विगत आमचुनाव यानि 2019 की बात करें तो भाजपा ने ग्वालियर में कांग्रेस को 1.46 लाख और मुरैना में 1.14 लाख वोटों के बड़े अंतर से हराया था। मोदी इंपेक्ट और राम मंदिर की लहर के बीच हो रहे चुनाव में कांग्रेस ने अनुभवी युवा चेहरे मैदान में उतारे हैं, इनके समक्ष पिछली हार के बड़े अंतर को पाटने के साथ चुनावी डगर पर खुद को साबित करने की चुनौती है।