आदिवासी से जब्बर डाकू बन नगर में आया बहरूपिया जनता का कर रहा मनोरंजन

शासन प्रशासन लुप्त होती इस कला का उपयोग शासन की योजनाओं में कर दे संरक्षण – नाहर

 

थांदला निप्र। एक जमाना था जब सीमित मनोरंजन के साधनों में से एक बहरूपिया हुआ करता था जो शहरी तहजीब व सिनेमा में चर्चित कलाकारों से शहरों से दूर बसे ग्रामीणों तक पहुँचा कर उनका मनोरंजन करता था। यही उनकी आजीविका का साधन भी होता था। जमाना बदल गया है आज सोशल मीडिया में अनेक लोग रील के माध्यम से पैसा भी क्रमा रहे है तो जनता का मनोरंजन भी कर रहे है। लेकिन सोशल मीडिया टीवी मोबाइल में दिखने वालें किरदार जब सामने आते है तो उनका क्रेज अलग ही होता है ऐसे में एक बार फिर थांदला नगर में आकाश नामक बहरूपिया आया हुआ है जो कभी नारदमुनि, कभी क्रूरसिंह (यककु), कभी आदिवासी, कभी जोकर, कभी अलादीन तो कभी मेरा गाँव मेरा देश के डाकू जब्बरसिंह जैसे लोकप्रिय विविध कैरेक्टर करते हुए जनता का मनोरंजन कर रहा है। उन्हें देख कर उनके पिता बाबूभाई की स्मृति भी सहज सामने आ गई जो 4 दशकों से भी ज्यादा समय से झाबुआ के विभिन्न क्षेत्रों में आकर अनेक रूप बनाकर जनता को मोहित कर देते थे। परिवार से मिली विरासत को 45 वर्षीय आकाश ने पढ़े-लिखें होने के बावजूद भी बख़ूबी संभाला हुआ है। उन्होंने बताया कि वे राजस्थान के धार्मिक स्थल नाथद्वारा (जयपुर) राजस्थान से थांदला में अपने पिता बाबूभाई भट्ट बहरूपिया के साथ आते थे तब से उनके मन में कलाकार ने घर बना लिया है व अपनी 18 पीढ़ियों से चली आ रही इस परम्परा को आज भी न केवल जिंदा रखे हुए है अपितु लगभग लुप्त हो चुकी है इस कला से भी नई पीढ़ी का दिखा भी रहे है व अपने परिवार का भरण पोषण भी कर रहे है। आकाश भी लम्बे समय से सनातनी देवताओं के व फिल्मी सितारों के चर्चित संवाद बोलते है तो उनकी वाणी में सरस्वती विराजमान हो जाती है व जनता को देखने सुनने को मजबूर कर देती है।

 

सरकार योजनाओं में करें उपयोग तो बच सकती है कला – नाहर

 

देश के लगभग सभी राज्यों में अभिनय कौशल बता चुके आकाश अपने पिता के साथ गोवा फेस्टिवल व विदेशों में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके है। उन्होंने बताया कि उनके पिता व अन्य दो भाई भी इस कला में पारंगत है। आज जनता के पास मनोरंजन के अनेक साधन है फिर भी आकाश को विभिन्न किरदारों में देखने की बेसब्री व उत्सुकता इसे आज भी लोकप्रियता में आगे रखती है। भारतीय मानवाधिकार सहकार ट्रस्ट के प्रदेश सचिव पवन नाहर का मानना है कि आज मोबाइल युग में जब भी सोशल मीडिया जैसे एप पर किसी को अभिनय दिखाई देता है या इससे जुड़े एप निर्माण हुआ है तो उसमें कही ना कही बाबू भाई व आकाश जैसे पारंगत कलाकार का अप्रत्यक्ष हाथ जरूर दिखाई देता है। नाहर ने भारत सरकार, मध्यप्रदेश शासन प्रशासन से निवेदन करते हुए कहा कि उन्हें चाहिये की वह भी लुप्त होती इस बहरूपिया कला का शासकीय योजनाओं के प्रचार प्रसार में उपयोग करें तो न केवल जनता तक योजनाओं की जानकारी पहुँचेगी अपितु ऐसी लुप्त होती कला को भी संजीवनी मिलेगी।

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