डायबिटिक रेटिनोपैथी जांच गाइडलाइन जारी

डायबिटिक रेटिनोपैथी जांच गाइडलाइन जारी

नयी दिल्ली, 10 अक्टूबर (वार्ता) विट्रीओ रेटिनल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (वीआरएसआई) और रिसर्च सोसाइटी फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ डायबिटीज़ इन इंडिया (आरएसएसडीआई) ने मिलकर विश्व दृष्टि दिवस पर गुरुवार को अपनी तरह की पहली डायबिटिक रेटिनोपैथी जांच गाइडलाइंस जारी की, जिससे देश में हर चिकित्सक और मधुमेह विशेषज्ञ को अपने रोगियों को डायबिटिक रेटिनोपैथी के बारे में जागरूक करने में मदद मिलेगी।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण की पूर्व कार्यकारी निदेशक डॉ. सुधा चंद्रशेखर ने इस मौके पर कहा कि मधुमेह से पीड़ित लाखों भारतीयों की आंखों की सुरक्षा के लिये, डायबिटिक रेटिनोपैथी जांच को सरकार की आयुष्मान भारत योजना में शामिल किया है। राष्ट्रीय स्तर पर इसकी शुरुआती पहचान को प्राथमिकता देकर, इस पहल का लक्ष्य पूरे देश में दृष्टि की रक्षा करना और स्वास्थ्य परिणामों में सुधार करना है।

वीआरएसआई के अध्यक्ष डॉ. आर किम ने इस अवसर पर कहा, “ हमें सामूहिक रूप से इन गाइडलाइंस को जारी करने और भारत में मधुमेह रेटिनोपैथी की जांच के लिये एक नया मानक स्थापित करने की खुशी है। चिकित्सकों, मधुमेह विशेषज्ञों और नेत्र रोग विशेषज्ञों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करके, हमारा लक्ष्य बेहतर मधुमेह प्रबंधन को बढ़ावा देना और पूरे देश में रोकथाम योग्य दृष्टि हानि की घटनाओं को कम करना है। ”

उन्होंने कहा कि देश में 10.1 करोड़ से ज्यादा लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, इसलिये यह देश दुनिया की मधुमेह राजधानी कहा जाने लगा है। नतीजतन, मधुमेह से जुड़ी दृष्टिहीनता के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि समय पर पहचान और उपचार से इन मामलों को रोका जा सकता है। मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी की समय पर जांच और इससे निपटने के लिये नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास भेजने में मधुमेह विशेषज्ञ की अहम भूमिका होती है।

वीआरएसआई की महासचिव डॉ. मनीषा अग्रवाल ने कहा, “ डायबिटिक रेटिनोपैथी के बढ़ते फैलाव के बावजूद, सीमित जागरूकता और शुरुआत में इसके लक्षण न दिखने के कारण आंखों की जांच करवाने वाले मधुमेह रोगियों की संख्या बहुत कम है, जो निराशाजनक है। इसलिये डायबिटिक रेटिनोपैथी के कारण होने वाले दृष्टि हीनता के बारे में जागरूकता बढ़ाना और समय पर जांच और उपचार को अनिवार्य बनाने की आवश्यकता है। ”

डॉ मनीषा अग्रवाल ने कहा कि जीवन शैली में बदलाव, शहरों की ओर पलायन, मोटापा और तनाव के कारण देश में मधुमेह रोगियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, साथ ही मधुमेह से संबंधित दृ‌ष्टिहीनता के मामलों भी बढ़े हैं। टाइप-2 मधुमेह कामकाजी आयु वर्ग के लोगों में आम है, जो उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। अगर समय पर इसकी जांच नहीं की जाती है, तो यह भारत में दृष्टि हीनता का प्रमुख कारण बन सकता है, जिससे भारी आर्थिक बोझ पड़ सकता है। मधुमेह रेटिनोपैथी के 12.5 प्रतिशत और दृष्टि को खतरे में डालने वाले ‘मधुमेह रेटिनोपैथी’ के चार प्रतिशत राष्ट्रीय फैलाव के साथ, लगभग 30 लाख भारतीयों को अंधेपन का खतरा है। यह स्थायी दृष्टि हीनता रोकने के लिये मधुमेह के प्रत्येक रोगी की समय पर जांच की जरूरत को दर्शाता है। इस खतरे को शुरुआती चरण में पहचानना मुश्किल होता है, इसलिये इसको ‘दृष्टि का साइलेंट चोर’ कहा जाता है।

आरएसएसडीआई के महासचिव डॉ. संजय अग्रवाल ने कहा, “ भारत में मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों की बढ़ती संख्या न केवल ग्लूकोज के स्तर की निगरानी के महत्व को दर्शाती है, बल्कि समग्र स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिये मधुमेह से जुड़ी अन्य स्वास्थ्य जटिलताओं के लिए नियमित जांच भी कराना महत्वपूर्ण है। मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी एक ऐसी जटिलता है, जिसका अगर इलाज न किया जाये, तो यह गंभीर और अंधेपन का कारण बन सकती है। ये गाइडलाइंस समय पर मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी जांच की जरूरत के बारे में सामान्य चिकित्सकों और मधुमेह विशेषज्ञों के बीच जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे। ”

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