– 10 वें राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के भारत क्षेत्र सम्मेलन में विस अध्यक्ष तोमर ने कहा
प्रशासनिक संवाददाता
भोपाल, 23 सितंबर. संसद और विधानसभा लोकतांत्रिक व्यवस्था के आधार हैं. इसके साथ ही पंचायती राज संस्थाएं भी लोकतंत्र की बुनियाद रखती हैं, लेकिन पंचायती राज संस्थाएं भी संसद और विधानसभा के द्वारा बनाएं अधिनियमों से ही संचालित होती है, इसलिए लोकतंत्र का प्रकाश उपर से नीचे की ओर ही जाता है. इसलिए यह आवश्यक है कि सतत व समावेशी विकास से लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विधायिका की भूमिका बहुत ही सकारात्मक और सशक्त होना चाहिए. इससे राष्ट्र को लाभ मिलेगा.
यह बात मप्र विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार को संसद भवन, नई दिल्ली में आयोजित 10 वें राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) के भारत क्षेत्र सम्मेलन में सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में विधायिका की भूमिका विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कही. सम्मेलन की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने की. राज्यसभा के उपसभापति हरवंश, राज्यों के विधानसभा अध्यक्ष एवं विधासभाओं के प्रमुख सचिवगण भी मौजूद थे. संबोधन के दौरान तोमर ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कि सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भारत अग्रणी देश है और हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. सभी राज्य सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं. संसद और विधानसभाओं की अपनी-अपनी भूमिका है, और दोनों लोकतंत्र को सशक्त करने का कार्य करती हैं. हमारी विधायिका ने सतत विकास लक्ष्यों को सदैव प्राथमिकता दी है. तोमर ने कहा कि संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के फलस्वरूप वहां अनुसूचित जाति-जनजाति को आरक्षण का लाभ प्राप्त हुआ है. इसी तरह संसद ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम के माध्यम से महिला सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त किया है. विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि मप्र विधानसभा देश की पहली विधानसभा है जिसने बलात्कार के दोषी को फांसी की सजा देने के लिए कानून में प्रावधान करने के साथ ही ऐसे मामलों को फास्ट ट्रेक कोर्ट में चलाने का की व्यवस्था की है. तोमर ने कहा कि 2047 तक हमें यदि विकसित भारत बनाना है तो सभाी राज्यों की विधायिकओं को भी सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए.