अभ्यास मंडल के मंच पर पद्मश्री मालिनी अवस्थी का व्याख्यान
इंदौर: भारतीय लोकाचार हमारी सबसे बड़ी संपदा है, जो हमें हमारे पूर्वजो से मिली है। इस पर हम जितना गर्व करे उतना कम हैं। दुर्भाग्य से आज की नई पीढी जितनी अधिक पढ़ लिखकर आधुनिक होती जा रही है उतनी ही वह इस से दूर होती जा रही हैं.यह बात भारतीय लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने अभ्यास मंडल के मंच पर आज जाल सभाग्रह् में कही. वे अभ्यास मंडल की 63वीं वार्षिक व्याख्यान माला के दूसरे दिन लोक में आलोक में भारत विषय पर अपना व्याख्यान देने लखनऊ से आई थी। अध्यक्षता प्रदेश महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष शोभा ओझा ने की. मालिनी अवस्थी ने त्रेतायुग से लेकर द्वापर युग और आज के युग को रेखांकित करते हुए लोक गीत और दोहो के माध्यम से कहा कि भारत की परम्परा परोपकार, लोक कल्याण और उदारता की रही है.
इस देश में उसी को सम्मान मिला, जो दूसरो के लिए जिया, उसी को समाज याद भी रखता है. वसुधैव कुटुंबकम भारत की परम्परा और संस्कृति हैं. भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ चेतन् ही नहीं जड़ को भी पूजा जाता है. विवाह या मांगलिक कार्यक्रम में महिलाएं जड़ रूपी नदी से मिट्टी लेकर आती है, फिर उसे माड़ कर चूल्हा बनाती है, उसके बाद अग्नि से पवित्र कर उस पर पकवान बनाती है. भारतीय लोक गीतों में केवल पूर्वजों और देवी देवताओ का ही नहीं वर्षा, आंधी, तूफान तक का आह्वान होता है। यह है भारत की सांस्कृति.
लोक गीत किताबों में नहीं मिलते
श्रीमती अवस्थी ने आगे कहा कि भारतीय लोक गीत या लोकाचार हमें स्कूल कॉलेज की किताबों में नहीं मिलते और ना ही लाइब्रेरी में. जबकि भारतीय लोकाचार में हमारे सभी तत्व निहित है. अतिथि स्वागत नेताजी मोहिते, वैशाली खरे एवं फादर पायस लॉकर ने किया. अतिथि को प्रतीक चिन्ह शोभा ओझा ने प्रदान किया. संचालन हरेराम वाजपेयी ने किया। आभार माना गौतम कोठारी ने. इस मौके पर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, पं. कृपाशंकर शुक्ला, पूर्व कुलपति डॉ. नरेंद्र धाकड, अतुल सेठ, बसंत सोनी, ओ पी नरेडा, सुरेश मिंडा, अशोक कोठारी, शरद सोमपुरकर सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे