डॉ रवि तिवारी
काग्रेस और भाजपा की सत्ता में विधानसभा की गतिविधियों में जो सक्रियता अब तक मिलती रही है. इस बार उपसमितियों के गठन में विपक्ष को विंध्य से महत्व न देकर प्रदेश में नई राजनीति के चलन का शुभारंभ किया गया है. प्रदेश की विधानसभा में हमेशा से विंध्य को विशेष महत्व दिया जाता रहा है. यही वजह है कि विंध्य के आधा दर्जन नेताओं को प्रदेश की विधानसभा चलाने का अवसर मिलता रहा है. बैरिस्टर गुलशेर अहमद, रामकिशोर शुक्ल, श्रीनिवास तिवारी और गिरीश गौतम विंध्य से ही विधानसभा अध्यक्ष का दायित्व सभालते रहे हैं. तब की राजनीति में क्या सत्ता क्या विपक्ष सब को खासा महत्व मिलता रहा है.
विधानसभा की स्थाई समितियों में विंध्य के सदस्यों को पर्याप्त स्थान दिया जाता रहा है.पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष पूर्व मंत्री डॉ राजेन्द्र सिंह, पूर्व नेता प्रतिपक्ष कभी आधा दर्जन से अधिक मंत्रालयों के मंत्री रहे अजय सिंह राहुल भइया को समितियों में स्थान न मिल पाना लोगो को समझ नही आ रहा है. इसके अलावा रीवा सेमरिया से पुन: जीत कर विधानसभा पहुचे अभय मिश्रा और सतना भाजपा के बड़े नेता चार बार के सांसद गणेश सिंह को हराकर विधानसभा पहुचे सिद्धार्थ कुशवाहा को भी समितियों में स्थान नही मिल पाया. वर्तमान में विंध्य का विपक्ष की ओर से नेतृत्व कर रहे चारो विधायक अनुभवी हैं. इसके बावजूद विधानसभा में उन्हें महत्व न दिया जाना यह प्रदर्शित कर रहा है कि सत्ता पक्ष का यह प्रयास है कि विंध्य में विपक्ष पूरी ताकत से काम नही कर सके.अब देखना यह है कि विधानसभा अध्यक्ष अपनी इस चूक पर कोई संशोधन करते हैं कि यह किसी आगामी रणनीति का हिस्सा है जिसके संकेत आने वाले दिनों में मिल सकते हैं
गणेश को फिर मिला पिछडो को साधने का जिम्मा
लगातार पांच बार सतना संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव जीतकर अपने विरोधियों को पटखनी देने वाले सतना सांसद गणेश सिंह को लोकसभा की पिछड़ा वर्ग संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाया जाना केंद्र की राजनीति में उनके बढ़ते कद का फिलहाल बड़ा संकेत माना जा रहा है. दो राज्यो के विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ मिले इस दायित्व के जानकार कई मायने निकाल रहे हैं. इसके पहले भी 2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद उन्हें यह दायित्व सौंपा गया था. वर्तमान लोकसभा में पिछड़े वर्ग के सांसदों की संख्या देखते हुए सत्ता और संगठन के बीच समन्वय कायम रखने का बड़ा जिम्मा भी श्री सिंह के कंधों पर होगा.पहले से कई गुना ताकतवर विपक्ष के बीच मुद्दों पर संसदीय सहमति कायम रख पाना अब उतना आसान नहीं रह गया है. चुनोती पूर्ण इस जिम्मेदारी के निर्वाह में बिहार और आंधप्रदेश के साथ तालमेल कायम रख पाना तब दिक्कत खड़ा कर सकता है जब वहाँ के विधानसभा चुनाव होने हों. ऊपर से काग्रेस के जातीय जनगणना का मुद्दा इस बार की संसद के हर सत्र में केंद्र सरकार के लिए कोई न कोई अड़चन पैदा करता रहेगा.ऐसा लोकसभा और राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष के तेवरों को देखते हुए लग रहा है. श्री सिंह को मंत्री बनाए जाने की मांग करने वाली क्षेत्रीय जनता को मिले इस राजनैतिक पद से क्या लाभ मिलेगा यह तो समय ही बताएगा.
पूर्व विधायक का छलका दर्द
विंध्य की भाजपा राजनीति में कई वरिष्ठ नेता आहत है लेकिन अपना गुबार बाहर नही निकाल पा रहे है. मन को मार कर बैठे हुए है पर त्योंथर के पूर्व विधायक की पोस्ट ने भाजपा के अंदर खलबली मचा दी है. इन दिनो हासिए पर चल रहे पूर्व विधायक श्यामलाल द्विवेदी का दर्द एक पत्र के माध्यम से सामने आया है. जिसमें उन्होने व्यंगात्मक रूप से वर्तमान जिम्मेदारो पर जनता की उपेक्षा किये जाने का आरोप लगाते हुए एक पत्र वायरल किया है. जिसमें उल्लेख किया है कि राजा प्रजा के पिता समान होता है, राजा से बढक़र प्रजा का कोई सेवक नही होता. किन्तु जो राता प्रजा की समस्याओ को सुनने में उपेक्षा करता है उस पर निरीह प्रजा का श्राप भी लगता है. पत्र में लिखे शब्द को लेकर पूर्व विधायक का कहना है कि यह उनके मन का उद्घार है और कटु सत्य भी है, इसका किसी तरह से राजनीतिक मतलब नही निकाला जाय. त्योंथर से टिकट कटने के बाद पूर्व विधायक नाराज चल रहे थे उन्हे सत्ता में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने का आश्वासन दिया गया था पर अब तक नही मिला. राजनीतिक पुर्नवास के इंतजार में पूर्व विधायक है.