आत्मनिर्भर भारत की दिशा

भारत को स्वाधीनता प्राप्त हुए 77 वर्ष हो गए हैं. निश्चित रूप से हम लोक कल्याणकारी , लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में तेजी से शक्तिशाली हो रहे हैं लेकिन स्वाधीनता दिवस के अवसर पर हमें इस बात पर आत्मावलोकन करना पड़ेगा कि क्या हमारे संविधान निर्माताओं और स्वतंत्रता सेनानियों ने समता मूलक समाज , आत्मनिर्भरता और स्वालंबन के संदर्भ में जो सपना देखा था वह पूरा हुआ ? आत्म मंथन करने के बाद हम इसी नतीजे पर पहुंचेंगे कि अभी आत्मनिर्भरता , स्वावलंबन और सामाजिक विषमता दूर करने की दृष्टि से हमारी मंजिल अभी काफी दूर है. देश ने 2047 तक यानी हमारी आजादी के शताब्दी वर्ष तक भारत को पूर्ण आत्मनिर्भर और विकसित राष्ट्र बनाने का सपना देखा है. आर्थिक विकास की दृष्टि से केंद्र सरकार अनेक महत्वाकांक्षी योजनाओं पर काम भी कर रही है. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निश्चित ही हमें सफलता भी मिलेगी लेकिन इसी के साथ हमें समता मूलक समाज की स्थापना को भी उतना ही महत्व देना पड़ेगा. जब तक सामाजिक और आर्थिक विषमता दूर नहीं होगी, जब तक हम पूर्ण आत्मनिर्भर नहीं होंगे तब तक हमारी स्वतंत्रता मुकम्मल नहीं मानी जानी चाहिए. इस संदर्भ में प्रत्येक नागरिक और व्यवस्था का अपना कर्त्तव्य है. समता मूलक समाज की स्थापना और विकसित भारत का लक्ष्य जन भागीदारी के बिना प्राप्त होना संभव नहीं है. इसलिए देश के प्रत्येक नागरिक को अपने कर्तव्यों को उसी शिद्दत के साथ निभाना होंगे, जिस जस्बे के साथ हम अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहते हैं. जैसे लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च होती है.यदि जनता तय कर ले कि रेवड़ी कल्चर को हम स्वीकार नहीं करेंगे. प्रत्येक नागरिक तय कर ले कि हम अपने पुरुषार्थ के बल पर ही तरक्की करेंगे ना कि सरकारी खैरात पर. यदि जनता ऐसा तय करती हैं तो यह यह कदम भी एक तरह से आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को ही मजबूत करता है.बहरहाल,जहां तक स्वावलंबन या आत्मनिर्भरता का प्रश्न है तो, आत्मनिर्भर भारत दरअसल,नए भारत का विजऩ है.वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र से आत्मनिर्भरता के आह्वान के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की.इसका उद्देश्य देश तथा इसके नागरिकों को हर तरह से स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर बनाना है. इस क्रम में अर्थव्यवस्था, आधारभूत संरचना , प्रणाली, जीवंत जनसांख्यिकी और मांग को आत्मनिर्भर भारत के पांच स्तंभ के रूप में रेखांकित किया गया.आत्मनिर्भरता का यह विचार किसी बहिष्करण या अलगाववादी रणनीतियों का प्रतीक नहीं है बल्कि इसमें पूरी दुनिया के लिये मदद की भावना शामिल है.यह अभियान ‘स्थानीय’ उत्पादों को बढ़ावा देने के महत्त्व पर केंद्रित है.आत्मनिर्भर भारत अभियान के साथ-साथ सरकार ने कृषि के लिये आपूर्ति शृंखला सुधार, तर्कसंगत कर प्रणाली, सरल एवं स्पष्ट कानून, सक्षम मानव संसाधन और सुदृढ़ वित्तीय प्रणाली जैसे कई अन्य सुधार भी किये हैं लेकिन इनका जमीन पर और आम आदमी के जीवन पर क्या असर हो रहा है इसका वास्तविक आकलन किया जाना जरूरी है .

आत्मनिर्भरता का विचार समग्र सुधारों के अधूरे एजेंडे को भी शामिल करता है जिसमें सिविल सेवाओं, शिक्षा , कौशल और श्रम आदि में सुधार किया जाना शामिल हो सकता है.आत्मनिर्भरता का अभियान न्यू इंडिया की अवधारणा में नया महत्व प्राप्त कर चुका है. लेकिन व्यवस्था और समाज में अभी आवश्यक लहर पैदा होना बाकी है .

विश्वसनीय कनेक्टिविटी, सामग्री व घटकों के विविधिकृत स्रोत और लचीली वित्तीय एवं व्यापारिक व्यवस्था अब महज चर्चा के शब्द नहीं हैं, बल्कि एक रणनीतिक अनिवार्यता है जिसमें भारत के व्यापारिक समुदाय, विधि-निर्माता तथा सभी हितधारकों को शामिल करते हुए सभी की आम सहमति की आवश्यकता है . आत्मनिर्भरता और स्वालंबन आर्थिक शक्ति बनने के लिए बहुत जरूरी है लेकिन हमारे देश लिए उससे भी महत्वपूर्ण विषय है सामाजिक विषमता को दूर करना. यह ऐसा विषय है जिस पर सरकार अपने दम पर कुछ नहीं कर सकती.

दरअसल,समता मूलक समाज की स्थापना करना बिना जनता की भागीदारी के नहीं हो सकता. समता मूलक समाज की स्थापना के लिए सभी सामाजिक और गैर सरकारी संगठनों को अपनी भूमिका निभानी होगी. धार्मिक संगठनों को भी इस अभियान का नेतृत्व करना होगा तभी देश की सामाजिक विषमता दूर हो सकेगी. कुल मिलाकर हमें समझना होगा कि आर्थिक स्वावलंबन, आत्मनिर्भरता और समता मूलक समाज की स्थापना के बिना हमारी स्वतंत्रता मुकम्मल नहीं कही जाएगी.

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