चीन से निवेश को लेकर रुख बदलने का फिलहाल कोई विचार नहीं: गोयल

नयी दिल्ली, 30 जुलाई (वार्ता) वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने मंगलवार को कहा कि चीन कंपनियों के भारत में प्रत्य विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रस्तावों प्रति में भारत अपने दृष्टोण में कोई पुनर्विचार नहीं कर रहा है।

श्री गोयल ने बजट से पहले संसद में प्रस्तुत किए गए वर्ष 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण में चीन से एफडीआई के समर्थन की सिफारिश के संदर्भ में कहा कि आर्थिक सर्वे एक ऐसी रिपोर्ट है जिसमें हर बार कुछ कुछ नए विचार सुझाए गए होते हैं और वे (सर्व के लेखक) आपनी खुद की सोच को उसमें प्रस्तुत करते हैं।

श्री गोयल ने कहा कि सरकार के लिए आर्थिक सर्वे कोई प्रतिबद्धता नहीं और सरकार देश में चीन के निवेश को समर्थन को लेकर “ इस समय सरकार कोई पुनर्विचार नहीं कर रही है।”

उल्लेखनीय है कि गलवान (लद्दाख) में चीन के साथ सैन्य टकराव के बाद भारत ने देश की सीमा से लगे देशों ( जिसमें चीन भी शामिल है) की कंपनियों की ओर से आने वाले एफडीआई के सभी प्रस्तावों के मामले में सरकार की स्वीकृति अनिवार्य कर दी है।

इस बार 22 जुलाई को प्रस्तुत आर्थिक सर्वे में देश में विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित करने और निर्यात की संभावनाओं के विस्तार के लिए चीन से एफडीआई में आकर्षित किए जाने की सिफारिश की गयी है। सर्वे में कहा गया है कि अमेरिका और यूरोप की कंपनियां अपनी खरीद चीन की जगह दूसरे देशों में करने का प्रयास कर रही है। ऐसे में यह अच्छा होगा कि चीन से माल आयात करने के बजाय चीन की कंपनियों को भरत में निवेश के लिए आमंत्रित किया जाए और उससे उत्पादित माल उन बाजारों में निर्यात किया जाएा।

सर्वे में कहा गया है कि दुनिया आपूर्ति के लिए चीन के अलावा एक और विकल्प की ओर देख रही है। ऐसे में भारत के लिए लाभ के दो विकल्प हैं-देश या तो विनिर्माण श्रृंखला में चीन के साथ समन्वय स्थापित करे या चीन के निर्माताओं को भारत में सीधे निवेश के लिए प्रोत्साहित करे। सर्वे में दूसरे विकल्प को अधिक संभावनापूर्ण बताया गया है।

श्री गोयल ने कहा कि यूरोपीय संघ ने सुझाव दिया है कि भारत यूरोपीय संघ को सीबीएएम (कार्बन कर) देने के बजाय अपना खुद का तंत्र विकसित कर सकता है। उन्होंने कहा कि मंत्रालय यूरोपीय संघ के सुझाव पर विचार करेगा और भारतीय उद्योग तथा लोगों के लिए जो भी अच्छा होगा, वह लेकर आएगा।

यूरोपीय ने सीबीएएम पहली जनवरी, 2026 से लागू करने का निर्णय किया है लेकिन इस साल अक्टूबर से स्टील, सीमेंट, उर्वरक, एल्युमीनियम और हाइड्रोकार्बन उत्पादों सहित सात कार्बन-गहन क्षेत्रों की घरेलू कंपनियों को ईयू के साथ कार्बन उत्सर्जन के संबंध में डेटा साझा करना अनिवार्य कर रहा है।

भारत ने इस कदम की कड़ी आलोचना की है और इस मुद्दे पर उसके साथ बातचीत कर रहा है।

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