उज्जैन। नवजात शिशु की मौत के बाद जिम्मेदार जागे तो सही और ताबड़तोड़ एक निजी अस्पताल को एक माह के लिए बंद करने के ताबड़तोड़ निर्देश दे दिए गए। बावजूद इसके यह एक बड़ा रैकेट है जो निजी अस्पताल से लेकर सरकारी अस्पताल में सक्रिय है। इसमें न सिर्फ आशा कार्यकर्ता बल्कि कई बड़े चेहरे भी शामिल है। जिनकी यदि शिद्दत से पड़ताल की जाए तो चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं।
एक निजी अस्पताल के संचालक ने ही नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मजाल है कोई भी प्राइवेट क्लीनिक या हॉस्पिटल अथवा निजी डॉक्टर सरकारी जिम्मेदारों की आंखों में धूल झोंक कर इतना बड़ा झमेला कर ले। सच तो यह है कि चाहे माधव नगर अस्पताल हो या जिला अस्पताल हो अथवा चरक, सभी इस गोरखधंधे में बराबरी से शामिल हैं। 50 प्रतिशत से ज्यादा ऐसे चेहरे हैं जो कमीशन के धंधे में निजी अस्पतालों से ताल में बिठाकर चल रहे हैं।
गिरोह के कारण नवजात की हुई मौत
कमीशन खोरी वाले गिरोह के कारण एक नवजात की मौत हुई है। माधव नगर अस्पताल में रजनी पति अंकित यादव ने नवजात बच्चे को 24 जुलाई को जन्म दिया था।नवजात की तबीयत खराब होने पर उसे डॉक्टर ने चरक अस्पताल रेफर किया था। बावजूद किसी आशा कार्यकर्ता ने कमीशन के लालच में फ्रीगंज के एमपी अस्पताल से एंबुलेंस बुलाकर उसे भर्ती करवा दिया था। पर्याप्त इलाज के अभाव के चलते नवजात की मौत हो गई। हालांकि की बच्चे की मौत चरक अस्पताल में हुई।
सीएमएचओ ने की कार्रवाई
सीएमएचओ डॉ. अशोक पटेल ने फ्रीगंज के एमपी हॉस्पिटल के लायसेंस को 1 माह के लिए निरस्त करने के आदेश दिए हैं। साथ ही मरीजों की भर्ती पर रोक लगाई है। सीएमएचओ से लेकर जिला प्रशासन के अधिकारियों को प्रथम दृष्टया पता चला है कि कमीशन के लालच में सरकारी अस्पताल से मरीज को निजी अस्पताल में रेफर किए जाने वाला कोई गिरोह सक्रिय है। इस प्रकार की कार्रवाई समय समय पर अगर की जाती रहे तो अनेक मामलों का खुलासा होगा।
इनका कहना है
इस संबंध में हमारे प्रतिनिधि ने जब जानकारी ली तो बताया कि एमपी अस्पताल में बच्चे की मौत के बाद में जांच की गई। हाल फिलहाल एक माह के लिए लायसेंस निरस्त किया गया है।
-अशोक पटेल, सीएच एमओ