बहुत कठिन है डगर मुक्तिधाम की, कीचड़ और बहते नाले से होकर श्मशान पहुंचने को लोग मजबूर

नीमच। देश की आजादी को 70 के दशक से अधिक का बीत चुका है। देश के वैज्ञानिकों ने चांद और मंगल जाने का रास्ता तो सुगम कर लिया है। मगर देश के कुछ इलाकों में आज भी लोगों की अंतिम यात्रा का रास्ता सुगम नही हुआ है। ग्रामीणों को दुर्गम रास्तों से होकर गुजरना पड़ रहा है। हद तो तब हो जाती है जब मौत के बाद भी अंतिम यात्रा का रास्ता कीचड़ बहते बरसाती नालों से भरा हो और जान जोखिम में डालकर गुजरना पड़ता हो।

जिले के रामपुरा तहसील अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत लसूडिया ईस्तमुरार के गांव बड़ोदिया बुजुर्ग के हालात भी इसी की बानगी पेश करते है। जहां दशकों बीत जाने पर भी ग्रामीणों को शवयात्रा कीचड़ भरे दुर्गम मार्ग से बरसाती नाले के बहते पानी से होकर निकालना पड़ रही है। जिसमें किसी के गिरने तो किसके चोटिल होने का खतरा बना रहता है। बरसती नाले में यदि तेज बहाव है तो उसे पार करना खतरे से खाली नही होता। ऐसे में अंतिम संस्कार के लिए घण्टो इंतजार करना पड़ता है। यह वीडियो रविवार सुबह सामने आया है।

शनिवार शाम को इसी तरह का एक नजारा देखने को मिला। गांव में किशन लाल पिता नानूराम गुर्जर नामक करीब 80 वर्षीय बुजुर्ग की मौत हो गई। मौत दोपहर करीब 2:00 बजे के आसपास हुई थी। इसी दौरान तेज बारिश आने लगीं, जिसके चलते बुजुर्ग के अंतिम को करीब 2 से 3 घंटे तक रोकना पड़ा क्योंकि शमशान के रास्ते मे पडऩे वाले बरसाती नाले में काफी पानी बह रहा था। जब पानी उतरा तब शवयात्रा निकाली गई। उस पर भी मार्ग में कीचड़ और फिसलन के कारण शवयात्रा ले जाने में काफी परेशानी का सामना ग्रामीणों को करना पड़ा।

करीब 700 लोगों की आबादी वाले इस गांव में रास्ते के अलावा भी मूलभूत सुविधाओं का काफी अभाव है। कई काम तो ग्रामीण जन सहयोग से ही कर लेते हैं। लेकिन जहां उनकी आर्थिक हिम्मत जवाब दे देती है तब शासन प्रशासन के जिम्मेदारों की ओर देखने को मजबूर होना पड़ता हैं। हालही में ग्रामीणों ने 2 लाख रुपये इखट्टे कर खेत पर जाने की सडक़ को दुरुस्त करवाया। गांव में कई स्थानों पर सडक़ में मुरम डालकर भी सडक़े अपने स्तर पर दुरुस्त की।

ऐसा यह पहली बार नहीं है, जब इस परेशानी से लोग जूझ रहे हो हर साल की यही कहानी है।ग्रामीण बताते है कि करीब 10 वर्ष पहले एक बालक की मौत हो गई थी। तब दो दिन तक लगातार तेज बारिश होने के कारण नाला 2 दिन तक उफान पर रहा था। जिसके चलते ग्रामीणो को निजी भूमि पर ही अंतिम संस्कार करना पड़ा।

ग्रामीण बताते है कि वे बरसों से जनप्रतिनिधि और अधिकारियों को अवगत करवाते रहे हैं, मगर समय के साथ अधिकारी और जनप्रतिनिधि जरूर बदल गए पर गांव और श्मशान जाने के रास्ते के हालात आज तक नहीं बदले।

दुनिया के विकास की दौड़ में आज भी उनका गांव पिछड़ा हुआ है। ग्रामीण आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वर्तमान विधायक माधव मारू ने अपने पिछले कार्यकाल में ग्रामीणों को रास्ता दुरुस्त करने या फिर शमशान कहीं और शिफ्ट करने की बात कही थी। मगर उनकी बात कोरा आश्वासन ही साबित हुई। हा उनका कार्यकाल जरूर बदल गया लेकिन हालात आज भी वही है।

ग्रामीणों ने शासन प्रशासन के जिम्मेदारों से गुहार लगाई है कि, वे ग्रामीणों की समस्या की ओर तुरंत ध्यान दें। खास तौर से शमशान जाने के रास्ते की सुधाले उसे दुरुस्त करवाये। या फिर अंतिम संस्कार कोई अन्य स्थान उपलब्ध करवाए। मामले पर ग्रामीण देवीलाल गुर्जर का कहना है कि गत वर्ष भी वर्तमान विधायक माधव मारू को अवगत कराया गया था।

उन्होंने आश्वासन दिया था की रास्ता दुरुस्त करेंगे या श्मशान कहीं और शिफ्ट कर देंगे। मगर अब तक कुछ नहीं हुआ। सालों से ग्रामीणों को केवल आश्वासन दिया जा रहा है। हमारे गांव की अनदेखी की जा रही है। विकास की दौड़ में हमारा गांव काफी साल पीछे हैं।

विधायक मनासा अनिरुद्ध माधव मारू ने कहा कि हम रोड बनवा चुके हैं, प्रकृति है पानी ज्यादा गिरा इसलिए पानी भर गया होगा, तो भर गया होगा। इसमें मैं क्या कर सकता हूं कोई खास बात नहीं है। लोग खाइया बंद कर देते हैं। रास्तों पर पुरा पानी आ जाता है। रामपुरा रोड पर कल पानी भरा हुआ था। मैं क्या करूं मेरी तरफ से मैं रोड बना चुका हूं।

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