संभावना गतिविधि में कोरकू जनजातीय नृत्य गदली-थापटी एवं गोण्ड जनजातीय सैरा नृत्य की हुई प्रस्तुति

भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य, गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि “संभावना” का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 14 जुलाई, 2024 को दोपहर 02 बजे से श्री लक्ष्मण बारस्कर एवं साथी, बैतूल द्वारा कोरकू जनजातीय गदली-थापटी नृत्य की प्रस्तुति दी। कोरकू नृत्य की वेशभूषा अत्यधिक सादगीयुक्त और सुरूचिपूर्ण होती है। पुरूष सफेद रंग पसंद करते हैं, सिर पर लाल पगड़ी और कलंगी पुरूष नर्तक खास तौर से लगाते हैं। स्त्रियाँ लाल, हरी, नीली, पीली रंग की किनारी वाली साड़ी पहनती है। स्त्री के एक हाथ में चिटकोला तथा दूसरे हाथ में रूमाल और पुरूषों के हाथ में घुंघरूमाला तथा पंछा होता है। कोरकू नृत्यों में ढोलक की प्रमुख भूमिका होती है। ढोलक की लय और ताल पर कोरकू हाथों और पैरों की विभिन्न मुद्राओं को बनाते हुए गोल घेरे में नृत्य करते हैं। गदली नृत्य विवाह आदि के अवसर पर किया जाता है। नृत्य में लोक संगीत बहुत कर्णप्रिय है। पुरुषों की बांसुरी और ढोलक की धुन पर लाल वस्त्र में महिलाएं हाथ में छोटा सा लोक वाद्य चिटकोरा बजाती हुई नृत्य करती हैं।

अगले क्रम में श्री उत्तमसिंह गोण्ड एवं साथी, सागर द्वारा सैरा नृत्य की प्रस्तुति दी गई। सैरा नृत्य मूलतः डंडा नृत्य है। देश के प्रायः सभी राज्यों में डंडा नृत्य करने की समृद्ध परंपरा है। बुन्देलखंड में इस नृत्य को सैरा कहा जाता है। कृषक परंपरा का यह नृत्य वर्षा ऋतु के समय गांव-गांव उत्साह के साथ किया जाता है। इस नृत्य में सैरा गाने वाले हाथों में लकड़ी के छोटे-छोटे डंडे लेकर गोलाकार खड़े होकर नृत्य करते हैं। इन डंडों पर एक दूसरे व्यक्ति अपने दाहिने ओर बोर से उठते हुए डंडों पर आघात करते घूमते हैं। इस आघात से जो ध्वनि निकलती है, वह संगीत का साथ देती चलती है। गीत की स्वर लहरियाँ इस आघात के साथ तेज गति पकड़ती जाती हैं। समूह में घूमकर डन्डों पर चोट करते व्यक्ति कभी जमीन पर झुककर, झूमकर, निहुरकर, घूमकर, पल्टीमारकर, बैठकर, लेटकर और कभी-कभी आड़े-तिरछे होकर डन्डों पर एक साथ समान रूप से चोट करते हैं। इस नृत्य में आठ-दस व्यक्ति से लेकर पंद्रह-बीस व्यक्ति तक भाग लेते हैं। इनकी पोशाक सामानय होती है। कभी-कभी इनके खाली हाथ में गमछा या तौलिया रहती है जिसे घूमकर चलता हुआ व्यक्ति पसीना पोछता और उसे हिलाता हुआ अपनी विशिष्ट मुद्राओं का प्रदर्शन कर दर्शकों का मन मोह लेता है। इस नृत्य में ढोलक, टिमकी, मंजीरा आदि प्रमुख वाद्य यंत्र है। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय़ में प्रति रविवार आयोजित होने वाली इस गतिविधि में मध्यप्रदेश के पांच लोकांचलों एवं सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परंपराओं की प्रस्तुति के साथ ही देश के अन्य राज्यों के कलारूपों को देखने समझने का अवसर भी जनसामान्य को प्राप्त होगा। यह नृत्य प्रस्तुतियां संग्रहालय परिसर में आयोजित की जायेंगी।

Next Post

मुस्लिम बोर्ड गुजारा भत्ते पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का करेगा विरोध

Sun Jul 14 , 2024
Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email नयी दिल्ली 14 जुलाई (वार्ता) ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने रविवार को अपने अध्यक्ष को तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अनिवार्य भरण-पोषण पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को वापस लेने के उपाय शुरू करने के […]

You May Like