रहवासियों बगैर धूल खा रही है 11 बहुमंजिला इमारतें

गरीबों को भी नहीं छोड़ा आईडीए ने भाव बढ़ाने में

इंदौर: आईडीए की योजना 155 की बहुमंजिला इमारतों की स्थिति वैसी ही हो गई है, जैसे बच्चों के बगैर बूढ़े मां बाप की हो जाती है। उक्त योजना के ग्यारह ब्लॉक में बने 850 फ्लैट रहवासियों के बगैर ही बूढ़े हो गए और धूल खा रहे हैं। आईडीए ने उक्त बहुमंजिला इमारत में ई, एल और एम ब्लॉक की 11 बिल्डिंग बनाई थी । उक्त बहुमंजिला इमारतों में कुल 846 फ्लैट 12 साल पहले बनाए थे । इसमें गरीबों के दो रूम वाले, 1 बीएचके और 2 बीएचके भी फ्लैट है। उक्त फ्लैट में से से दिए कुल 246 फ्लैट बेच पाया है और अभी 562 फ्लैट बिक नहीं रहे है। इसके बावजूद गाइड लाइन का हवाला देकर आईडीए ने अभी फ्लैट की कीमतों में 3,4और 5 लाख की वृद्धि कर दी है।

आईडीए बोर्ड बैठक में तीन दिन पहले 12 साल से धूल खा रहे फ्लैट के कीमतों में बढ़ोतरी करने का निर्णय लिया है। इसमें गरीबों के दो रूम वाले फ्लैट में तीन लाख , एक बेडरूम के फ्लैट में चार लाख और दो बेडरूम फ्लैट में 5 लाख रुपए बढ़ा दिए है। उक्त फ्लैट की बिक्री आगामी छह माह में करने का निर्णय लिया है।बारह साल पहले आईडीए द्वारा सौ करोड़ से ज्यादा में बनाएं फ्लैट बिक नहीं रहे है। उक्त इमारतों पर सिर्फ सुरक्षा का ही तीन शिफ्ट में 36 गार्ड का खर्च  तीन लाख साठ हजार रुपए हो रहा है। साल का जोड़े तो सवा चार करोड़ से रुपए होता है। अभी आईडीए द्वारा इमारतों की पुताई का ठेका सवा दो करोड़ में पिछले साल दिया गया था । इस तरह एक साल में दो से पांच करोड़ रुपए सिर्फ मेंटेनेस पर ही खर्च कर रहा है।

आईडीए ने 2011 में योजना 155 में करीब सवा सात एकड़ जमीन पर तीन केटेगरी के 847 फ्लैट बनाने का ठेका 106 करोड़ में भूषण राय जैन गजियाबाद को दिया था।  847 फ्लैट ग्यारह ब्लॉक में छह मंजिला एवं एक तीन मंजिला इमारत बनाई है। सभी इमारतों में अलग अलग 24 लिफ्ट लगी है। इसमें दो बीएचके 222, एक बीएचके 576 और दो रूम किचन वाले 49 फ्लैट है। उक्त तीनो केटेगरी के फ्लैट की कीमत 20.90,15.35 और 9.47 लाख तय की थी। अब इनकी कीमत वर्तमान गाइड लाइन के हिसाब से दो बेड वाले फ्लैट 25 से 26 , एक बेड वाले 19 से 20 और रूम किचन वाले 14 से15 लाख के कर दिए है।

एप्रोच रोड ही नहीं बनाई थी

ध्यान देने वाली बात यह है कि इतने बड़े प्रोजेक्ट पर आईडीए ने एप्रोच रोड ही नही बनाई थी। फिर स्थान का चयन गलत किया , उक्त स्थान के पास झुग्गी बस्तियां है। योजना – 51 से लगी होने से शासन ने गाइडलाइन बहुत ज्यादा तय कर दी। आईडीए ने फ्लैट को बेचने के लिए कई बार टेंडर निकाले है, लेकिन खरीददार आज तक नहीं पहुंचे। आईडीए अब फिर नए सिरे से टेंडर निकलेगा।

रखरखाव पर करोड़ों खर्च

2014 में काम पूरा होने बाद से ही योजना 155 की उक्त बहुमंजिला इमारतें रहवासियों के अभाव के आईडीए पर पिछले बारह सालों से भारी बोझ बन गई है। आईडीए उक्त बहुमंजिला इमारतों के रखरखाव , सफाई , सुरक्षा , पुताई और आंतरिक सज्जा के मेंटेनेंस पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है , जिसका कोई हिसाब नही है। एक अनुमान के अनुसार हर साल मेंटेनेस पर करीब दो से पांच करोड़ रुपए खर्च हो रहे है। बीच में दो बार डेढ़ से दो करोड़ के टेंडर बुला कर रिपेयरिंग करवाई गई ।अभी पुताई का ठेका 2.25 करोड़ में दिया है।

उठ रहे हैं कई सवाल

फ्लैट की बिक्री नहीं होने पर आईडीए ने सरकार से मांग कर गाइडलाइन कम करवाई थी , जो इस बार फिर से बढ़ी हुई गाइड लाइन की दर से बचने का निर्णय कैसे हो गया ? सवाल क्या सिर्फ यह इमारतें योजना 51 के पास है, इसलिए ?
पहले शासन के फ्लैट नहीं बिकने के चलते गाइड लाइन 19 हजार दो सौ कर दी थी।अब वापस 24 हजार रुपए कर दी है। इसका कारण मल्टी तक जाने की एप्रोच सड़क का काम अंतिम चरण में है।

खबर का दूसरा पहलू यह है कि अविकसित क्षेत्र में बहुमंजिला बनाने का निर्णय कैसे और किसने किया ? जिस समय यह निर्णय हुआ , उस समय पूर्व संभागायुक्त संजय दुबे पदेन आईडीए अध्यक्ष थे। साइड इंजीनियर डी.के जैन थे।  मुद्दा यह है कि पिछले बारह सालों में करोड़ों रुपए सिर्फ उक्त माल्टियों की अवेयरनेस फूंक दिए गए है। बावजूद इसके सौ करोड़ के प्रोजेक्ट से धूल नहीं हट रही है। यह अधिकारियों और आईडीए बोर्ड की अदूरदर्शिता और लापरवाही का ही परिणाम है कि हर साल करोड़ों रुपए की निरंतर बर्बादी हो रही है।

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