पिछले कुछ महीनों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जम्मू और कश्मीर में एक बार फिर आतंकवादी गतिविधियां बढ़ गई है. यह बेहद चिंता का विषय है. हाल ही में कठुआ जिले में आतंकवादियों और सेना के जवानों के बीच सोमवार को भीषण मुठभेड़ हुई. इस घटना में सेना के 5 जवान शहीद हो गए और 5 अन्य घायल हो गए.जम्मू-कश्मीर का कठुआ जिला पंजाब के पठानकोट जिले से सटा हुआ है. इसके पहले कुलगाम में दो जगह चली मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने छह आतंकवादियों को ढेर कर दिया था. मारे गए आतंकियों के ठिकाने से जुड़ा एक वीडियो सामने आया था, जिसमें दिख रहा था कि एक घर में बनी आलमारी के भीतर आतंकियों ने गुप्त ठिकाना बना रखा था. हाल के दिनों में सिफऱ् कुलनाम में हिज़्बुल के छह आतंकी मारे गये हैं. साथ में दो जवान भी शहीद हुए हैं. जबकि 9 जून को जम्मू कश्मीर के रियासी जिले में शाम के समय आतंकवादियों ने तीर्थयात्रियों को ले जा रही एक बस पर गोलीबारी की थी. इससे बस खाई में गिर गई थी. आतंकियों की फायरिंग और बस के खाई में गिरने से नौ लोगों की मौत हो गई, जबकि 41 अन्य घायल हो गए. कुल मिलाकर यह घटनाएं अत्यंत चिंता का सबब हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि आतंकवाद की पिछले दिनों हो रही अधिकांश घटनाएं जम्मू संभाग के अंतर्गत हुई हैं. जबकि जम्मू संभाग में आमतौर पर शांति रहती है. आतंकवाद के मामले में कहा जाता है कि आतंकी गतिविधियां घाटी के क्षेत्र में ज्यादा होती हैं लेकिन पिछले दिनों बदला हुआ ट्रेंड देखा गया. कश्मीर में आजकल आमतौर पर शांति है. जबकि पंजाब से सटे जम्मू क्षेत्र में आतंकवादी अपनी गतिविधियां बढ़ रहे हैं. ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली और कश्मीर दोनों जगह जाकर उच्च स्तरीय बैठक आयोजित कर सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की थी. प्रधानमंत्री भी पिछले दिनों कश्मीर की यात्रा पर गए थे. जाहिर है केंद्र सरकार पूरी तरह से सतर्कता भारत रही है. इसके बावजूद आतंकवादी घटनाओं का बढऩा चिंता का कारण है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार अक्टूबर तक जम्मू और कश्मीर में चुनाव होने हैं. ऐसे में वहां आतंकवादी घटनाओं को रोकना बहुत जरूरी है. दरअसल, धारा 370 हटाने के बाद पाकिस्तान की मुख्य खुफिया एजेंसी आईएसआई बौखला गई है. इस बार लोकसभा चुनाव में जिस तरह से कश्मीर की तीनों सीटों पर 50 फ़ीसदी के लगभग मतदान हुआ. उससे भी पाकिस्तानियों को परेशानी हुई होगी. पाकिस्तान इस क्षेत्र को अशांत रखना चाहता है ताकि दुनिया का ध्यान इस ओर खींच सके. यह संतोष जनक है कि आतंकवाद की सभी घटनाओं में विदेशी घुसपैठियों का हाथ पाया गया है. इसका मतलब यह है कि आतंकवाद को जम्मू और कश्मीर की स्थानीय जनता का समर्थन नहीं है. जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को यदि काबू में करना है तो घुसपैठ पर लगाम लगानी होगी. यह बड़ा चुनौती पूर्ण कार्य है, क्योंकि सीमा से सटा इलाका बेहद दुर्गम और कठिनाइयों से भरा है. यहां घुसपैठ को रोकना बेहद मुश्किल है. कुछ क्षेत्र तो इतने कठिन और दुर्गम हैं कि वहां कटीले तार भी नहीं लगाए जा सकते. इसके अलावा केंद्र सरकार को जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा भी जल्दी से जल्दी बहाल करना चाहिए. जम्मू और कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर वहां विधानसभा का चुनाव करना चाहिए ताकि जनता के असंतोष का फायदा पाकिस्तान में बैठे कट्टरपंथी आतंकवादी संगठन ना उठा सकें. इसके अलावा पंजाब में बढ़ रहा आतंकवाद और असंतोष की तरफ भी केंद्र सरकार को ध्यान देना चाहिए. जम्मू कश्मीर के युवा अभी भी रोजगार की समस्या से जूझ रहे हैं. यह सही है कि पिछले दो-तीन वर्षों में पर्यटन क्षेत्र में उछाल आया है लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि आजकल का यूथ केवल पर्यटन के क्षेत्र में ही रोजगार नहीं चाहता उसे अन्य क्षेत्रों में भी रोजगार चाहिए. इस दिशा में भी सरकार को सोचना होगा.
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